भारतीय क्रिकेट के सबसे चमकीले सितारे का अक्खड़पन बेहद घिनौना है

आँखों का तारा

ज़्यादा वक़्त पहले की बात नहीं है, जब एक लड़का हुआ करता था, जो अपने स्कूल के हर क्रिकेट मैच में धुआंधार पारियाँ खेलता रहता था। अभ्यास मैच हो या वनडे, टेस्ट हो या टी 20, इसकी योग्यता का कोई सानी नहीं था। पहले ये काफी शांत और सौम्य था, सबसे प्रेमपूर्वक बात करता, मैच में दूसरे विद्यार्थियों की मदद भी करता और खुद न बात कर अपने बल्ले से सबको जवाब देता। कोच और साथी उसके तारीफ़ों के पुल बांधते थे। अपनी कक्षा में वो सबकी आँखों का तारा था। जैसे जैसे वो आगे बढ़ा, वैसे वैसे उसका कद, घमंड और उसके स्कोर बढ़े, पर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि वो हर खेल में नित नए कीर्तिमान जड़ता था।

धीरे धीरे शहर में वो विद्यालय अव्वल बन गया, और अपने करिश्माई कैप्टन कूल के सानिध्य में सारी बड़ी ट्रॉफियाँ जीतने लगा। इन्ही टूर्नामेंटों में वो आँखों का तारा अधिकांश बार मैन ऑफ दी सिरीज़ बनता था। पिछले एक दशक से कैप्टन कूल का शांत चेहरा देखकर पक चुके कोच इसके जोशीले व्यवहार से काफी खुश और प्रेरित भी रहते थे।

जैसे हर कथा का एक अंत होता है, कैप्टन कूल इस स्कूल से उत्तीर्ण होकर बाहर जा रहे थे, और उनकी जगह खाली पड़ रही थी, तो विद्यालय ने अपनी आँखों के तारे उस लड़के को ही नया कैप्टन बना दिया, ये अलग बात थी की इंटरा स्कूल टूर्नामेंटों में इनकी टीम का सबसे बढ़िया रेकॉर्ड होने के बावजूद इनका जलवा न के बराबर था, और एक भी ट्रॉफी इनके हाथ नहीं लगी थी, और इससे ज़्यादा हास्यास्पद था मैगी जैसे लड़कों का यह टूर्नामेंट जीतना।

बाहरी लोगों को कोच बनाने के 16 साल पुरानी रीति तोड़ते हुए इसी विद्यालय ने अपने सबसे उत्कृष्ट पूर्व स्पिनर को इस टीम की कमान बतौर कोच सौंपी। फिर क्या था, सबकी आँखों के तारे की टीम ने धमाकेदार शुरुआत करते हुये तगड़े विपक्षी टीम जैसे पोम्स और कीवियों के खिलाफ घरेलू खेल जीत के दिखाये, और अपने ही घर में अपने आप को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम समझने वाली बांग्ला को भी धूल चटाई। अब आँखों का तारा अजेय हो चुका था, उसका कोई सानी नहीं दिख रहा था।

अगला कार्य था कभी महान टीम रही औस्सीज को घर पर हराने का। आँखों का तारा अब 4-0 से जीतने को तत्पर था, और हुआ भी वही। कैप्टन कूल तो इससे भी कठिन टीम के खिलाफ 4-0 से जो जीते थे। औस्सीज का हारना बड़ा  था, सवाल बस यह था की कितनी बुरी तरह हारते?

पर जैसे ही पहला मैच शुरू हुआ, सब कुछ वैसा नहीं जैसा होना चाहिए था। औस्सीज ने अपने आँखों के तारे के पसीने छुड़ा दिये। इनकी कप्तानी में कमजोरी के बादल दिखने लगे। जब जीतना हो तो कप्तानी कैसे करते हैं, ये उसे आता था, पर जब हार सामने आ जाये, तो कैसे कप्तानी करते हैं, ये अभी उसने नहीं सीखा था। बल्ले के बजाए अब वो मुंह से बातें करने लगा। सिर्फ अपने घमंड को हवा देने के लिए इनहोने अजीबोगरीब डीआरएस रेव्यू लिए। सिरीज़ अब इतनी बेकार जाने लगी की आँखों का तारा जब घायल हुआ, तब लगा की विद्यालय के साथ कुछ अच्छा हुआ है। स्कूल ने निर्णायक मैच एक नए कैप्टन के सानिध्य में जीता, जो उस सिरीज़ में ही सही, पर आँखों के तारे से बेहतर कैप्टन था। लोगों को समझते देर न लगी, की आँखों का तारा अब बहुत जल्द आँखों का नासूर बनता जा रहा था।

अगर सिर्फ एक सिरीज़ ऐसी हुई होती तो कोई बात न थी, क्योंकि एक सिरीज़ हमारे आँखों के तारे को एक खराब कप्तान नहीं सिद्ध कर सकती थी। अब एक महत्वपूर्ण टूर्नामेंट आने वाला था, जिसमें शहर [या दुनिया कह लो] के टॉप 8 स्कूल हिस्सा लेने वाले थे। सबकी नज़रें उस टूर्नामेंट में लगी हुई थी, सिवाय उस आँखों के तारे के। टूर्नामेंट की शुरुआत में ही इनहोने शिकायत की अपने कोच के तानाशाही रवैये के खिलाफ, जबकि सब जानते की मैदान पर असल तानाशाह कौन है। यह ऐसे वक़्त पे आया जब कोच ने अपने अनुबंध के नवीकरण की याचिका दायर की थी।

विद्यालय अब धर्मसंकट में था, क्योंकि वो अब इस लड़के के और चोंचले सुनने को तैयार नहीं था, और ना ही चाहता था की एक किवंदती कोच का अपमान हो। सो उन्होने अपने सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की एक समिति बनाई, जो नए कोच को चुनती। समिति ने एक बार फिर इसी कोच को चुना, पर नुकसान तो हो चुका था।

अपने चिर प्रतिद्वंदीयों को धूल चटाकर हमने इस टूर्नामेंट में धमाकेदार शुरुआत की, हालांकि टूर्नामेंट में कोई दिक्कतें भी रही, फिर  भी फाइनल्स  में शानदार रूप से टीम ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई।

फ़ाइनल में सामने फिर से चिर प्रतिद्वंदी ही थे, जीतने की पूरी संभावना थी, पर हमारी टीम ने घुटने टेक दिये, और वो भी बेशर्मी से। टॉस जीतने के बाद हमारे आँखों का तारा ने गलत फैसला लेने से लेकर पेसर के बजाए स्पिनर खिलाने तक, वो भी एक तेज गेंदबाज के लिए बनी पिच पे, ये सिर्फ हारे थोड़ी ना थे, इन्हे तबीयत से धोया गया था।

इस शर्मनाक हार के बाद करिश्माई कोच ने अपने पड़ से भावपूर्ण इस्तीफा दिया, जिसमें विद्यालय के प्रबन्धकों को अपने आँखों के तारे की काली करतूतें भी बताई। अभी के लिए विद्यालय बिना किसी कोच के है, आने वाला अब इस गुंडे पर नज़र भी रखेगा, और खुद ये गुंडा अब सबकी नज़रों में अपने वाहियाद खेल के चक्कर में आ चुका है। इनकी कप्तानी में फैली गंदगी अब सामने आ चुकी है। इनका हनीमून पीरियड अब खत्म हो चुका है। अब चाहे कितने रन बना ले, ना तो जनता और ही इनका विद्यालय इनके कीर्तिमान को स्वीकारेगा, क्योंकि इनकी झोली खाली है।

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