राहुल गाँधी के फेल हो जाने के बाद कांग्रेस के पास बचे हैं बहुत कम विकल्प

कांग्रेस

गाँधीजी ने कहा था कि आज़ादी के बाद कांग्रेस को भंग कर देना चाहिए| इसके पीछे उनका मत था कि कांग्रेस का जो मकसद था, आज़ादी में सहयोग करना, वो पूरा हो चूका है| अब उस टाइम के नेताओं ने उनकी बात मानी, नहीं मानी वो आपके सामने है। वैसे आजकल इंटरनेट पर काफी ट्रोल चल रहा है कि गाँधीजी का सपना राहुल गांधी पूरा कर रहे है। यह तो खैर मज़ाक की बातें है, जब बुरा वक़्त आता है तो सब कहते ही है। बीजेपी का भी भरे सदन में मज़ाक उड़ा था, और कांग्रेसियो ने ही उड़ाया था, वीडियो आजकल काफी वायरल हो रहा है आप देख सकते है।

अब मुद्दे की बात, अमित शाह का जो सपना है कांग्रेस मुक्त भारत का ,उसे कोई भी समझदार इंसान अव्यवहारिक ही कह सकता है, शुद्ध हिंदी में कहे तो अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहारण। लेकिन

कांग्रेस को आत्ममंथन तभी शुरू कर देना चाहिए था, जब भाजपा ने 2014 में लोक सभा में ज़बरदस्त प्रदर्शन किया था।

कोई मज़ाक नहीं होता है 117 सीट से 272 सीट पर आ जाना और तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी को 206 से 44 पर ला देना। गौर करने लायक बात यह है कि उत्तर प्रदेश में 80 मे से 71 सीट पर भाजपा जीती। इन परिणामो से ही कांग्रेस को जनता का मिजाज पता चल जाना चाहिए था और उसपर मेहनत करना शुरू कर देना चाहिए था।

लोक सभा और अभी हाल ही के विधान सभा के चुनावो में यह बात तो साबित हो जाती है की जनता को राहुल गांधी स्वीकार्य नहीं है। तो प्रश्न यह उठता है कि कांग्रेस किसका ” हाथ ” पकड़ कर आगे बढ़ेगी। आजकल ऑनलाइन पिटिशन चल रही है ” शशि थरूर फॉर पी एम्”, आप सबने भी देखा होगा, शशि थरूर बड़े कद काठी के नेता माने जाते है, संयुक्त राष्ट्र में काम कर चुके है, अच्छे लेखक है, वक्ता है, थिरुवनंतपुरम से सांसद है, लेकिन ज़मीन से जुड़े हुए नेता नहीं कहे जा सकते। वो अभिजात्य वर्ग से नाता रखते है। उन्हें ऐसा नेता नहीं कहा जा सकता है जिस से जनमानस उनसे जुड़ाव महसूस कर सके, विशेषकर राष्ट्रीय स्तर पर।

एक नेता है कमलनाथ, काफी लोकप्रिय है ज़मीनी स्तर पर काफी काम किया है। उनकी साख का अंदाज़ा इसी बात से लग जाता है की संसद में सरकार के गठन से पहले प्रोटेम स्पीकर चुनते है, 2014 में इन्हें सर्वसम्मति से चुना गया था। यू पी ए सरकार में कई विभागों के मंत्री रह चुके है। लेकिन वही बात इनपर भी लागू होती है की आम जनता अपना जुड़ाव नहीं महसूस कर पाती इनसे। इन्हें अपना सांसद तक तो ठीक लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देख पाती राष्ट्रीय स्तर पर एक मास अपील नहीं है जैसे इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, सोनिया गांधी की थी या फिर आजकल नरेंद्र मोदी की है। कांग्रेस के बाकी बड़े नेता जैसे कपिल सिब्बल, मणि शंकर ऐय्यर आदि के साथ भी कमोबेश यही स्थिति है।

सवाल यह उठता है कि कांग्रेस में उत्तराधिकारी कौन? जवाब में केवल एक ही नाम आता है प्रियंका वाड्रा गांधी ! वजह बहुत है, गांधी परिवार से है, राजनीती विरासत में मिली है, उसके अलावा कुशल वक्ता है, मास अपील है। आपने उत्तर प्रदेश के चुनावो में भी देखा होगा कि प्रियंका की रैलीया करवाने को प्रत्याशियो ने बहुत ज़ोर दिया था। जो उनसे मिले है, और जिन्होंने इंदिरा गांधी को देखा है उनके मुताबिक प्रियंका में इंदिरा गांधी की छवि है, उनका अंदाज़ है, उनके बात करने का लहज़ा, जनता को अभिवादन करने का तरीका, हाव भाव, सब कुछ उनके एक कुशल नेता होने की ओर इशारा करते है.

भाषण देते हुए सरकार को घेरना हो, या पति बच्चे को साथ फोटो खिंचवाते हुए भारतीय नारी वाली छवि प्रोजेक्ट करनी हो, वो सब में अपने आप को सशक्त रूप से स्थापित करने में सफल रहती है। उनकी यही अदा जनमानस में अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रहती है और जन स्वीकार्यता दिलवाता है।

बाकी आगे क्या होता है क्या नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में है जो वक़्त आने पर ही पता चलेगा, अभी से कुछ भी कहना बेमानी होगा। बाकी जो कुछ भी हो देश का भविष्य ज़रूर उज्जवल रहना चाहिए क्योंकि श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के शब्दों में “सरकारे आएँगी जाएँगी, पार्टिया बनेंगी बिगड़ेंगी पर यह देश रहना चाहिए इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए“

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