एक सांसद को विदेश मंत्रालय के काम पर शक़ था, जनरल वी के सिंह ने ऐसे दूर की जिज्ञासा

वी के सिंह सुषमा स्वराज विदेश मंत्रालय

कुछ समय पहले एक हिंदी फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई थी जिसने बॉक्स-ऑफिस पे धूम मचा दी थी। अक्षय कुमार अभिनीत इस फिल्म का नाम ‘एयरलिफ्ट’ था और फिल्म की कहानी नब्बे में हुए इराक-कुवैत युद्ध के समय वहां रह रहे भारतियों की परेशानी पे आधारित थी, कहानी का मुख्य पात्र अपने साथियों के साथ वापस स्वदेश लौटना चाहता है मगर भारतीय विदेश मंत्रालय की लुंज-पुंज व्यवस्था के कारण उसे ना ना प्रकार की समस्यायों से उलझना पड़ता है। अगर आप उन व्यक्तियों में से हैं जो इस देश की सरकारी व्यवस्था में परिवर्तन देखना चाहतें हैं तो आपको भी फिल्म देख कर एकबारगी गुस्सा जरुर आया होगा। कोई भी समझदार व्यक्ति इस बात पे जरुर सहमत होगा की कुछ महान ताकतों ने सत्ता में रह कर व्यवस्था में इतने क्रन्तिकारी बदलाव लाये की जो व्यवस्था ‘सबको साथ में ले कर’ चलने वाली होनी चाहिए थी वो ‘अपने सामान की रक्षा स्वयं करें’ वाली व्यवस्था बन गयी। अगर आप विदेश जा रहें हैं तो फिर आपको अपना ख्याल खुद ही रखना पड़ता था, चाहे आप कितनी भी बड़ी समस्या में फँस जाएँ आप अपने देश और अपनी सरकार से मदद के बारे में सोच भी नहीं सकते थे, दुनिया के लगभग हर महत्वपूर्ण मुल्क में भारतीय दूतावास जरुर होता था मगर सिर्फ नाम का, आप उससे कभी मदद की उम्मीद नहीं रख सकते थे।

पर हर अँधेरी रात की एक एक सुबह होती है, वैसे ही आज से करीब दो वर्ष पूर्व भारत की जनता ने क्रांतिकारी सरकार की भिन्न-भिन्न तरह क्रांति देख लेने के बाद उन्हें थोड़ी उर्जा जमा करने के लिए विपक्ष में बैठा दिया और सत्ता वर्तमान समय के हिटलर कहलाने वाले नरेंद्र मोदी के हाथों सौंप दी, खुद को दिए गए उपनाम को सार्थक करते हुए हिटलर नरेंद्र मोदी ने भारत की सबसे अनमोल धरोहर, उस लुंज-पुंज सरकारी व्यवस्था का दमन शुरू कर दिया।

मोदी ने इस धरोहर का सम्पूर्ण दमन करने के लिए कई कमांडर नियुक्त किये जिन्हें आम बोलचाल की भषा में मंत्री बोला जाता है, इन मंत्रियों ने अपने निर्धारित मंत्रालय से सिलसिलेवार दमन की शुरुआत की। इन्ही मंत्रियों में से एक मंत्री थी सुषमा स्वराज, सुषमा ने अपने जनरल वी के सिंह के साथ मिलकर विदेश मंत्रालय में दमन अभियान जारी रखा। अब इसका परिणाम ये हुआ की कभी ‘यात्रीगण अपने सामान की सुरक्षा स्वयं करें’ का राग अलापने वाला विदेश मंत्रालय ‘सबका साथ, सबका विकास’ वाली धुन पे नाचने लगा। जो भारतीय भूल चुके थे की भारतीय विदेश मंत्रालय नाम की भी कोई संस्था होती है उन्हें विदेश मंत्रालय खुद ही अपनी याद दिलाने लगा, चाहे विदेश में फंसे किसी भारतीय को मुश्किल हालातों से निकलकर सकुशल स्वदेश वापिस लाना हो या फिर देह-त्याग कर चुकी किसी पुण्यात्मा को अपने देश की मिटटी में खाक होने का सौभाग्य प्राप्त करवाना हो, विदेश मंत्रालय हर काम को पूरी बखूबी और तत्परता से अपनी जिम्मेवारियों का निर्वाह कर रहा है। लेकिन भाई, मैं रहता हूँ दिल्ली में और जैसे की मेरे मुख्यमंत्री जी को बिना सबूत के किसी भी तथ्य की सत्यता पे यकीं नहीं होता है उसी तरह मैं भी इस असमंजस में था की विदेश मंत्रालय के दावे में कितनी सच्चाई है?

मेरे ही तरह एक जिज्ञासु राज्यसभा सांसद ने विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह से विदेश मंत्रालय के दो सालों में किये गए कामकाज का हिसाब-किताब मांग लिया और उन्हें जवाब भी मिला, बाकायदा लिखित में।

गुरुवार, 8 दिसम्बर को राज्यसभा में दिए गए अपने लिखित बयान में वी के सिंह ने बतलाया की पिछले दो सालों में नेपाल सहित विभिन्न देशों से तक़रीबन 90 हज़ार प्रवासी भारतियों की स्वदेश वापसी हुई है, साथ में उन्होंने यह भी जोड़ा की प्रवासी भारतीय समय-समय पे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए अपने निकटतम भारतीय दूतावास से संपर्क करते रहते हैं और उनकी समस्या का समाधान करने का पूरा प्रयास किया जाता है। जवाब में ये भी बतलाया गया कि सरकार ने 2014 से 2016 तक 92 हजार 211 भारतीयों की स्वदेश वापसी कराई है। वी के सिंह ने बताया कि इराक से 7,925, यमन से 4,748, सउदी अरब से 4,570, ओमान से 4,043, लीबिया से 3,775 तथा ब्रिटेन से 305 भारतीयों की वापसी कराई गई है। गौरतलब है की स्वदेश लौटने वालों में नेपाल में रहने वाले प्रवासी भारतियों की है और इसका कारण वहां त्रासदी के रूप में आया भयानक भूकंप और उसके बाद मधेशी आन्दोलन की दौरान भड़की हिंसा हो सकते हैं।

खैर, लौटने के कारण जो भी हो ख़ुशी की बात तो यही है की अब सात समुन्दर पार किसी भारतीय को किसी भी परेशानी से दो-चार होने पे विवशता के कारण हाथ नहीं मलना पड़ेंगे अपितु उसे इस बात का आश्वाशन रहेगा की समस्या गंभीर होने पे उसे बस भारतीय दूतावास का नंबर याद रखना है उसके बाद मदद जरुर पहुचेगी, उसे निराशा हाथ नहीं लगेगी। अगर आप भी मेरी तरह इस देश को एक सुपर पॉवर के रूप में देखना चाहते हैं तो अपनी डायरी के किसी पन्ने में नोट कर लीजिये की हम सुपर-पॉवर कोई बड़ी तोप-मिसाइल बना लेने से नहीं बन जायेंगे बल्कि इन्ही छोटे-छोटे बदलावों से बनेगें, किसी भी देश की असली ताकत उसके नागरिक ही होते हैं और असली सुपर-पॉवर वही है जो अपने नागरिकों के हितों का ख्याल रखता है आखिर उस एहसास से बेहतरीन एहसास और क्या हो सकता है की आप दुनिया में कहीं भी हों बस आपके देश का नाम ही काफी हो आपका सम्मान बढाने के लिए।

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