जब तक माल्या है, तब तक मार्क्स और मार्क्सवाद है

मार्क्स

एक 14 वर्ष के चरवाहे लड़के ने जब अपने पिता से पूछा कि पिता जी ये बारिश क्यों और कैसे होती है? तो पिता ने वैज्ञानिक कारण का ज्ञान होते हुए भी उसे एक काल्पनिक कहानी बतानी बहतर समझी क्योंकि इस कहानी के बाद प्रतिप्रश्न आने की संभावना बहुत की कम थी। पिता ने कहा कि “जब पृथ्वी पर पाप बढ़ जाता है, जब पृथ्वी पर अन्याय अपनी सीमा पार कर जाता है तब ऊपर बैठा इन्द्र क्रोधित हो जाता है। तब पहले बादल उमड़ जाते हैं और फिर जब इन्द्र संवेदनाओं में बह कर रोने लग जाते हैं तो उनके आसूं पृथ्वी पर गिरते हैं। ये जो बारिश का पानी है ये और कुछ नहीं बस इंद्र के आसूं हैं।” लड़का ससन्देह संतुष्ट हो गया। अगले दिन उसके भेड़ो के झुण्ड पर एक भेड़िये ने हमला कर दिया और एक नवजात मेमने को अपना शिकार बना लिया। लड़का बहुत दुखी हुआ और सोचने लगा कि ये कितना अन्यायपूर्ण है की जिस झुंड में बूढ़े व बीमार भेड़ हैं उस झुण्ड में से एक नवजात मेमना ही क्यों भेडिये का शिकार बना। तभी बादल उमड़ जाते हैं और बारिश होने लगती है। लड़का मान लेता है की सच में ये अन्यायपूर्ण घटना थी इसलिए इंद्र देवता भी दुखी होकर रो रहे हैं।

उस लड़के ने पूरी उम्र एक गलत सिद्धांत को ही सही माना क्योंकि लड़के को इस गलत सिद्धांत का प्रमाण मिल गया था। इसी प्रकार कार्ल मार्क्स द्वारा दिया गया वामपंथी सिद्धांत भी गलत है। सोवियत रूस, माओवादी चीन और दक्षिणी अमेरिका में साम्यवाद का परीक्षण बुरी तरह से विफल हुआ। परन्तु मार्क्स द्वारा बताये गये पूंजीवाद के लक्षण जब तक हमें अपने समाज में दीखते रहेंगे तब तक वामपंथ एक विचार के रूप में जिन्दा रहेगा। उसे पूरी तरह नाकारा नहीं जा सकेगा।

मार्क्स ने कहा है की एक पूंजीवादी समाज में शिक्षा, कानून, राजनीति आदि सब अमीरों की ही मदद करेंगी। पूंजी ही सबसे बड़ी ताकत होगी। और गरीबों की सुनने वाला कोई नहीं होगा। अब जब मार्क्स द्वारा की गई ये सब भविष्यवाणियाँ हम आज के भारत में चरितार्थ होते देखते हैं तो वामपंथी विचारों की टूटती सासों को पुनः प्राणवायु मिल जाती है।

जब सरकार किसानो के लोन माफ़ नहीं करती बल्कि गरीब किसानो पर ब्याज सहित लोन चुकाने का इतना दबाव डाला जाता है कि किसान चंद हज़ार रुपए न चुका पाने के कारण आत्महत्या पर मजबूर हो जाते हैं और वहीँ दूसरी और सरकार कॉरपोरेट जगत के लाखों करोड़ो के लोन NPA बना कर राईटऑफ कर देती है। साम्यवादी नहरू का नाम लेकर वोट मांगने वाली कांग्रेस सरकार जब भोपाल गैस काण्ड के मुख्य अपराधी ‘वारेन एंडरसन’ को भारत से भाग जाने में मदद करती है, जब वही सरकार बोफोर्स घपले में फंसे इटलीवासी ‘क्वात्रोची’ के बैंक खाते कुछ देर के लिए इसलिए रिलीज़ कर देती है ताकि वो आराम से पैसे निकलवा कर भाग सके। जब वही सरकार विजय माल्या को उसकी औकात से ज्यादा लोन लेने देती है तब आम आदमी को मार्क्स की राजनीति और व्यापर की षड्यंत्रकारी अन्तर्सम्बन्धी परिकल्पना सही लगने लग जाते हैं। तब वामपंथी ऐसे घावों पर नमक छिडकते हुए कहते हैं कि “देखा मैंने कहा था ना”।

यही वजहें नक्सलवाद के वजूद को बनाए रखती हैं। यही कारण है वामपंथ के अब तक जीवित रहने का। लोकतान्त्रिक न्याय व्यवस्था की ये त्रुटि पूंजीवाद का स्याह चेहरा है। जब तक किसी गलत परिकल्पना को प्रमाणों का सहारा मिला रहेगा वो सिद्धांत पूरी तरह से नहीं मरेगा। और तब तक वो लड़का यही मानता रहेगा की उसके पिता का बताया गया सिद्धांत ही सही है और बारिश और कुछ नहीं बस इंद्र का रुदन है।

Exit mobile version