उत्तरप्रदेश की जनता ने नहीं बल्कि योगी आदित्यनाथ को जीज़स ने जिताया

मोहन सी लाजरस जीजस

भारत भूमि से लेकर हिन्दू सभ्यता और सनातन धर्म विश्व में प्राचीनतम हैं। यह कोई 14-15 सौ वर्ष पुराना या किसी AD-BC से निर्धारित किया जाने वाला धर्म नहीं हैं। भारतीय वेद, उपनिषद, उपवेद, महाकाव्य और अन्य ग्रन्थ विश्व में प्राचीनतम हैं। लेकिन फिर भी सनातन धर्म पर बार बार वार किया जाता हैं। हिन्दू साधु-संतों का अपमान किया जाता हैं। योगी आदित्यनाथ से लेकर साध्वी प्राची और साक्षी महाराज की छींक को भी विवादित बताकर सुर्खियां बटोरी जाती हैं। गीता और वेदों को बताते हुये कुछ बात कहे तो ‘व्यंग्य’ लिखे जाते हैं, ट्रोल किये जाते हैं। लेकिन वहीं दूसरी ओर कोई इस्लामी कट्टरपंथी या ईसाई प्रचारक सनातन धर्म के बारे में बुराई करे तो वह ख़बर भी नहीं बन पाती। कुछ ‘कुतर्की’ और ‘बेवकूफाना’ बात करे तो वो सब सामान्य हो जाता हैं। उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनते ही बड़े बड़े विचारकों और प्रचारकों की नींद उड़ चुकी हैं। नींद ऐसी उड़ी हैं क़ि वो क्या बोल रहे हैं ना उन्हें समझ आ रा हैं ना ही सुनने वालों को। इसी कड़ी में एक विवादस्पद बयान दिया हैं तमिलनाडु के ईसाई उदेशक जो क़ि प्रचारक भी हैं, नाम हैं मोहन सी लाजरस।

मोहन सी लाजरस के अनुसार “उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ को ‘जीजस’ ने जिताया हैं ताकि भाजपा में टूट हो सके।’ अब भाजपा में टूट होगी की नहीं यह तो भविष्य पर निर्भर करता हैं लेकिन जीजस चुनाव कब से जितवाने लगे ? मतलब अब राहुल बाबा को जितने के लिये जीजस से बात करनी पड़ेगी ? अगर कांग्रेसियों को पहले पता होता तो राहुल बाबा काशी विश्वनाथ ना जाकर सीधे जीजस से ही बात कर लेते। अभी भी वक़्त हैं गुजरात चुनाव से पहले प्रशांत किशोर को हटा कर कांग्रेस इस उपदेशक मोहन सी लाजरस से मिलकर जीजस से संपर्क कर सकती हैं।

खैर ये तो रही पहली बात। दूसरी बात यह हैं क़ि ये जनाब मोहन सी लाजरस जो खुद को उपदेशक कहते हैं उन्होंने कहा क़ि – “आओ जीसस से तुम्हारे प्रधानमंत्री के लिए प्रार्थना करें कि वह योगा और गीता जैसी बुराई स्कूलों में ना ला सके।” अब जो योग सनातन भूमि में हजारों वर्षों से हैं उसे कितने ही ईसाई देशों ने ‘योगा’ के नाम से अपना लिया उसमें इन्हें बुराई नज़र आ रही हैं। और तो और कमाल की बात यह हैं क़ि ‘गीता’ को बुरा कहने पर भी मीडिया को ये विवादास्पद नहीं लग रहा।

सबसे बड़ी बात यह थी क़ि उस जगह पर हजारों लोग शामिल थे और मोहन सी लाजरस से सहमत नज़र आ रहे थे। सनातन ग्रंथों, भगवान पर भरोसा करने पर तो हिंदुओं को अंधविश्वासी तक कह दिया जाता हैं। लेकिन इसका क्या जिसमें ‘जीजस’ ने एक ‘योगी’ को उत्तरप्रदेश का चुनाव जितवाया हो ? इसे आस्था कहेंगे क़ि अंधविश्वास या मूर्खता ? अब ये आप ही फैसला कीजिए।

लेकिन ये हज़ारों की भीड़ को किसी धर्मविशेष के खिलाफ भड़काना या बरगलाना किस हद तक सही हैं ? गीता का अपमान कैसे सही हैं ? जब कमलेश तिवारी को अल्लाह के अपमान के लिये जेल हो सकती हैं, जब आशु परिहार पर मुकदमा दाखिल हो सकता हैं तो फिर सनातन भूमि के बहुसंख्य समुदाय के धार्मिक ग्रन्थ का अपमान कैसे सही हैं ?

दक्षिणपंथी नेताओं, मंदिरों के महंत से लेकर शंकराचार्य तक के बयानों को विवादस्पद कहकर उन्हें कटघरे में खड़ा कर दिया जाता हैं तो इस ईसाई प्रचारक मोहन सी लाजरस के बेहूदे और कुतर्क बातों पर चुप्पी क्यों हैं ?

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