[शर्मनाक] सेक्स रैकेट चलाते थे रवीश कुमार के भाई

Ravish Kumar रवीश कुमार सेक्स रैकेट

वैसे तो भारतीय मीडिया में एक से बढ़ कर एक मोरालिटी के मसीहा घूम रहे हैं परन्तु हाई मोरल ग्राउंड का सबसे ज्वलंत उदाहरण शायद रवीश कुमार ही हैं। हर वाक्य, हर प्रश्न को जात से शुरू करने वाले रवीश बाबू जात पात की राजनीति के सब से बड़े विरोधी हैं। रवीश बाबू अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बड़े पैरोकार हैं। इन्हें अक्सर लगता है भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का लगातार हनन हो रहा है। जेएनयू कांड में ये खुल कर कन्हैया कुमार और उसके बाकी साथियों की पैरवी कर रहे थे।

जब अर्नब गोस्वामी ने भारत विरोधी ताक़तों का साथ देने के लिए लिबरल मीडिया और पत्रकारों की भर्त्सना की तो रवीश कुमार स्टूडियो की बत्ती गुल कर के विलाप में लग गए।

उनके शब्दों में “बत्ती बुझा दो, ये अँधेरा ही आज के टीवी की तस्वीर है। हमारा टीवी बीमार हो गया है, टीवी को टीबी हो गया है, पत्रकार चीखने लगे हैं, चिल्लाने लगे हैं”। जब कोई उत्तर नहीं सूझता है तो रवीश जी नौटंकी पर उतर आते हैं। कुछ महीने पहले जब भारत सरकार ने पठानकोट हमले पर की गयी एनडीटीवी की कवरेज पर सवाल उठाया और एक दिन के बैन की घोषणा की तब रवीश कुमार माइम आर्टिस्ट्स को लेकर स्टूडियो में बैठ गए और व्यंग और कटाक्ष से ओतप्रोत अपने शो में पुछा “की सवाल करने से क्यों रोका जा रहा है?”

कल अचानक से आई एक खबर ने सबको चौंका दिया। सेक्स रैकेट चलने के आरोप में कांग्रेस के एक नेता को धर दबोचा गया। नेता जी का नाम है ब्रजेश कुमार पाण्डेय, अब आप सोच रहे होंगे की नेता जी में ऐसा क्या ख़ास है? दरअसल में ब्रजेश जी रवीश कुमार जी के भाई हैं और कांग्रेस के टिकेट से २०१५ का बिहार विधान सभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। उस समय भी ये ख़ासा चर्चा का विषय था। किसी पत्रकार के किसी पार्टी से पारिवारिक रिश्तों से उसकी निष्पक्षता पर सीधा प्रश्न उठता है। ऐसा ही रिश्ता कांग्रेस प्रवक्ता संजय झा और इंडियन एक्सप्रेस संपादक राज कमल झा जी का भी है। खैर ये तो पुरानी बात हुई।

अब आते हैं मुख्य मुद्दे पे, यहाँ दो चीज़ें हो सकती हैं – या तो रवीश कुमार ये पता था की उनके भाई सेक्स रैकेट चलाते हैं या फिर उन्हें नहीं पता था की उनके भाई सेक्स रैकेट चलाते हैं। अगर पता था और फिर भी चुप रहे तो धिक्कार है ऐसे पत्रकार पे और अगर नहीं पता तो क्या ख़ाक पत्रकार हैं जो घर में होने वाली अनहोनियों को भी नहीं पकड़ पाए।

खैर अब ना तो एनडीटीवी कुछ बोलेगा ना ही स्वयं रवीश कुमार, हालाँकि उन्हें सवाल करने से नहीं रोका जा रहा है। बत्ती बुझा दो, ये अँधेरा ही आज के टीवी की तस्वीर है, हमारा टीवी बीमार हो गया है, टीवी को टीबी हो गया है, कुछ पत्रकार चीखने लगे हैं, चिल्लाने लगे हैं लेकिन जिन पत्रकारों को बोलना चाहिए वो मुह में मिटटी लगा के कोने में बैठे हुए हैं। रवीश कुमार जी आप हिपोक्रिट हैं, मतलब पाखंडी, बगुलाभगत।

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