सत्रह साल में सत्रह सौ मौके मिले नक्सली उन्मूलन के, लेकिन छत्तीसगढ़ वहीं का वहीं

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में चिन्तगुफा क्षेत्र में नक्सली हमले से सीआरपीएफ के 26 जवान शहीद हो गए हैं। हमले में कुछ जवान घायल भी हुए हैं, जिनमें से 5 की हालत गंभीर है। ये जवान सीआरपीएफ की 74वीं बटालियन के थे। अभी कुछ दिनों पहले ही इसी क्षेत्र में एक बड़ा नक्सली हमला हुआ था जिसमें भी सीआरपीएफ के जवान शहीद हुये थे और पिछले 2 महीनों में ये दूसरी बड़ी घटना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि – “हमला करने वाले नहीं बचेंगे।” लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर कब कोई कड़ा फैसला लिया जायेगा ?

सीआरपीएफ एक टुकड़ी सुकमा के चिंतागुफा में सड़क निर्माण कार्य की सुरक्षा में लगी हुई थी। चिंतागुफा थाना क्षेत्र में सीआरपीएफ और जिला बल के संयुक्त दल को गश्त के लिए रवाना किया गया था। रवानगी के दौरान जब सीआरपीएफ का दल जब बुरकापाल क्षेत्र में था, तब नक्सलियों ने घात लगाकर उन पर हमला कर दिया, जिससे 11 जवान मौके पर ही शहीद हो गए।

घटना की जानकारी मिलने के बाद क्षेत्र में अतिरिक्त पुलिस दल रवाना किया गया और घायल जवानों को बाहर निकालने की कार्रवाई की गई। सीआरपीएफ की दूसरी टुकड़ियां मुठभेड़ की जगह पर पहुंच गई हैं और वहां सघन तलाशी के लिये अभियान चलाया जा रहा है। एक अधिकारी ने बताया कि घायलों के निकालने के लिए एक हेलीकॉप्टर भी घटनास्थल के लिए भेजा गया।

50 दिनों के अंदर सुकमा क्षेत्र में ही दो-दो बड़े हमले से दिखता है कि नक्सलियों के हौसले कितने बुलंद हैं वहीं राज्य सरकार के पूरी तरह से पस्त।

17 वर्ष हो गए छत्तीसगढ़ राज्य बने, लेकिन आज तक नक्सली निवारण का कार्य नहीं किया जा सका है। सुकमा, दंतेवाड़ा, कांकेर के साथ साथ पूरा बस्तर क्षेत्र नक्सलियों से घिरा हुआ है, जिनको ऊँचे स्तर पर शहरी नक्सलियों और देशविरोधियों का समर्थन प्राप्त है।

कुछ एनजीओ तो खुले तौर पर नक्सलियों का समर्थन और उनके लिये संसाधन की व्यवस्था करते हैं।

सबसे बड़ी समस्या है नक्सली निवारण के लिये राज्य सरकार की इच्छाशक्ति का अत्यंत कमजोर होना। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह 14 वर्ष से मुख्यमंत्री हैं लेकिन उन्होंने नक्सली निवारण के लिये अभी तक कोई ठोस कार्य नहीं किया हैं। इस मुद्दें पर राज्य के गृह मंत्री राम सेवक पैकरा भी अत्यंत ही नाकाम साबित हुये हैं। कड़ी निंदा के अलावा तो जैसे इनके पास कहने को अब कुछ रह ही नहीं गया है।

बार-बार अपने जवानों को मरते देखना दुःखद होता है। आज कश्मीर से लेकर सुकमा तक देश में अस्थिरता फैलाई जा रही है। बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में बैठे वामपंथी विचारक इन उग्र वामपंथियों का खुले तौर पर समर्थन करते हैं। ये वामपंथी समुदाय एनजीओ के नाम पर विदेशी फंडिंग से देश में अस्थिरता के माहौल को बढ़ावा देते हैं। वैचारिक दलाली के मामले में इन्होंने जो स्तरहीनता की हदें पार कर दी हैं।

नक्सलियों के समर्थन में काम करने वाले लोगो को ना ही राज्य सरकार रोक पा रही है ना ही केंद्र। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह नक्सल मुद्दों पर सिर्फ और सिर्फ जुमले देते रहें हैं। राज्य सरकार की नाकामी और लापरवाह रवैये को देखते हुये अब ज़रूरत है केंद्र को इसमें दखल देने की। छत्तीसगढ़ सरकार को पर्याप्त मौके दिए गए लेकिन वो हर क्षेत्र में नाकाम ही साबित हुयी है। केंद्रीय गृह मंत्री के साथ साथ प्रधानमंत्री को स्वयं इस मामले में संज्ञान लेने की आवश्यकता है। भारत के एक खूबसूरत शहर और संसाधन से भरे क्षेत्र की दुर्गति लगातार जारी है, इसे बचाने के लिये अब कड़े कदम उठाने आवश्यक है।

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