गाली गलौच से ही आएगी क्रांति, ऐसा मेरा नहीं मायावती जी का मानना है

Mayawati Dayashankar Prostitute मायावती दयाशंकर गाली

‘गाली’, ये शब्द उन घृणित शब्दों को सभ्य भाषा में बतलाने के लिए प्रयोग किया जाता है जो अपमान-सूचक हैं। गाली लगभग हर कोई देता है, कोई खुल्लम-खुल्ला, कोई छुप-छुपाकर। हमारे सभ्य समाज में गाली को घृणित भाव से देखते हैं और बच्चों को इसका प्रयोग ना करने की चेतावनी तो समय-समय पे मिलती ही रहती है। खैर, अगर आप सोच रहें हैं कि मेरा यह लेख ‘गाली’ पे है तो मैं बता दूँ ये ‘गालियों की राजनीति’ पे है। जी हाँ, गालियों की राजनीति हो रही है और कहीं नहीं अपने ही देश के एक राज्य उत्तर प्रदेश में, एक पार्टी का नेता दूसरी पार्टी की नेत्री को वेश्या कहता है और दूसरी पार्टी के नेता उसके परिवार, उसकी माँ-बेटी और बीवी को सामूहिक रूप से गाली देते हैं।

चलिए पहले आपको विस्तार से पूरा वाकया सुनाता हूँ। दयाशंकर सिंह बीजेपी यूपी अध्यक्ष केशव मौर्य की कमेटी में उपाध्यक्ष थे। वह मऊ में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने गये थे वहाँ उन्होंने बसपा अध्यक्ष मायावती के टिकेट खरीद फरोख्त की तुलना वेश्यावृत्ति से कर दी। मायावती ने संसद में इस पे कहा की यह नारी-शक्ति का अपमान है और ये गाली दयाशंकर की माँ-बहन के लिए है। बीजेपी ने दयाशंकर सिंह को छः साल के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया और उनपर एफआईआर भी दर्ज़ हो गयी। मामला यहाँ पे खत्म हो जाना चाहिए था परन्तु ये राजनीति है और यहाँ बहती गंगा में सभी हाथ धोते हैं, गुरुवार को बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता सड़को पर उत्तर आये और दयाशंकर के खिलाफ प्रदर्शन समझ रहें हैं तो ये आपकी भूल है, 21जुलाई को हुए इस प्रदर्शन में नसीमुद्दीन सिद्दिकी, राम अचल राजभर, राष्ट्रीय सचिव मेवालाल की अगुवाई में दयाशंकर को अभद्र गालियां देते हुए नारे लगाये गए। नारे कुछ इस प्रकार से थे:-

1. दयाशंकर की बेटी को पेश करो-पेश करो।
2. दयाशंकर की बहन को पेश करो-पेश करो।
3. दयाशंकर कुत्ते को पेश करो-पेश करो।

इन शब्दों और नारों को सुनकर नेता दयाशंकर के परिवार को मानसिक आघात पहुँचा, उनकी बेटी बीमार हो गयी और उसे अस्पताल ले जाना पड़ा। दयाशंकर की माँ और पत्नी ने मायावती और बसपा के तमाम नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई है परन्तु अभी तक नसीमुद्दीन सिद्दीकी एवं अन्य नेताओं को गिरफ्तार नहीं किया गया है।

मैं इस विषय पे कोई निष्कर्ष नहीं निकालूँगा, ना ही किसी पे कोई आरोप लगाऊंगा। बसपा कार्यकर्ताओं द्वारा जो भी किया वह लोकतांत्रिक व्यवस्था का खुलेआम मज़ाक बनाना ही कहलायेगा। मेरी समझ और जानकारी के हिसाब से देश में इसके पहले किसी सामूहिक रैली में ऐसी शर्मनाक हरकत नहीं हुई है। मायावती जी, मैं मानता हूँ की दयाशंकर सिंह ने बहुत ही अशोभनीय टिप्पणी करी है, उसकी मैं कड़े शब्दों में भर्त्सना करता हूँ, इस नीच हरकत पर मेरी सहानभूति आपके साथ है परन्तु क्या आपने और आपकी पार्टी के बड़े नेताओं ने जो किया वह सही था। आपका भरी संसद में यह कहना की यह गाली दयाशंकर की माँ-बहन के लिए है अपमानजनक नहीं था ? दोषी केवल दयाशंकर था उसका परिवार नहीं, तो फिर उसके परिवार को यह सजा क्यों ? जरा सोचिये उस 12 साल की बच्ची की मनोस्थिति के बारे में, एक स्कूल जाने वाली बच्ची के मन में इतना डर भर दिया आपलोगों ने की उसे अस्पताल ले जाना पड़ा। क्या उस लड़की के मन में असुरक्षा की भावना नहीं घर कर जायेगी ? मायावती जी, आप सामंती परम्परा, दलित विरोधी प्रथाओं की विरोधी हैं मगर आपके नेताओं का यह कृत्य भी उसी सामंती ‘खून के बदले खून’ वाली परम्परा का हिस्सा है।

आप कहती हैं कि यह पार्टी कार्यकर्ताओं का गुस्सा था आपके अपमान के विरुद्ध में, मैं ऐसा बिलकुल नहीं मानता, यह तो महज आपका शक्ति प्रदर्शन मात्र था। मायावती जी, आप इतनी सत्ता-लोलुप हो चुकी हैं की स्वयं के अपमान पे भी राजनीति करने से नहीं चुकती हैं। आप खुद को भीमराव आंबेडकर का अनुयायी बतलाती हैं मगर उनके बनाये संविधान में आपका बिलकुल भी विश्वास नहीं है। अगर आपका संविधान में विश्वास होता तो आप अपनी लड़ाई न्यायालय में लड़ती, युँ सड़को पे हंगामा ना करवातीं। विडम्बना तो इसे भी कहेंगे की ये सारा कारनामा लखनऊ में हो रहा था, उस शहर में जो अपनी तहजीब के लिए मशहूर रहा है।

मायावती जी, मैं आपकी और आपके नेताओं कि बेशर्मी को भी सलाम करता हुँ की कैसे अपनी गलती मानने के बजाय आप लोग पेश करने का मतलब समझाने लगते हैं, आप तो यह तक कह गयीं की यह सब दयाशंकर ये परिवार को एहसास करवाने के लिए किया गया की आपको कितनी तकलीफ पहुंची थी, मायावती जी इसे एहसास कराना नहीं टॉर्चर करना कहते हैं सरल भाषा में।

वैसे भी गालियों और नफरत की राजनीति कि शुरुआत इस प्रदेश में आपने ही की थी अपने तिलक, तराजू और तलवार वाले बयान से। पहले आपने आग लगवाई फिर उस आग से खेलीं और जब आपके खुद के हाथ झुलसने लगे तो तकलीफ होने लगी आपको। खैर, अगर आपको अपनी स्वयंभू राजनीति से फुरसत मिल जाये तो जरा अपने कार्यकर्ताओं को यह समझा दीजिये कि जिनके खुद के घर शीशे के होते है, वो दूसरों के घरों पे पत्थर नहीं फेंका करते।

धन्यवाद

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