आखिर चुनाव में NOTA रखने का क्या औचित्य है?

NOTA

पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित हो चुके हैं। भाजपा ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में तथा कांग्रेस ने पंजाब में अपनी सरकार बनाई हैं। इन सब के बीच फिर से एक बात उठ रही हैं क़ि NOTA के क्या मायने हैं ? वोट देना या ना देना एक बराबर हो गया हैं। यदि आज सर्वाधिक वोट NOTA को भी पड़े तो भी चुनाव परिणाम में उसकी कोई भूमिका नहीं होती हैं।

NOTA – None of the above, ‘उपरोक्त में से कोई नहीं।’ इसका तात्पर्य यह हैं क़ि यदि आपके क्षेत्र में सभी पार्टीओं से खड़े उम्मीदवारों में आपको कोई भी पसंद नहीं तो आप NOTA का बटन दबाकर सभी को नापसंद कर सकते हैं। इसकी शुरआत 2013 में छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव से हुई थी जिसके बाद देश में व्यापक तौर से लोकसभा में भी इसका इस्तेमाल किया गया था। 2014 के आम चुनाव में इसमें 1.1 प्रतिशत वोट पड़े थे जो लगभग 60 लाख लोगों ने दिए थे।

यह मुद्दा उठाने का मुख्य कारण यह हैं क़ि, उत्तरप्रदेश चुनाव के समय मैं उत्तरप्रदेश में ही था। ऑटो-रिक्शा से लेकर हॉटेल-रेस्टोरेंट में कुछ लोगों से चुनावी बातचीत में यह भी निकला क़ि कुछ लोगों को कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं हैं। मैंने उन्हें NOTA के विकल्प के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा क़ि उससे क्या होगा ? उम्मीदवार बदल तो नहीं जायेगा ना ? दरअसल यह उत्तरप्रदेश का ही नहीं पुरे देश का मसला हैं। एक समय था जब लोग इसलिए वोट नहीं देने जाते थे क्योंकि उन्हें ‘कुआँ’ या ‘खाई’ में से एक को चुनना ही था। लेकिन चुनाव आयोग के NOTA लाने के बाद से एक अन्य विकल्प आया हैं।

हाल ही में हुये चुनाव में भी कुछ लोगों के सामने यही दुविधा थी क़ि उनका वोट व्यर्थ हो जायेगा। कुछ लोगों ने तो वोट नहीं देने की भी बात कही थी। उनका कहना था, या तो ना पसंद होते हुये भी किसी एक को चुने, या तो NOTA का इस्तेमाल करे या वोट ही ना दें। भारतीय लोकतंत्र में सभी वयस्कों को अपने पसंद के वोट डालने का अधिकार हैं लेकिन जब आपके वोट की अहमियत ही ना हो, तब ? जब सभी उम्मीदवार और कुछ सेलिब्रिटी चुनाव के समय अपना और पार्टी विशेष का प्रचार करते हैं तो फिर चुनाव आयोग उनके साथ मिलकर NOTA का प्रचार क्यों नहीं करवा सकता ? जो क़ि एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिये लाभदायक हैं।

अभी हुये चुनाव में उत्तरप्रदेश में 0.9℅, उत्तराखंड में 1%, पंजाब में 0.7%, गोवा में 1.2%, मणिपुर में 0.5% NOTA का वोट शेयर रहा हैं। यह भले वोट शेयर में कम हो लेकिन चुनाव में तो एक-एक मत का महत्त्व होता हैं। मतों की गिनती में भी NOTA की गिनती होती हैं लेकिन यह सभी मत अयोग्य होते हैं, अर्थात क़ि

यदि NOTA के मत सभी उम्मीदवारों से अधिक भी हो तो योग्य मतों के आधार पर उम्मीदवारों में सबसे अधिक मत पाने वाले को विजयी घोषित किया जायेगा। अतः दुविधा यह हैं क़ि जब वोट ही अयोग्य हैं तो फिर NOTA का क्या मतलब ?

यह देखते हुये क़ि NOTA के वोट कानूनन अयोग्य हैं हम एक स्वस्थ लोकतंत्र को आगे ले जाते हुये चुनाव आयोग और सरकार दोनों से मांग कर करते हैं क़ि NOTA के मतों को भी योग्य बनाया जाये जिससे वो लोग ‘मत के अयोग्य’ होने के कारण वोट नहीं देते वो भी वोट देंगे साथ ही देश की जनता का लोकतंत्र में विश्वास भी बढ़ेगा। साथ ही चुनाव आयोग को NOTA के प्रचार करने की भी आवश्यकता हैं, उम्मीद हैं आने वाले चुनावों में हमें कुछ बेहतर व्यवस्था देखने को मिले।

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