कुछ उदाहरण जो सिद्ध करते हैं कि हमेशा से ही हिंदू विरोधी रही है कांग्रेस पार्टी

कांग्रेस हिंदू विरोधी

“सेक्युलिरज्म” बहुत भारी और व्याप्त शब्द लगता है, है ना। और इसी शब्द को ढो कर हमारे भारत देश की तमाम राजनैतिक पार्टियां अपनी राजनीति करती है(कुछ एक को छोड़ दे तो)। क्योंकि भारत में “सेक्युलिरज्म” का मतलब “तुष्टिकरण” होता है। इस सेक्युलिरज्म का दायरा बहुत बड़ा है, पर दुर्भाग्यवश उस दायरे में हिंदू धर्म के लिए कोई जगह नहीं है। और अगर थोड़ी बहुत है भी तो वो तत्कालीन परिवेशों को देख के तय होती है। मतलब आवाज किसके लिये उठानी है सवर्ण या दलित के लिये, ये देख के। खुद को सेक्युलर सेक्युलर कहने वाले हमारे देश के तमाम नेताओं को अगर गौर से देखा जाये तो आप पाएंगे के, सेक्युलिरज्म से इनका दूर दूर तक कोई नाता नही है।

आप सोच रहे होंगे के आज मै ये सब क्यों बता रहा हूँ। इसका कारण है कल की केरल में घटी घटना, जहाँ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सरकार के नये कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिये सरे आम गौमाता को काट कर उसका मांस वितरित किया। अगर धार्मिक दृष्टि से नहीं भी देखा जाये तब भी ये कृत्य अत्यंत घृणास्पद और वीभत्स है। गाय को हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। वेदों पुराणों में गाय का महत्व समझाया हुआ है। और हिंदू गाय को अपनी माता समान मानते है। और फिर भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने देश के 80 करोड़ से ज्यादा लोगों की भावनाओं की कद्र ना करते हुए ऐसा घृणित कृत्य किया। क्या कांग्रेस या कोई भी अन्य पार्टी कभी सूअर को काट के उसका मांस वितरित करेगी, नहीं करेगी, क्योंकि सूअर एक धर्म विशेष में निषिद्ध माना जाता है और ऐसा करने से देश का सेक्युलिरज्म खतरे में आ जायेगा, एक धर्म विशेष के साथ ये अन्याय होगा। केरल में जो हुआ वो कांग्रेस जैसी खुद को सेक्युलर कहलाने वाली पार्टी की सोच बयान करता है।

हालां कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं की इस हरकत के बाद कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने एक ट्वीट कर इस घटना की निंदा की।

पर देश के नागरिक इतने भी नासमझ नहीं है के ये तक न समझ पाये के ये बस एक डैमेज-कण्ट्रोल की कोशिश है। कोई भी पार्टी का कार्यकर्ता अपने हुक्मरानो के आदेश बिना ऐसा कदम नहीं उठाएगा। और सिर्फ ट्विटर पे निंदा करने से क्या होता है, अगर सच में आहत होते तो अपने कार्यकर्ताओं पे कुछ एक्शन लेते राहुलजी, या अपने कार्यकर्ताओं के खिलाफ FIR करवाते। पर नहीं, जो काम हुआ है वो अगर पार्टी की सोच हो तो उसके खिलाफ कैसा एक्शन। वैसे इस बात में कोई दो राय नहीं है के कांग्रेस की ये हरकत उनके ताबूत में आखिरी कील साबित होगी (हाँ भाई ताबूत ही, क्योंकि क्रियाकर्म साम्प्रदायिक है और कांग्रेस तो धर्मनिरपेक्ष है ना)

सन् 1950 संसद में “हिंदू कोड बिल” पास हुआ, तब का पता नहीं पर आज का मुझ जैसा हिंदू (जिसे काफी लोग साम्प्रदायिक भी कहते है) इस बात का स्वागत ही करता दिखेगा। पर उसी समय जब “मुस्लिम कोड़ बिल” लाने की बात हुई तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ये कहते हुए टाल दिया कि “अभी अभी पाकिस्तान से काफी मुस्लिम भारत में स्थानांतरित हुए है, ऐसे में हम अगर इस तरह का कोई बिल लाते है तो उनमें एक डर बैठ जायेगा, जब वो खुद को इस देश में सुरक्षित समझने लगेंगे तब हम इसपर बात करेंगे” पर दुर्भाग्य वश हम आज तक उनको सुरक्षित महसूस नहीं करवा सके, हाँ भाई नहीं तो “मुस्लिम कोड़ बिल” आ जाता कब का।

गुजरात दंगे जिसका जिक्र कांग्रेस के छोटे कार्यकर्ता से लेकर बड़े लीडरों तक हर कोई दिन में चार दफा करता है। जिसके बूते कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को दबाने की कोशिश की। उस कांग्रेस ने कभी भूल से भी गोधरा कांड का जिक्र नहीं किया। करते भी कैसे क्योंकि गोधरा कांड सेक्युलर था और उससे उत्पन्न हुए गुजरात दंगे सांप्रदायिक, अब ऐसे में कांग्रेस जैसी सेक्युलर पार्टी तो साम्प्रदायिक घटना पे ही टिप्पणी करेगी। और मजे की बात तो ये है के गोधरा कांड को अंजाम दिलवाने में कांग्रेस के ही नेता “फारूक भाना” का हाथ था।

मोहम्मद अकलाख और प्रशांत पुजारी, दो नाम दो धर्म। एक सेक्युलर धर्म से, दूसरा सांप्रदायिक धर्म से। पहले की मौत सम्प्रदायिकता की वजह से तो दूसरे की मौत सेक्युलिरज्म की वजह से। पहले का गुनाह ये की वो हिंदू धर्म में धार्मिक महत्व रखने वाली गाय को मार के पकाना चाहता था, तो दूसरे का ये के वो अपने धर्म में माँ मानी जाने वाली गाय को बचाना चाहता था। पहले को भी भीड़ ने मारा दूसरे को भी भीड़ ने मारा। फर्क बस इतना था के पहले को मारने वाली भीड़ साम्प्रदायिक थी और दूसरे को मारने वाली सेक्युलर। ऐसे में कांग्रेस ने अकलाख को मारने वाली भीड़ के खिलाफ जो विलाप किया वो देखते ही बनता था, वही दूसरी तरफ पुजारी नाम का कोई व्यक्ति सेक्युलर भीड़ द्वारा मारा गया ये बात कर्नाटक कांग्रेस “शापित” राज्य होने के बाद भी किसी कांग्रेसी को पता नहीं थी। मै किसी भी हत्या का समर्थन नहीं करता, ना अकलाख की न प्रशांत पुजारी की पर दो सामान घटनाओं पे दोगली राजनीति की निंदा जरूर करता हूँ।

वैसे कांग्रेस के हिंदू विरोध की दास्ताँ लिखने जाऊँ तो शायद पूरा दिन कम पड़ जाये, पर वाचकों को कांग्रेस के हिंदू विरोध का दर्शन कराने के लिए इतने उदाहरण पर्याप्त होंगे।

केरल में जो हुआ वो धर्म को ही नहीं इंसानियत को भी शर्मसार करने वाला था, पर गौमाता का मन विशाल है और इसके लिए शायद गौमाता उसके हत्यारों को माफ़ भी कर दे, पर क्या हम कांग्रेस को दोबारा वोट दे पाएंगे?

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