भारत का अंतिम विकल्प

Indus water treaty उरी

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जम्मू-कश्मीर के उरी क्षेत्र में आतंकवादी हमला, 17 जवान शहीद. आतंकवादी पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से थे. हम खुश हो रहे हैं क़ि हमने 4 आतंकवादियों को मार गिराया, अरे भई वो तो मरने ही आये थे, ऐसा तो नहीं था ना क़ि 15-20 मरेंगे फिर चले अपने घर. वो सोच कर ही आये थे मरते तक मारना हैं.

18 सितम्बर को उरी में जो कुछ हुआ वो अत्यंत निंदनीय हैं.

पुरे देश में मातम का माहौल हैं, लेकिन देश ग़ुस्से में हैं. ऐसे में जनता चाहती हैं क़ि अब सेना को खुली छूट दी जाए. सरकार इस बार ‘कड़ी निंदा’ के बजाय आक्रामक रूख अपनाए और पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दे. लेकिन फ़िलहाल किसी भी भावना में बहकर सरकार कदम नहीं उठाना चाहती.

हमले के बाद बैठकों का दौर शुरू हो गया, बैठक के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा – “पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है, अब समय आ गया है कि सारी दुनिया उसे अलग-थलग कर दे.”

बिल्कुल सहीं बात..! लेकिन दुनिया तो छोड़िये, पहले ये देखना हैं क़ि हमनें पाकिस्तान को कितना अलग-थलग किया. क्यूँ ना शुरआत अपने ही देश से क़ी जाए. दोनों ओर के दूतावास, सारे व्यापारिक संबंध, ट्रेन और बस, कलाकारों का आना-जाना, नदी जल बंटवारा समझौता, सर्वप्रथम इन सभी चीजों को सख़्ती से समाप्त करना चाहिए. अगर हमकों पाकिस्तान  को मारना हैं तो पहले उसे आर्थिक चोट पहुँचाने की ज़रूरत हैं.

सिर्फ ‘सिंधु जल संधि’ (Indus Water Treaty) को ही ख़त्म करने से हम पाकिस्तान की 50% कृषि अर्थव्यवस्था को झटका दे सकते हैं.

इस संधि के तहत भारत के सिंधु, झेलम, चिनाब, सतलज, व्यास और रावी नदियों का पानी पाकिस्तान को जाता हैं, यह संधि 1960 में प्राधानमंत्री पं. नेहरू के समय की गई थी.

जब हम ये सभी कार्य करके दुनिया से पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने की बात करेंगे तो हमारे अपील में तर्क भी होगा और वज़न भी.

क्या सवा सौ करोड़ लोगो का देश इतना कमजोर हैं कि अपनी रक्षा और शत्रु पर हमला करने से पहले दुनिया भर से इजाजत मागें..?? नहीं.. बिल्कुल भी नहीं..

दरअसल कमजोरी देश में नहीं बल्कि राजनेताओं में हैं. पहले पठानकोट और अब कश्मीर के उरी में आतंकी हमले में सेना के जवान शहीद हो गये. लेकिन हमने किया क्या, सिवाय कड़ी निंदा के.

लेकिन हम भारतीयों के लिए आज भी उन जवानों का होना, राजनेताओं के होने से ज्यादा जरूरी है. अब वक्त आ गया है क़ि म्यांमार की तरह पीओके में घुसकर आतंकियों का शिकार किया जाये.

जहाँ तक बात हैं थल सेना क़ि तो सेना की तोपे पुरानी हो चली है. गोला-बारूद के स्टॉक की भी कमी है. हथियारों की कमी हैं. हमारे पास ऑइल रिज़र्व कांग्रेस शासन में 15 दिन का था जो अब बढ़कर 6 महीने का हो गया हैं, इसे और बढ़ाने की कोशिशे जारी हैं.

अगर बात हम वायुसेना की करे तो वहां भी स्तिथि नाजुक ही है. हवा से सतह पर वार करने वाले जगुआर और मिराज पुराने हो चले है. राफेल वाली डील अभी पूरी नहीं हुयी है. विमान से दागे जा सकने वाली मिसाइलों की भी कमी है. अमेरिकी हेलिकॉप्टर अपाचे की डिलीवरी नहीं हुई हैं.

लेकिन जलसेना में कई लड़ाकू जहाज नेवी के पास उपलब्ध है. हमारे पास युद्धपोत विक्रमादित्य भी है जिससे हमारी ताकत और समुन्दर में पहुँच कई गुना बढ़ जाती है.

मिसाईल की दुनिया में तो हम दुनिया के शीर्ष देशों में आते है. ब्रह्मोस, अग्नि, निर्भय, K4,K5 जैसी कई अत्याधुनिक मिसाइल हमारे पास है. और पाकिस्तान जैसे छोटे देश को ख़त्म करने के लिए तो हमारे छोटे मिसाईल ही काफी है.

देश के बड़े शहरों के ऊपर नाभिकीय रक्षा कवच बनाने का कार्य प्रगति पर है, लेकिन इसमें अभी समय की आवश्यकता है.

भारत एक विकासशील राष्ट्र हैं. युद्ध की स्तिथि में नुकसान भारत का भी होगा. यदि युद्ध 15-20 दिन भी चलता हैं तो यकीनन हम जीत जाएंगे लेकिन देश की अर्थव्यवस्था 10-12 वर्ष पीछे चले जायेगी, ऐसी परिस्थिति में कोई भी राष्ट्र युद्ध नहीं चाहता.

सबसे पहले हमें पाकिस्तान के अर्थव्यवस्था पर हमला करना चाहिए, साथ ही युद्ध सामग्री की तैयारियां शुरू कर दी जाएँ जिससे अगर युद्ध भी छिड़े तो भारत मजबूत स्तिथि में हो.

दूसरी तरफ पाकिस्तान अपनी हरक़तों से कभी बाज़ नहीं आयेगा, इसलिए युद्ध तो निश्चित हैं. लेकिन शिकार करने से पहले उसे चारों तरफ से घेरा जाए.

भारत- अमेरिका, रूस, चीन के साथ ही पुरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण राष्ट्र हैं, इसलिए एक-दो देशों को छोड़कर कोई पाकिस्तान के लिए भारत से रिश्ता खराब करना नहीं चाहेगा. अब छोटी सी गोलीबारी का भी मुंहतोड़ जवाब दिया जाये. अंतिम विकल्प के रूप में युद्ध तो है ही.

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