संजय लीला भंसाली पर हुए हमले की हम भर्त्सना करते हैं मगर…

भंसाली पद्मावती

राजस्थान में फ़िल्म ‘पद्मावती’ की शूटिंग के दौरान स्थानीय राजपूत संगठन ने कथित तौर पर फ़िल्म के निर्देशक और टीम पर हमला किया। कहा तो यह भी जा रहा क़ि निर्देशक संजयलीला भंसाली को दो-चार थप्पड़ भी जड़ा गया हैं। खैर इस मामले की कोई पुलिस रिपोर्ट नहीं हुई हैं तो हाथ-पाई की घटना को पुरे विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता हैं। पूरा बॉलीवुड भंसाली के समर्थन में उतर चुका हैं, और अनुराग कश्यप तो हिन्दू चरमपंथ की बात भी कर चुके हैं। फ़िल्म इंडस्ट्री पूछ रहा हैं क़ि हिंसा और इस फ़िल्म को रोकना कहाँ तक सही हैं ? फ़िल्म इंडस्ट्री के आलावा कुछ आम नागरिक का कहना हैं कि यह अचानक किया गया हमला है, पहले इस विषय पर बात की जानी चाहिए थी। लेकिन किसी मुद्दें पर टिप्पणी करने या अपनी राय रखने से पहले उन्हें पूरी जानकारी होना भी ज़रूरी हैं। राजपूत करनी सेना ने रानी पद्मावती का ऐसा चरित्र चित्रण रोकने के लिये बकायदा संजय लीला भंसाली को लिखित पत्र लिखा था, लेकिन भंसाली द्वारा इस मुद्दें को अनदेखा करना उनके अहंकार और हिंदुओं के प्रति पूर्वाग्रह का परिचायक हैं। इसके बाद ही करनी सेना ने यह कदम उठाया। लेकिन यह भी सोचना ज़रूरी हैं क़ि जिनकी फिल्में लोग देखते हैं उन्हें आखिर थप्पड़ क्यों ? यहाँ कारक नहीं अपितु कारण ज़रूरी हैं।

दरअसल ये जो आज हो रहा हैं, यह कुछ वर्ष यह यूँ कहे क़ि वर्षों पहले हो जाना चाहिए था। सबसे पहले संतोष सीवन ने एक असफ़ल फ़िल्म बनाई थी, ‘अशोक’। यह फ़िल्म भारतीय इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक सम्राट अशोक के जीवन को केंद्रित कर बनाई गयी थी, जिसमें उन्हें एक सम्राट ना होकर एक प्रेम पुरुष के रूप में दिखाया गया। इसके बाद एक फ़िल्म फिर गोवारिकर ने बनाई, ‘जोधा-अकबर’। फ़िल्म में गजवा-ए- हिन्द का सपना पालने वाले अकबर को महान और उदार के साथ-साथ अहिंसा का प्रतीक और हिंदुओं का रखवाला बता दिया गया। इसी तरह स्वयं भंसाली ने वीर देशभक्त योद्धा ‘बाजीराव बल्लाल भट्ट’ की जीवनी पर फ़िल्म बनाकर एक प्रख्यात योद्धा को ‘शराबी आशिक़’ और ‘देवदास’ के रूप में पेश कर दिया था। बॉलीवुड या यूँ कहे क़ि पैसों के लिये नंगापन बेचने वाली यह भांड इंडस्ट्री सिर्फ हिन्दू, बौद्ध, जैन ही नहीं बल्कि पुरे भारतीय सभ्यता के इतिहास से छेड़छाड़ करती रही हैं। इसके गुनाहगार जितने संजय लीला भंसाली या आशुतोष गोवारिकर जैसों की हैं उतनी ही हम लोगो की भी है जो हमेशा से चुप रहते हैं।

वर्तमान में घटनाचक्र की शुरआत हुई हैं भंसाली की फ़िल्म ‘पद्मावती’ में रानी पद्मिनी और अलाउद्दीन ख़िलजी के बीच फ़िल्म में प्रेम-संबंध दृश्य दिखाये जाने से। दरअसल इतिहास में यह प्रमाणित तौर पर स्पष्ट हैं क़ि चित्तौड़ के राजा राणा रतन सिंह और उनकी धर्म पत्नी रानी पद्मिनी जिनकी सुंदरता विख्यात थी। ख़िलजी ने रानी को पाने के लिये राजा रतन सिंह को बंधक बना लिया था। लेकिन रानी पद्मिनी ने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुये चित्तौड़ के वीर सैनिकों को भेजकर राजा रतन सिंह को बंधनमुक्त करवाया था। इसके बाद ख़िलजी से हुये युद्ध में राजा रतन सिंह शहीद हुये और रानी पद्मिनी ने ख़िलजी की सेना से बचने के लिए चित्तौड़ की 16000 वीरांगनाओं के साथ जौहर किया था, जोकि भारतीय इतिहास के सबसे बड़े जौहरों में से एक हैं। अब रानी पद्मावती का इतिहास जाने बिना फ़िल्म बनाना तो मुमकिन ही नहीं। अतः रानी पद्मिनी और ख़िलजी के बीच जो प्रेम-दृश्य दिखाने की जो नियत हैं वह सीधे तौर पर इतिहास से खिलवाड़ करने की हैं जिसे तत्काल प्रभाव से रोका जाना बिल्कुल सही हैं।

हिंसा किसी भी जगह सही नहीं हैं लेकिन जब पानी सर के उपर निकल जाये तो व्यक्ति को वो करना होता हैं जो आज तक नहीं किया गया। हिंदू समुदाय शुरुआत से ही सहिष्णु और शांत रहा हैं। इसी शांत स्वभाव को इन भांड फिल्मकारों ने कायर और नपुंसक समझ लिया हैं। ये अपनी फ़िल्मों में हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान करने से भी नहीं चुकते। ऐसे मुद्दों पर इनका विरोध अत्यंत ज़रूरी हैं। यदि आज विरोध नहीं किया गया तो कल को यह रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर फिर से हमारी परंपरा, इतिहास और मान-सम्मान का मनोरंजन के नाम पर खिलवाड़ करेंगे। इस मुद्दें पर सिर्फ राजस्थान या राजपूत ही नहीं बल्कि पुरे देश के वो सभी लोग साथ हैं जिन्हें अपनी गौरवमयी इतिहास पर गर्व हैं।

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