नाहिद आफरीन को एक हिन्दू भाई का खुला ख़त

फतवा

प्यारी नाहिद,

मैं आमतौर पर रियलिटी शो नहीं देखता, लेकिन चैनल उलटते पलटते इंडियन आइडल जूनियर कभी-कभी सामने पड़ जाया करता था तब किसी बच्चे को गाते देख सुन ही लिया करते थे। जब ट्विटर पर खबर देखी तो तुम्हारा नाम तो याद नहीं था पर चेहरा याद निकला। “अरे ये तो इंडियन आइडल में आयी थी”। जिस बारे में ये ख़त लिख रहा हूँ वो तो तुम्हें पता ही है। तुम्हारे ख़िलाफ़ फतवा आया है। और वो फतवा भी एक-दो नहीं पूरे 46 धार्मिक ठेकेदारों से।

तुम्हारा इंटरव्यू देखा, जिसमे तुम कह रही थीं कि कैसे पहले तुम डर गयी थीं और एक बार को तो संगीत छोड़ने तक का ख्याल मन में आ गया। नाहिद, शायद मैं तुम्हारा डर नहीं समझ सकता। क्योंकि यही वाक़िया अगर मेरे साथ हुआ होता तो अभी तक बड़े बड़े मीडिया चैनलों पर “big blow to modi” का बैनर लहलहा रहा होता, कुछ विशेष पत्रकार प्राइम टाइम की स्क्रीन काली कर चुके होते, दो तीन ज्ञानपीठ पुरुस्कारधारी अपना अदृश्य पुरुस्कार लौटा चुके होते, bollywood institute of social sinces के कई प्रोफेसरों ने एक-आध दिन के लिए अपने नाम के आगे से अपने उपनाम हटा दिए होते, कई अमर्त्य सेनों और नॉम चोमसकियों को दुनिया में मंडराता, नाज़ियों और फासिस्टों का खतरा फिर से दिखने लगता, सर जी ने बता दिया होता कि कैसे मोदी जी उनसे डर गए हैं और हड़बड़ाहट में ऐसे कदम उठा रहे हैं। खाली पड़ा जंतर मंतर भी एक हफ्ते के लिए बुक हो गया होता, आज शाम संसद से इंडिया गेट तक एक कैंडल लाइट प्रोटेस्ट मार्च हो रहा होता, JNU में भारत को भारत से आज़ादी के नारे उठने शुरू गए होते और बहती गंगा में हाथ धोने को पाकिस्तान ने भी बॉर्डर पर 100-200 राउंड फायर कर ही दिए होते।
पता है क्यों? क्योंकि मैं हिन्दू हूँ। मुझसे यही उम्मीद की जाती है कि मैं हिन्दू रहूँ। बदलता रहूँ। चलता रहूँ। अलग सोचता रहूँ। नया कुछ करता रहूँ।

लेकिन तुम मुस्लिम हो। लोग, देश और दुनिया तुमसे यही उम्मीद रखती है कि तुम ठहरी रहो। बिल्कुल वही जहाँ हो। क्योंकि यदि तुम बदल गयीं तो एक पूरी पुश्त बदल जाएगी।

फतवा के खिलाफ जो इस्लाम की एक भी पुश्त ने करवट ले ली तो तुम नहीं जानतीं दुनिया की कितनी बड़ी बड़ी दुकानें की बैलेंस शीट हिल जाएँगी। इसलिए तुम्हारे लिए कोई ब्रेकिंग न्यूज़ फ़्लैश नहीं होगी, कोई प्राइम टाइम समर्पित नहीं होगा, कोई पुरुस्कार अवार्ड नहीं होगा, कोई अपने नाम के आगे से खान नहीं हटाएगा, किसी को उभरता हुआ फासिज़्म नज़र नहीं आएगा, मोदी जी भी सर जी से बाल बाल बच जायेंगे,न जंतर मंतर बुक होगा और न इंडिया गेट पर मोमबत्ती मार्च और न JNU वाले फतवा से आज़ादी मांगेंगे!

लेकिन तुमने तो अलग ही रास्ता चुन लिया। “संगीत अल्लाह का तोहफा है। आखिरी सांस तक गाती रहूंगी।” तुम्हारी ये बात जच गयी। क्या जज़्बा है। पर दुःख इस बात का है कि तुमने किया वो सुहाना सईद भी कर सकती थी, ज़ायरा वसीम भी कर सकती थीं पर न जाने क्यों सुहाना चुप रही और ज़ायरा ने तो माफ़ी तक मांग ली। वो क्या कैफियत होगी, कितना दबाव होगा। काश वो भी इसी जज़्बे से खड़ी होतीं तो आज तुम एक से बढ़कर तीन होतीं।

मैं कोशिश कर रहा हूँ पर समझ नहीं सकता कि कैसा लगता होगा जब लंबी लंबी दाढ़ियां और तंज़ भरी तीखी आवाज़ें एक मासूम आवाज़ को दबा रही हों। कैसा लगता होगा जब वो जो सारे सारे दिन न्यूज़ रूम्स में गले की नसें दुःखातें हैं लेकिन तुम्हारे मामले में चुप रहने का फैसला करते हैं। कैसा लगता होगा जब तुम्हारे लिए सिर्फ एक सांत्वनात्मक ट्वीट से काम चला दिया जाता है। उल्टा सलाह भी तुम्हे दी जाती है कि ऐसी बातों पर ध्यान मत दो। ये वही लोग हैं जो दुनिया को सिखाते हैं कि अपनी बेटी को मत ढको अपने बेटों को समझाओ। ये सारा ज्ञान कहाँ गुम जाता है? कैसा लगता होगा जब बड़े बड़े ओपिनियन मेकर्स तुम्हारी ओर से लड़ने के बजाय तुम्हे ये समझाते हैं कि दरअसल ये तो फतवा है ही नहीं ये तो महज़ एक परचा है जिस पर कुछ मुल्लाओं से दस्तख़त कर दिए हैं। कोई उनसे जा कर ये पूछे कि क्या मुद्दा ये है कि जो पर्चे बांटे गए हैं वो फतवे हैं या नहीं? उसमें तुम्हारा नाम है या नहीं? या मुद्दा ये है कि क्या इस देश की एक मुस्लिम लड़की गाना गा सकती है या नहीं? यदि शरिया में मौसिकी हराम है तो क्या एक आज़ाद लोकतान्त्रिक मुल्क में संविधान को शरिया का टेस्ट पास करना होगा? और अगर नहीं है तो क्या गाने की जगह और समय मौलानाओं से पूछ के तय होंगे? क्या गाने के बोल शरिया से उधार लिए जायेंगे? बड़े आराम से कहा जा रहा है कि फतवा तुम्हारे खिलाफ नहीं है वो तो बस लोगों को ये समझाने के लिए है कि अगर तुम इस कार्यक्रम में हिस्सा बनते हो तो अल्लाह का कहर बरसेगा। कान यूँ न पकड़ा यूँ पकड़ लिया। तुम्हें नहीं रोका लोगों को रोक लिया। और बदकिस्मती कि सब तुम्हारी तरह जज़्बा नहीं रखते।

तुम्हारे साथ बड़ा वाकिया हुआ है और वो केवल तुम्हारा मसला नहीं है। ये मसला इस देश में सामाजिक बहिष्कार के सवाल को फिर से उठाता है।

मैं तुम्हे डराना तो नहीं चाहता पर पता है इस देश का कानून भी यहाँ तुम्हारे साथ नहीं है। Sardar Syedna Taher Saifuddin v State of Bombay केस में सुप्रीम कोर्ट दाऊदी मुस्लिम समाज को एक व्यक्ति के सम्पूर्ण बहिष्कार का अधिकार दे चूका है।

वैसे तो तुमसे कइयों ने कहा होगा कि खुद को अकेले मत समझना पर अगर ये लड़ाई जीतना चाहती हो तो एक सलाह मेरी मान लेना। खुद को अकेला ही समझना। क्योंकि, तुम्हारे मज़हब के सियासी मज़दूर वैसे ही तुम्हारे खिलाफ फतवा निकल चूके हैं । यही सियासी मज़दूर अपने ठेकेदारों को चुनावों में खड़ा करते हैं जिन्हें हम सियासतदां कहते हैं। तो उनसे मदद की उम्मीद भी बईमानी है। बचा मीडिया तो वो मीडियोकर से ज़्यादा कुछ नहीं। अगर तुम्हारे पास कुछ है तो वो तुम्हारा परिवार है, तुम्हारी आवाज़ है और तुम्हारी अंतरात्मा है। वही हक़ है, वही सच है।

सुना है तुमने ISIS के खिलाफ एक गाना गया था। और फतवा के रूप में उसी की खीज तुम्हारे हुनर पर उतारी गयी है। बड़ा दुःख हुआ जब उस गाने को इन्टरनेट पर खोजते खोजते वो गाना तो नहीं मिला, ISIS का एक प्रमोशन विडियो ज़रूर मिल गया। पर मेरी उम्मीद है कि तुम अपनी राह उसी बेबाकी और हिम्मत से चुनोगी जिससे दुनिया की पहली मुसलमान ख़दीजा ने चुनी और मोहम्मद का वंश चलाने वाली बेगम फ़ातिमा ने चुनी। मैं कोई फेमिनिस्ट नहीं हूँ, दरअसल में कोई भी इस्ट नहीं हूँ। मैं तो बस इतना जानता हूँ कि महिला सशक्तिकरण तब नहीं होता जब महिलाएं वो सब करने लगती हैं जो पुरुष करते हैं, सशक्तिकरण तब होता है जब कोई महिला वो करती है जो वो कर सकती है। दुर्गा ने महिषासुर को मारा, वो काम जो कोई पुरुष नहीं कर सकता था। तो त्वामी दुर्गा, त्वामी शक्ति। और तुम्हारे पास तो संगीत है। विरासत है उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की, बड़े ग़ुलाम अली साहब की, उस्ताद अमज़द अली खां की और लता मंगेशकर की।

मुझे ख़ुशी है कि कुछ हवाएं तुम्हारे खिलाफ चल रही हैं। क्योंकि ये तुम्हें ऊँचा उड़ाएंगी। बेहतर खिलाएंगी।
बस यूहीं खिलती रहो। पर लिली की तरह नहीं। गुलाब की तरह, कुछ काँटों के साथ। जो छूने से पहले कोई दो बार सोचे। बाकी अली बाबा 46 चोर की इस कहानी में तुम अली बाबा हो। और वैसे भी तुम्हारे बाल उन 46 मौलवियों की कुल दाढ़ी से भी ज़्यादा लंबे हैं। बेशक तुम अपने नाम की तरह नाहिद (बेदाग़) चमकोगी क्योंकि जज़्बा-ए-नाहिद मदद-ए-खुदा।

अच्छा अब चलता हूँ नाहिद, आफ़रीन आफ़रीन।

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