बाकी सब तो ठीक है पर ये पार्टी है या ट्रैक्टर?

योगेन्द्र यादव प्रशांत भूषण स्वराज इंडिया

Image Courtesy: India Today

योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने अपने “स्वराज अभियान” का अंत कर एक नई राजनैतिक पार्टी “ स्वराज इंडिया ” का गठन कर लिया है। हालॉकि उनसे इससे ज़्यादा की उम्मीद भी नहीं थी , मतलब वो अपने स्वराज अभियान के दौरान सड़को पर उतरने के बाद लोगो की उम्मीदों पर भी खरे उतरे है।

टीवी पर सबने देखा की योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण दोनों को आम आदमी पार्टी से बेइज़्ज़त करके निकाला गया था ।

हालाँकि राजनीती विश्लेषकों का मानना है की आम आदमी पार्टी से निकालने पर उनकी बेइज़्ज़ती नहीं हुई थी क्योंकि सारी बेइज़्ज़ती तो उनकी उसी दिन हो गयी थी जब उन्होंने आम आदमी पार्टी ज्वाइन की थी उसके बाद बेइज़्ज़ती करने लायक कुछ  इज़्ज़त बची ही नहीं थी।

आम आदमी पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने भी अपना नाम सार्वजानिक ना किये जाने की शर्त पर इस बात की पुष्टि की, कि यादव और भूषण को बेइज़्ज़त करके नहीं निकाला गया था बल्कि पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक से बाउंसर्स से हाथापाई करवा के निकाला गया था।

इस पुष्टि से भी आम आदमी पार्टी की कथनी और करनी का अंतर और दोहरा चरित्र उजागर होता है क्योंकि पार्टी में संजय सिंह के होते हुए भी हाथापाई करने के लिए बाहर से बाउंसर्स को बुलाया गया। मतलब पार्टी केवल विज्ञापनों पर ही अपव्यय नहीं करती है बल्कि शक्ति प्रदर्शन पर भी करती है।

“ स्वराज इंडिया ” का नाम सुनकर किसी राजनैतिक दल का नहीं बल्कि किसी ट्रेक्टर का ख्याल दिमाग में आता है।

योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को समझना होगा की राजनीती में लोगो की अपेक्षाओ का बोझ अपने कंधो पर लादना होता है किसी ट्रैक्टर पर नहीं। ट्रैक्टर का उपयोग राजनीती में लोगो की अपेक्षाओ को लादने में नहीं बल्कि लोगो को नेताओ की रैली में दिहाड़ी के 100 -200 रूपये देकर रैली स्थल तक लादने तक ही सीमित है।

योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण दोनों बेहद प्रतिभाशाली है , इसलिए नहीं की वो जाने माने चुनावी विश्लेषक या वकील है बल्कि इसलिए की वो केजरीवाल के इरादों को बहुत जल्दी भाँप गए और कुमार विश्वास के होते हुए भी आम आदमी पार्टी पर से उनका विश्वास , भाप की तरह उड़ गया।

“ स्वराज इंडिया ” के अध्यक्ष योगेंद्र यादव इतना मीठा बोलते है की मानो उनके ज़ुबान पर कई अवैध चीनी मीले चल रही हो , एक दो बार गलती से टीवी पर उनका पूरा इंटरव्यू देख लिया था तो टीवी को डायबिटीज हो गया था ,जिसके चलते आज भी टीवी को इन्सुलिन के इंजेक्शन देने पड़ते है।

योगेंद्र यादव कहते है की बचपन में उनका नाम सलीम हुआ करता था, वाकई ये बात उनके पक्ष में जाती है क्योंकि अगर उनकी पार्टी “ स्वराज इंडिया ” नहीं चली तो वो किसी जावेद को संभालकर “सलीम -जावेद” की डुप्लीकेट जोड़ी बनाकर राइटर बन सकते है या फिर किसी सुलेमान को संभालकर “सलीम -सुलेमान “की डुप्लीकेट जोड़ी बनाकर म्यूजिक कंपोजर भी बन सकते है।

प्रशांत भूषण की वकालत अच्छी चलती है वरना वो भी जावेद या सुलेमान बनकर सलीम , मतलब योगेंद्र यादव की मदद कर सकते थे।

योगेंद्र यादव जहाँ मीठा बोलते है वहीँ प्रशांत भूषण बहुत सॉफ्ट बोलते है। प्रशांत भूषण के इतने सॉफ्ट -स्पोकन होने की वजह से ही केजरीवाल ने उन्हें अपनी पार्टी से निकलवा दिया क्योंकि भूषण की सॉफ्ट बाते सुनकर उनका पत्थर जैसा दिल भी पिघलने लगता था।

प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव की मीठी और सॉफ्ट आवाज़ को मिलाकर अगर इनकी पार्टी का एंथम सांग बनाया जाए तो उस सांग से ना केवल कार्यकर्ताओ को उत्साहित किया जा सकता है बल्कि इसको छोटे बच्चो को सुलाने के लिए लोरी के काम में भी लाया जा सकता है। ये लोरी सुन -सुन कर बच्चे ना केवल बड़े होंगे बल्कि “ स्वराज इंडिया ” पार्टी ज्वाइन करने के लिए प्रेरित भी होंगे।

इसी मीठी -सॉफ्ट आवाज़ के चलते योगेन्द्र यादव -प्रशांत भूषण ने तय किया है की उनकी पार्टी “ स्वराज इंडिया ” आगामी पंजाब चुनाव नहीं लड़ेगी क्योंकि उनकी मीठी – सॉफ्ट आवाज़ पंजाब में सिद्धू की “आवाज़ -ए -पंजाब” का मुकाबला नहीं कर पायेगी।

अच्छी आवाज़ के साथ-साथ योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण दोनों अच्छे व्यक्तित्व के भी धनी है और धनी व्यक्ति के पास मनी भी बहुत होता है इसलिए आम आदमी पार्टी की स्थापना के वक़्त प्रशांत भूषण और उनके पिताजी ने एक करोड़ का चंदा दिया था और इसका बदला केजरीवाल ने उनको रोड दिखा कर दिया।

योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को राजनीती का पर्याप्त अनुभव है और इसका फायदा उनकी पार्टी  स्वराज इंडिया  को भी मिलेगा। उनको अपनी पुरानी पार्टी (आप) की तरह ईमान बेचने की ज़रूरत नहीं है वो फिलहाल पार्टी के टिकट बेचकर ही काम चला सकते हैं।

स्वराज इंडिया  को दूरदर्शी नेताओ की पार्टी भी कहाँ जा सकता है क्योंकि ज़्यादातर नेता जहाँ राजनीती में आने के बाद और थोड़ा लोकप्रिय होने के बाद अपने ऊपर फेंके हुए जूते और स्याही का सामना करते है वहीँ योगेन्द्र यादव और प्रशांत  भूषण तो राजनीती में आने से कई वर्ष पहले से इन चीज़ों का सामना करने की नेट -प्रैक्टिस कर रहे है।

योगेन्द्र यादव पर जहाँ स्याही फेंकी जा चुकी है वहीँ प्रशांत भूषण के ऑफिस में घुसकर कुछ लोगो ने जूतों से उनकी पिटाई भी कर राखी है। वैसे इन घटनाओ की निंदा की जानी चाहिए। मैंने भी इन घटनाओ की निंदा की थी , हालांकि मैं कड़ी निंदा नहीं कर पाया था ,क्योंकि निंदा करने से पहले मैंने मिठाई खा ली थी क्योंकि जैसे ही मैंनै इन घटनाओ के बारे में सुना, वैसे ही मेरे दिल में ख्याल आया, “कुछ मीठा हो जाए”।

हर राजनैतिक दल की तरह “स्वराज इंडिया” से भी लोगों ने बहुत उम्मीदे लगा रखी हैं और कुछ लोगो ने अपने पैसे भी लगा रखे है। लगने और लगाने के इस माहौल में ,मैं भावुक समर्थको से अपील करता हूँ की वो प्लीज़ इस नई पार्टी से दिल ना लगाए क्योंकि, “शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है”।

अभी पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है की वो पहले चुनाव लड़ने के लिए फंड जुटाए या फिर अपनी सभाओ और रैलियों के लिए भीड़ जुटाए क्योंकि भीड़ जुटाने के लिए भी पहले फंड की ही ज़रूरत होती है।

योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण दोनों के लिए इन “चुनौतीयो और पनौतीयो” से पार पाना जरुरी है तभी ” स्वराज इंडिया ” का बेडा पार होगा।

उम्मीद की जानी चाहिए की ये नया दल पुराने दलो की तरह दलदल में नहीं गिरेगा और इस दल की दाल भी तभी गलेगी जब राजनैतिक तापमान बढ़ेगा और वैसे भी दाल इतनी मँहगी हो चुकी है की अभी “दाल में काला” देख पाना असंभव है।

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