सुकमा हमले के बाद कहाँ मर गए आजादी के पैरोकार?

सुकमा

ढीली पड़ती पकड़ से बौखलाए हुये वामपंथ की लंपट औलादे अब नपुंसकता वाली हरकतों पर आ गए हैं। कल छत्तीसगढ़ के सुकमा क्षेत्र में उग्र वामपंथियों (नक्सली) ने 30 जवानों की टुकड़ी पर हमला कर दिया जिसमें 12 जवान शहीद तथा 5 जवान गंभीर रूप से घायल हुये हैं। हमले की सूचना मिलते ही यूपी जीत के जश्न को छोड़ केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह नई दिल्ली से विशेष विमान द्वारा रायपुर पहुंचे और रायपुर में स्थित पोस्ट बटालियन में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देकर प्रदेश के आला-अधिकारियों के साथ एक संक्षिप्त बैठक भी किया। सीआरपीएफ जवानों की मौत पर पीएम मोदी ने संवेदना व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि दी है।

बस्तर रेंज के प्रभारी पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी. ने यहां बताया कि जवान जब कैंप से लगभग दो किलोमीटर दूर बुंदेरपारा के पास पहुंचे, वे घात लगाकर बैठे नक्सलियों द्वारा घिर गए। सुकमा के साप्ताहिक बाज़ार और सड़क की ओपनिंग की सुरक्षा पर निकले जवानों पर नक्सली नपुंसकों की तरह छुप कर गोलियों की बौछार करने लगे, अचानक हुये हमले से जब तक जवान सम्हलते तब तक 15 जवानों को गोलियां लग चुकी थी। जवाबी कार्यवाही में 2 नक्सलियों को मर गिराने की ख़बर आई हैं। मीडिया के हवाले से पता चला हैं क़ि यह हमला नए नक्सलियों के ट्रेनिंग के लिये और हथियार लूटने के लिये किया गया था। इस हमले में नक्‍सलियों ने मारे गए सीआरपीएफ जवानों से 10 हथियार और उनके रेडियो सेट्स भी लूट लिए हैं।

कुछ समय पूर्व बस्तर रेंज के आईजी एस.पी. कल्लूरी जी को हटाया गया था, उनके रहते में दो साल में नक्सलीयों द्वारा किसी भी बड़ी घटना को अंजाम नहीं दिया जा सका था लेकिन अब उनके जाते ही यह एक बड़ी घटना हुई हैं। लेकिन जो भी हो, यह घटना उनके नपुंसकता का परिचायक हैं।

लेकिन अब वो मानवाधिकार के शुतुरमुर्ग अब नहीं दिख रहे हैं जो नक्सलियों के मारे जाने पर हंगामा खड़े करते हैं। शुतुरमुर्ग इसलिए क्योंकि अब ये अपने सर को जमीन में गड़ा कर बैठे हैं। ये वही वामपंथ की औलादें हैं जो नक्सलियों को मारने पर मार्च निकालते हैं, लेकिन आज सब गायब हैं। अब सुरक्षा के जवान उनके वैचारिक मित्र नहीं हैं ना।

बात बात में आज़ादी मांगने वाले भी नक्सलियों से आज़ादी नहीं चाहते। पिछले दिनों में वामपंथियों द्वारा ‘बस्तर’ की आज़ादी की मांग उठी थी, आखिर ये किस बस्तर को आज़ाद कराना चाहते हैं। अपने वैचारिक मित्रों के सहयोग के लिये ऐसे ही बड़े-बड़े विश्विद्यालयों में बैठे वामपंथी विचारक बस्तर जैसे नक्सली क्षेत्रों में आदिवासी चिंतन की आड़ में नक्सलियों की मदद करते हैं। इसका ताजा उदाहरण हैं दिल्ली विवि के शहरी नक्सली प्रो. साई बाबा, जिसे न्यायालय ने नक्सली गतिविधियों में लिप्त होने की वजह से सजा सुनाया हैं।

ये वामपंथी की लंपट औलादें सिर्फ दोहरे चेहरे के साथ नपुंसकता वाली ही हरक़तें कर सकते हैं। लोकतंत्र, संविधान की बात करते हैं लेकिन सुरक्षा बलों के शहीद होने पर जश्न मनाते हैं। इनके दोहरे चरित्र और देशविरोधी गतिविधियों को अब दमन करना अत्यंत आवश्यक हैं।

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