अवैध कबाड़ियों और कसाईखानों के गढ़ मेरठ में योगी आदित्यनाथ का हड़कंप

मेरठ कसाइयों

अपने शहर से कुछ ऐसी ख़बर का आना वास्तव में सुखद है जिससे शहर में कुछ अच्छा हो रहा हो। मेरठ शहर जो पश्चिमी उत्तरप्रदेश का सबसे बड़ा शहर है, जो अपनी कैंची की धार, गुड़ की मिठास, खेल के सामान, सोने की कारीगरी, के लिए जाना जाता है, वो पिछले कुछ सालों से कबाड़ी(वाहन चोरों) और कसाइयों का शहर बन गया है। केवल आस-पास के शहरों ही नही बल्कि हरियाणा, दिल्ली और पंजाब में जब कोई गाड़ी चुरायी जाती है तो पुलिस सबसे पहले मेरठ भागती है। दिल्ली से मेरठ आएँगे तो देखेंगे कि भैंसाली बस अड्डे से बेगमपुल तक बस चोरी की गाड़ियाँ ही कबाड़ में काट के बेची जाती हैं, और भारत ही क्या नेपाल तक से लोग गाड़ियों का सामान लेने मेरठ आते हैं। उत्तर भारत के किसी भी शहर में गया हूँ तो कोई ना कोई मिल ही जाता है जो मेरठ को इसी वजह से जानता है। चूँकि पूरा कारोबार एक संप्रदाय विशेष के द्वारा संचालित होता है अतः लोकल पुलिस का मौन समर्थन प्राप्त है। सोतीगंज से सदर थाने की दूरी मात्र आधा किलोमीटर है पर कभी कोई सख़्त ऐक्शन नही लिया  सका। लोकल पुलिस की तो हिम्मत नही पर शायद ही कोई हफ़्ता ऐसा होता है जब दूसरे प्रदेशों की पुलिस यहाँ छापा ना मारती हो, और शायद ही कोई महीना ऐसा होता हो जब पंजाब, हरियाणा या दिल्ली पुलिस को मेरठ शहर में दौड़ाया ना जाता हो (मारने के लिए)। पिछले साल तो पंजाब पुलिस के एक दरोग़ा को जान बचाने के लिए अपनी पिस्टल निकालनी पड़ी और उनके शब्द थे पाकिस्तान बना रखा है यहाँ पर। ये तो रही बात कबाड़ियों की।

अब बात कसाइयों की जैसे दिल्ली से आने पर आप तथाकथित कबाड़ियों से रूबरू होते हैं, वैसे ही हापुड़ की तरफ़ से आने पर आप रूबरू होते हैं कसाइयों से, कमेलों से। पूरे 30 किलोमीटर के सफ़र में आप कार के शीशे नीचे नही कर पाएँगे और नाहीं नाक से रुमाल नही हटा पाएँगे, वजह माँस सड़ने की दुर्गन्ध, चूँकि ज़्यादातर कमेले अवैध हैं, मानकों के अनुसार नही हैं विदेश में मीट बेचने  के लालच में शहर की खपत से ज़्यादा मवेशियों का कटान किया जाता है, और इसकी पूर्ति के लिए पशुओं की चोरी भी एक रोज़गार बन गया है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश जो की मुख्यतः कृषि आधारित है पर डंगरों की घटती संख्या किसानों के लिए चिंता सबब है, आए दिन गाय-भैंसों के चोरी होने की ख़बर से अख़बार भरे रहते हैं, और चुराते भी बंदूक़ की नोक पर हैं।

मेरठ क्षेत्र में सबसे बड़ा झगड़ा हिंदू मुस्लिम नही बल्कि गद्दी (मुस्लिम पशुपालकों) और करैशियों (कसाइयों) का है, जहाँ मीट व्यापार ने करैशियों को संपन्न बना दिया है वहीं गद्दी समाज  के लिए उनका घटता पशुधन चिंता का सबब है। इलाक़े के सभी मुस्लिम नेता मुख्यतः मीट व्यापारी ही हैं,

(पूर्व सांसद शाहिद अख़लाक़ और आशिक़-ए-रसूल याकूब क़ुरैशी, वही क़ुरैशी जिन्होंने डेनमार्क के कार्टूनिस्ट और शार्ली एबदो के संपादक पर 51 करोड़ का इनाम रखा था, और अक्सर एक जलसा बुला इज़राइल के नक़्शे को जूते मारा करते हैं। उत्तर प्रदेश के बड़े किसान नेता भारतीय किसान यूनियन के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय श्री महेंद्र सिंह टिकैत (तथाकथित साम्प्रदायिक भाजपा से बाबा टिकैत का कोई सरोकार नही था) ने भी इस बढ़ते पशु कटान पर अपनी चिंता व्यक्त की थी.

चूँकि मेरठ में कसाइयों के ज़्यादातर कमेलें अवैध हैं अतः कचरा डम्प करने की कोई व्यवस्था ही नही की गयी है, अतः कचरा नालों मे और खुले मैदानों में छोड़ दिया जाता है। कुछ कमेलों में ज़मीन में ड्रिल करके ख़ून को उसके अंदर डम्प करने के भी सबूत मिले हैं, परिणामस्वरूप जल और ज़मीन दोनो दूषित हो रही हैं। और इसका सीधा असर मुस्लिम इलाक़ों में  बसने वाली आबादी पर ही देखने को मिलता है, बदबू, बीमारियों और गंदगी के बीच नर्क में जीने को विवश हैं। कई सामाजिक, स्वास्थ्य संगठन  इस मुद्दे पर काम कर रहें हैं और समय-समय पर इस मुद्दे को उठाते भी रहते हैं, पर समुदाय विशेष के तुष्टिकरण की राजनीति और प्रशासन के अकर्मण्यता  ने कहीं ना कहीं नुक़सान भी मुस्लिम वर्ग का किया है। शायद इन कमलों की बंदी को मुस्लिमविरोधी कह कर इसका विरोध किया जाए पर प्रत्यक्ष फ़ायदा मुस्लिम समाज को ही मिलेगा। और जबकि राजस्व की हानि का नुक़सान सरकार को वहन करना होगा।

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