Patanjali Ayurved – A 5500 Crore Business Empire
एक कहावत आप लोगों ने जरूर सुनी होगी कि “घर का जोगी जोगना, दूर गाँव का सिद्ध” मतलब यह कि अपने घर का गुणी आदमी भी निर्गुण व व्यर्थ प्रतीत होता है और दूसरे गाँव/देश का व्यक्ति गुणवान व सिद्ध पुरुष कहलाता है। अब तक यह कहावत भारतीय मध्यमवर्गीय समाज पर पूरी तरह से लागू होती थी जो अपने देश में ही जन्मी आयुर्वेद जैसी एक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति को न अपना कर इंग्लिश चिकित्सा पद्धति की ओर भागते थे। लेकिन एक घर के ही जोगी ने यह सब बदल दिया है। एक सनातनी, भगवा धारी, खड़ाऊ पहनने वाला बाबा, जो न व्यावसायिक प्रबन्ध (MBA) में स्नातकोत्तर है, ना ही वाणिज्य में, ना ही अर्थशास्त्र में और ना ही जिसे मार्किटिंग में कोई डिग्री ही प्राप्त थी। उस बाबा को बस एक ही कला आती थी वो थी योग। और आज उसी योग के बल पर उस बाबा ने 5500 करोड़ रु० का एक व्यावसायिक साम्राज्य खड़ा कर लिया है। उस बाबा का नाम है ‘बाबा रामदेव’ और उनके सम्राज्य का नाम है ‘पतंजलि’/ Patanjali Ayurved। आज पतंजलि सबसे तेज गति से तरक्की करने वाली देश की नंबर एक FMCG (उपभोक्ता उत्पाद) कंपनी बन गई है। आज पतंजलि ने अपने 350 से भी ज्यादा प्रोडक्ट्स की मदद से 6% से भी अधिक बाजार पर अपना कब्ज़ा जमा लिया है।
Patanjali Ayurved – Ayurvedic Products is not a low competition sector
कुछ लोगों का कहना है कि बाबा को बिना प्रतिस्पर्धा वाला बाजार मिला है क्योंकि आयर्वेद के उत्पाद के लिए बाजार में कोई कॉम्पेशन ही नहीं था। ऐसा कहना बिलकुल गलत है। पतंजलि के प्रोडक्ट्स बाजार में आने से पहले भी आयुर्वेद के उत्पादों की भरमार थी। श्री श्री रविशंकर जी की ‘आर्ट इफ लिविंग’ के उत्पाद, हिमालयन, डाबर, झंडू, बैद्यनाथ, आदि के उत्पाद पतंजलि के आने के पहले से ही बाजार में बिक रहे थे। लेकिन ये सब बाजार को इस तरीके से प्रभावित नहीं कर पाए जिस तरीके से पतंजलि ने बाजार को प्रभावित किया है। यहाँ तक आज विदेशी कंपनिया भी पतंजलि का मुकाबला करने के लिए अपने हर FMCG प्रोडक्ट को हर्बल, नेचुरल, आर्गेनिक, आयुर्वेदिक, जैसे शब्दों से सजा रही है। ये बात तो तय है कि पतंजलि को कोई प्रतिस्पर्धा मुक्त बाज़ार नहीं मिला था। तो क्या हैं वह कारण जिसने रातों रात पतंजलि को सबसे विश्वशनीय ब्रांड बना दिया है?
Patanjali Ayurved – Economical Business Structure
कुछ अर्थशास्त्री तर्क देते हैं कि पतंजलि की कामयाबी का कारण है उनका ‘मितव्ययी व्यावसायिक ढांचा’ (Economical Business Structure), जहाँ विदेशी FMCG कंपनियां मार्केटिंग (प्रचार-प्रसार) पर 10%-16% तक खर्च करती हैं वहीँ पतंजलि का मार्केटिंग बजट मात्र 8% है। पतंजलि की मार्केटिंग योग शिविरों और संतुष्ट उपभोक्ताओं के मौखिक प्रचार द्वारा होती है। जहाँ FMCG कंपनियां श्रमशक्ति (Manpower) पर 6%-7% तक खर्च करती हैं वहीँ पतंजलि का अपनी श्रमशक्ति पर खर्च मात्र 3% है। प्रबंधकीय खर्चे (Administrative Cost) मात्र 2% हैं वहीँ अन्य विदेशी कंपनियां इस पर 10% तक खर्चा करती हैं। पतंजलि के स्टोर्स ऐयर कंडीशनर नहीं हैं, ना ही वहां ब्रेंड पोशाकों में हेल्पर्स (सहायकों) की लाइन लगी होती है। इन्ही मितव्ययी व्यावसायिक ढांचे के कारण ही पतंजलि अपने उपभोक्ताओं को उत्तम कोटि का अपना उत्पाद अन्य उत्पादों के मुकाबले 20% से 30% सस्ता मोहिय्या करवा पाते हैं। तो क्या यही कारण है पतंजलि की कामयाबी का? नहीं, उपरोक्त सभी कारण पतंजलि को प्रतिस्पर्धा में एक बढ़त तो जरूर देते हैं मगर इस विजय गाथा का ये एक पहलु मात्र है।
Patanjali Ayurved – Its Moto and Mission Statement
बाबा रामदेव की कामयाबी का कारण भारतीय जनमानस के स्वदेश प्रेम व स्वाभिमान की पुनर्जागृति में छुपा है। इस तर्क का विश्लेषण करने से पहले एक नज़र पतंजलि कंपनी के चिन्ह (logo, symbol) पर डालते हैं। पतंजलि का सिद्धांत-वाक्य (Moto) है “भारत स्वाभिमान”। और कंपनी का ध्येय-वाक्य (Mission Statement) है “योग से व्यैक्तिक एवम् राष्ट्रिय चरित्र निर्माण का आंदोलन।” ऐसे गहन राष्ट्रिय चिंतन वाले वाक्य किसी और FMCG कंपनी में नहीं मिल सकते। बाबा रामदेव ने बेशक नया कुछ नहीं किया पर एक पुरानी चीज़ को नए ढंग से जरूर किया है। रामदेव से पहले भी भारत में बहुत से योग गुरु हुए हैं। लेकिन बाबा रामदेव ही योग को घर घर पहुँचाने में कामयाब हुए हैं।
Patanjali Ayurved: Business came later, Service first
पहले चरण में बाबा रामदेव ने टीवी के माध्यम से योग और आयुर्वेद (पांचवा वेद भी कहा जाता है) का प्रचार प्रसार किया। घरेलु आयुर्वेदिक नुस्खों का ज्ञान निःशुल्क दिया। पहले दिन से व्यापार का नहीं सोचा। दूसरे चरण में धीरे-धीरे अपने शिविरों और उनके टीवी पर इसके सीधे प्रसारण के माध्यम से विदेशी दवाई कंपनियों का सच जनता को बताया कि कैसे ये कंपनियां कौड़ी की चीज़ आसमानी दामों पर बेच कर हमें लूट रही हैं। उसी दौर में बड़े नाम जैसे Cadbury, Coca-Cola, Nestle आदि ने खुद के कृत्यों द्वारा ही अपनी साख पर स्वयं बट्टा लगा लिया। जनता को भी तब बाबा रामदेव की बातें सच मालूम होने लगी। आखरी चरण में जब बाबा ने अपने खुद के उत्तम कोटि के उत्पाद बाजार में प्रस्तुत कर दिए तो विदेशी कंपनियों ने बाबा के प्रोडक्ट्स को अवैज्ञानिक बताया। उत्तर में बाबा रामदेव ने अपने प्रोडक्ट्स के स्तर व जाँच प्रक्रिया को सर्वोच्च कोटि का कर दिया। जहाँ भारत की हर बड़ी कम्पनी पतंजलि की सिर्फ एक गलती का इंतज़ार करती रहती हो वहां पतंजलि के उतपदों की गुणवत्ता व विश्वशनियता स्वयंसिद्ध हो जाती है।
जब आज का उपभोक्ता पतंजलि के प्रोडक्ट्स पर ‘भारत निर्मित’ (Made in India) लिखा देखता है तो गर्व महसूस करता है। जब वो उत्पादों पर जड़ीबूटियों का प्रचलित हिंदी नाम देखता है तो उसे अपने बाप दादाओं द्वारा बताए नुस्खे फिर से याद आने लगते हैं; उपभोक्ता एक अपनत्व सा महसूस करता है। जब वह पतंजलि स्टोर्स या चिकित्सालय जाता है तो वहां साधारण कपड़ो में मौजूद निःशुल्क सलाह देने वाले चिकित्सकों व सलाहकारों से वो एक सामंजस्य स्थापित कर पाता है। ये स्वाभिमान, अपनेपन का अहसास, बाबा रामदेव की बेदाग़ छवि, मुख्य उद्देश्य लाभ की बजाय समाज कल्याण होना पतंजलि की USP है।
Patanjali Ayurved: Maybe it’s Nationalism too, but it’s about Health
आलोचक तो आज भी इस कामयाबी को राष्ट्रवाद की लहर के रूप में देखते हैं और इसे एक खतरा भी बताते हैं। पर सच्चाई यह है कि सिर्फ राष्ट्रवादियों को ही अपने स्वास्थ की चिंता नहीं होती। आज हर वो आदमी जो अपने स्वास्थ के प्रति जागरूक है, आयुर्वेद की ओर आकर्षित है। पतंजलि के उपभोक्ताओं में भारी संख्या मुसलमानो की भी है जबकि उनके उलेमाओं ने पतंजलि के खिलाफ फतवा तक जारी किया हुआ है। निष्कर्ष यही है कि बाबा के पास राष्ट्रवादी स्वाभिमान और उत्तम कोटि उत्पाद का एक डेडली कॉम्बिनेशन है जिसकी प्रतिस्पर्धा में निकट भविष्य में कोई नज़र नहीं आता।
Patanjali Ayurved: An inspiring story
बांस के बीज को जब मिट्टी में रोपा जाता है तब आरंभिक 4 वर्षों तक उसकी पानी, धुप, उर्वरक आदि से सेवा करने के बावजूद भी जमीन से ऊपर किसी तरह का कोई अंकुर तक नज़र नहीं आता। फिर पांचवे साल में अचानक कुछ अद्भुत घटता है। मात्र 6 हफ़्तों में ही बांस का पेड़ 80 फ़ीट तक बढ़ जाता है। तो क्या वह बीज पहले 4 सालों तक इसीलिए सुप्त अवस्था में रहता है कि पांचवे साल अचानक से 80 फ़ीट का हो जाए। नहीं, वो अपने पहले 4 साल जमीन के निचे अपने जड़ो को इतना मज़बूत कर रहा होता है ताकि वो 80 फ़ीट के विशालकाय व भारी वृक्ष को सहारा दे सके। यही काम पतंजलि ने भी किया है। पतंजलि ने 2003 से 2008 तक सिर्फ अनुसन्धान ही किया है। तब तक किसी भी प्रकार की व्यापारिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लिया। तो आज की ये अचानक से हुई तरक्की कोई तुक्का नहीं है। इसके पीछे एक लंबी साधना छुपी है। पतंजलि की जड़ें मजबूत हैं; अब देखना यह है कि पतंजलि और कितनी उचाईयों को छु पाती है।
एक गुरुकुल शिक्षित भारत के बेटे ने विश्व को यह तो दिखा ही दिया है कि व्यापर में कामयाब होने के लिए बड़े कॉलेज से डिग्री या लाभ-इच्छा का होना ही जरूरी नहीं, बल्कि देशसेवा के भाव को प्रथम रख कर भी आप एक कामयाब व्यापारी बन सकते हैं।
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