हमारी परेशानी ही यही है की हम भारत के “लोग” हैं!

भारत निर्माण

हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जब कहते है – हमें आज़ादी के लिए अपना जीवन अर्पित करने का मौका नहीं मिला लेकिन हमारे पास देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले स्‍वतंत्रता सेनानियों के सपनो के भारत निर्माण करने के लिए जीने का अवसर है और इस निर्माण मे युवाओं को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। देश सकारात्मक दिशा मे आगे बढ़े इसके लिए सही दिशा मे छोटे छोटे ही सही सकारात्मक कदम ज़रूरी है। इन छोटे-छोटे कदमो से हमारा देश सवा सौ करोड़ कदम आगे बढ़ भारत निर्माण होगा।

जैसा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 150वें स्थापना दिवस के मौके पर देश के मुख्य न्यायाधीश श्री जे.एस.खेहर ने कहा कि हम जहाँ भी है जो भी अपने स्तर से कर सकते है हमें करना चाहिए। कोर्ट मे वादों को निपटाने मे न्यायाधीशों को कुछ त्याग तो करना ही होगा। इस अपील का असर भी हुआ है।

कुछ वर्ष पहले जापान के राजदूत भारत के दौरे पर एक स्कूल मे गये तो वहाँ के छात्रों ने उनसे पूछा- “आपके देश मे इतने कम लोग है फिर भी आपका देश विकसित है, लेकिन हमारे देश मे आपसे ज़्यादा लोग हैं फिर भी लेकिन फिर भी हम विकासशील ही क्यों है ? सवाल सुनकर जापानी राजदूत मुस्कुराया और बोला- हमारे यहाँ लोग नहीं रहते, जापान के नागरिक रहते है, यही हमारी खुशहाली का कारण हैं।

जैसा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था- जिस भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा है उसकी व्याख्या भी यही है कि ‘भरणात् रक्षणात् च’ – अर्थात् भरण और रक्षण के कारण वह भरत कहलाता था। उसका यह देश भारत है। इस देश में भरण-पोषण की गारंटी न रही तो ‘भरत’ नाम सार्थक नहीं होगा। जो लोग राष्ट्रीयता का माखौल उड़ाकर राष्ट्र के विचारो को तिलाँजलि देकर विभिन्न प्रकार के ‘तथाकथित वादो’ के नारों में उलझते हैं, वास्तव में वो भूल करते हैं उनके हाथों कोई अच्छा कार्य नही हो सकता। समाजवाद, पूँजीवाद, प्रजातंत्र, अन्य कोई भी वाद अधिक से अधिक एक रास्ता है प्रगति का या भारत निर्माण का नहीं। राजनीति आखिर राष्ट्र के लिए ही है। यदि राष्ट्र का विचार छोड़ दिया मतलब राष्ट्र की अस्मिता, उसके इतिहास, सँस्कृति, सभ्यता को छोड़ दिया तो राजनीति का क्या उपयोग?

राष्ट्र का स्मरण कर कार्य होगा तो भारत निर्माण होगा। राष्ट्र को छोड़ा तो सब शून्य जैसा ही है। भारत को परम वैभवशाली बनाने का लक्ष्य हमारे सामने है। इस लक्ष्य को साकार करने के काम में सहयोग देने के लिए हम सबको एकजुट होकर कर्मशील बनना होगा। राष्ट्रीय जीवन के सभी क्षेत्रो को सुधारने और सँवारने की चुनौती हमारे सामने है।

कालीकट के अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय जी ने सम्पूर्ण राष्ट्र को चरवैति..चरवैति… का जो संदेश दिया था उसे लेकर युवाओं को राष्ट्रहित मेँ एकजुट करते हुए कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा, तभी भारत निर्माण संभव हैं।

स्वामी विवेकानन्द ने कहा था ~ “जब तक लाखों लोग भूख और अज्ञानता में रह रहे हैं, तब तक मैं हर उस व्यक्ति को देशद्रोही मानता हूँ, जिसने उनके पैसे से शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद उन पर थोड़ा भी ध्यान नहीँ दिया। गरीबों की उपेक्षा और उनका शोषण भारत के पतन और पिछड़ेपन का मुख्य कारण है।”

अब समय आ गया है जब देश का युवा ‘हम भारत के लोग’ की अवधारणा से बाहर निकल कर ‘भारत के ज़िम्मेदार नागरिक’ की तरह कर्तव्य पथ पर आगे बढ़े। हर भारतीय जो इस देश का नागरिक है सुखी हो, समृद्ध बने, देश की उन्नति का प्रेरक बने। देश की एकता, अखंडता, राष्ट्रीय सुरक्षा और समरसता के लिए एकजुट रहे। संवैधानिक मूल्यो और देश के प्रति समर्पित रहे, क्यूँकि हम युवाओं को मिलकर एक नया भारत बनाना है, भारत निर्माण करना हैं।

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