अपनी संस्कृति की अनदेखी की, विदेशियों की नक़ल की, पर बदला क्या, कुछ नहीं

व्हांगानुई गंगा

हाल फिलहाल में आप लोगो ने पढ़ा ही होगा कि न्यूजीलैंड में उनकी अदालत ने उनकी एक नदी “व्हांगानुई” को एक मानव का दर्ज़ा दिया है। इसका मतलब यह कि यह नदी न्यूजीलैंड में एक इंसान है जिसके कुछ कर्त्तव्य है और अधिकार भी। उसके कुछ दिनों बाद आशानुरूप भारतीय अदालत ने भी गंगा और यमुना नदियो को भी मानव का दर्जा दिया, जिसके अपने कुछ कानूनी अधिकार होंगे। आशानुरूप मैंने इसलिए लिखा क्योंकि हम भारतीयों को अंग्रेज़ो की नक़ल करने में मज़ा ही अलग आता है। जैसे योग की उत्पत्ति यही हुई लेकिन हमने अपनाया तब, जब वो बाहर से योगा बन के आया। अदालत के इन दोनों नदियो को मानव का दर्जा तो आज दिया लेकिन यह करते हुए वो भूल गयी कि भारतीय सभ्यता में तो इन नदियो को माँ का दर्जा सदियो से दे रखा है।

पहले न्यूजीलैंड वाले मामले को ज़रा विस्तार से देखते है। व्हांगानुई नदी के पास माओरी नाम के आदिवासी रहते है, जो 100 साल के ऊपर से यह केस लड़ रहे है। उनका मानना है की बाकी जनता “उनकी नदी” कि उस तरह से रखरखाव नहीं करती जैसे उन्हें करना चाहिए। बात आती है “उनकी नदी” से, मतलब यह आदिवासी जनजाति पहाड़ो, नदियो, पेड़ो को अपने जैसा ही मानती है, जैसा की अमूमन सारी आदिवासी जनजातीय मानते है। इस जनजाति में एक कहावत है “को अउ ते एव, को ते एव को अउ”, जिसका मतलब होता है “मैं नदी हूँ, नदी मैं हूँ”। अंततः बरसो की लड़ाई के बाद अदालत ने मान ही लिया की व्हांगानुई को एक इंसान की तरह ही रख रखाव की ज़रूरत है।

अब बात करते है भारतीय परिपेक्ष्य में, यहाँ लगभग सभी नदियां दूषित हो रखी है, धीरे धीरे सारी नदियां नालों में बदलती जा रही है। दिल्ली में यमुना का हाल सब देख ही रहे है बस नाले बनने की कसर ही बाकी है। गंगा का भी कोई बहुत अच्छा हाल नहीं है, जहाँ जहाँ से गुजरती है हर जगह का कूड़ा करकट, औद्योगिक कूड़ा सब उसमे मिल जाता है। जबकि कानून के मुताबिक किसी भी तरीके का कूड़ा करकट नदी में फेंकने से पहले उसका उचित उपचार किया जाना चाहिए जिससे वो नदी के पानी को प्रदूषित न करे, लेकिन हम हिंदुस्तानी नियम कानून मानते तो यह हाल होता ?

खैर छोड़िए, मुद्दे पर आते है। प्रधानमंत्री जी ने भी स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया हुआ है, गंगा की सफाई के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम चलाया हुआ है , अभी हाल ही में निर्वाचित उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री जी ने भी गोमती रिवरफ्रण्ट कार्यक्रम को लेकर सख्ती दिखाई है। लेकिन सवाल वही क्या यह सब बहुत है ? क्या सरकार के करने के ही चीज़े होंगी ? क्या आम जनता की कोई जवाबदेही नहीं ? मैंने 1-2 लोगो के मुंह से सुना हुआ है जो सड़क पर कूड़ा फेंकते है यह कह के सड़कों पर सफाई नहीं है और मैं स्वच्छ भारत सेस दे रहा हूँ तो पैसे तो वसूलूंगा ही, ऐसे लोग नदियो में कूड़ा भी डालते है। अगर यही सब चलता रहा तो हो गया स्वच्छ भारत और हो गयी स्वच्छ नदिया। कल को यही लोग बाढ़ आने पर अदालतों में पहुच जायेंगे कि अब गंगा, जमुना इंसान है तो हमारे नुक्सान का हर्जाना इनसे दिलवाया जाए।

अब समय आ गया है हमें प्रकृति से छेड़छाड़ बंद करनी चाहिए, उसे प्रदूषित करना बंद करना चाहिए। क्योंकि प्रकृति खुश तो लहलहाते खेत खलिहान और रुष्ट तो केदारनाथ त्रासदी को लोग अभी भूले नहीं है। अब भी समय है हमें चेतना चाहिए वरना प्रकृति का क्या है जो मानो तो गंगा माँ है, ना मानो तो बहता पानी।

Exit mobile version