दादरी से अलवर तक के सफ़र में भारत के हिन्दू ने एक बड़ा सबक सीखा है

भारत में 2015 को जो बीजेपी की केंद्रीय सरकर थी वही 2017 में भी है, उस वक्त जो विपक्ष था, वही आज भी है और जो मिडिया तब था, वह आज भी है लेकिन फिर भी मेरा भारत बदल गया है। भारत ने दादरी से लेकर अलवर तक की जो यात्रा की है वह यह साफ़ दिखा रही है की सितंबर 2015 से लेकर अप्रैल 2017 तक भारत में बहुत कुछ बदल गया है।

इसी भारत में 2015 में लोग, दादरी, उत्तरप्रदेश में एक कथित गोहंता की लाश को सर आँखों पर बैठा कर, गाय को माँ मानने वालो को चुनाव हरा देते है, वही 2017 में उसी उत्तरप्रेदश में, एक गौ भक्त योगी को सर आँखों पर बैठा का मुख्यमंत्री के पद पर पहुंचा देते है। इन डेढ़ सालों में भारत बदला दिख रहा है।

याद कीजिये जब भीड़ ने, दादरी में एक कथित गौ हन्ता की हत्या कर दी थी तब मिडिया, सेक्युलर बुद्धजीवी और विपक्ष ने उसे अंतराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया था और पुरे हिन्दू समाज को ही इस हत्या का जिम्मेदार ठहरा दिया था। सेक्युलर समाजवाद ने तो उस लाश को 45 लाख रुपय, नोयडा में 4 फ्लैट्स और उसके परिवार वालो को सरकारी नौकरी से तौल दिया था। इस लाश ने इतनी बदबू मारी थी की स्वयं कई हिन्दुओं में अपराधबोध के बीज अंकुरित होने लगे थे। आज जब अलवर में एक भीड़ की हाथापाई में एक कथित गौ तस्कर की मौत हो गयी है तो न सेक्युलर मिडिया के प्रलाप का कोई सुन रहा है , न सेक्युलर बुद्धिजीवी किसी लाइन में खड़ा है और न ही विपक्ष के विधवा विलाप को कोई कान दे रहा है।

इस सब में सबसे बड़ी बात यह हुयी है की उन हिन्दुओं में, जिनके अंदर कई दशकों से आत्मग्लानि की विष बेला पल्लवित हो रही थी, उसे उन्होंने समूल नष्ट कर दिया है।

लोग समझ गए है की न दादरी और न ही अलवर, हिन्दू मुसलमान का मामला था, यह मामला सिर्फ इस हठ का है की हम गाय तब भी काटते और खाते थे जब हमारी नस्ले हिन्दुओं पर राज करती थी और आज भी काटेंगे और खाएंगे क्यूंकि हिन्दुओ के प्रतीकों का मर्दन करना आज सेक्युलर तहजीब का हिस्सा बन गया है। आज 2017 में, हिन्दुओं ने इस सेक्युलरी और गंगा जमुनी तहजीब का पिंड दान कर दिया है। आज वह हिन्दू, जो मौन था, जो तटस्थ था और जो पलायनवादी था, वह आत्मग्लानि और गुलामियत की हीनता से मुक्त हो कर, हर उस कृत्य का प्रतिघात करने के लिए सजग हो गया है, जो उसके अस्तित्व और उसके प्रतीकों से खिलवाड़ कर रहा है। आज हिन्दू को खुद के हिंदुत्व पर विश्वास हो गया है।

काल ने भारत के कपाल पर जो 16 मई 2014 को मोदी जी को प्रतिस्थापित किया है, उसके मूल में एक ही उद्देश्य था और वह था, शताब्दियों से गुलाम रही हिन्दू नस्ल में, विजेताओं द्वारा रोपित हीनता और स्वतंत्रता के बाद, सेक्युलर व्यवस्था द्वारा पल्लवित किये गए अपराध बोध और आत्मग्लानि को हिन्दुओं द्वारा स्वयं से ही चिन्हित करवाना। उनके अंदर इस विश्वास का उदय कराना की वह, इस हीनता, अपराधबोध और आत्मग्लानि के विषधरों को काट कर मुक्त हो सकते है और वह, स्वाभिमान से हिंदुत्व को आलिंगनबद्ध कर सकते है।

दादरी से लेकर अलवर तक के सफ़र में भारत के हिन्दू ने एक सबक सीखा की भारत के लिए हिंदुत्व ही राष्ट्रवाद और विकास की कुंजी है, क्यूंकि हिंदुत्व अपने अंदर ही ‘उदार चरितान्तु वसुधैव कुटुम्बकम’, को समाहित किये हुए है। .

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