इज़राइल के पीएम का पीएम मोदी के नाम सन्देश पढ़ कर आप गर्व से भर जायेंगे

इज़राइल भारत मोदी

Image Courtesy: The Times of Israel

भारत और इज़राइल [इजराएल] में काफी कुछ समान है। दोनों को कृत्रिम रेखाओं से धर्म के आधार पर खींचा गया। दोनों कट्टर शत्रु समान पड़ोस से घिरे हुये हैं, जिनका एक ही उद्देश्य है, इनकी  बरबादी। दोनों ने अपने पड़ोसियों के खिलाफ अनगिनत युद्ध लड़े हैं।

दोनों राज्यों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के शिकार रहे हैं। पर आश्चर्यजनक रूप से ऐसे देशों के बीच संबंध वैसे नहीं है जैसे होने चाहिए, जिसका सबसे बड़ा हमारी पुरानी और रूढ़िवादी विदेश नीति, जिसने इज़राइल के ही अस्तित्व को सालों तक गुट निरपेक्षता के नाम पर नकारा। हमने इन्हे 1950 में भले ही स्वीकृति दी हो, पर सम्बन्धों में मिठास कई वर्षों तक नहीं आई। इनके पास सिर्फ मुंबई में एक आप्रवासन [इमिग्रेशन] ऑफिस था, जिसे बाद में पहले व्यापार कार्यालय, और फिर वाणिज्या दूतावास के तौर पर उन्नति की गयी।

आधिकारिक रूप से इजराएलियों और भारतियों के बीच दोस्ती 1992 से चल रही है। भारत और इज़राइल 23 सालों से कूटनीतिक रिश्ते संभाले हुये हैं। दोनों ने काफी करीब से कृषि, खनन, ऊर्जा और खासकर रक्षा क्षेत्रों में साथ काम किया है। इज़राइल ने भारत की आतंकवाद को काबू में करने में काफी हद तक सहायता की है। पाकिस्तान के खिलाफ भारत के युद्ध में जहां पूरी दुनिया ने उसका साथ देने से मना किया, इज़राइल ने न सिर्फ़ ज़ुबान से, बल्कि सबके सामने खुलेआम भारत की इस मुहिम में 1971 से सहायता करता आ रहा है। पाकिस्तानी इलाकों की तस्वीरें इज़राइल ने अपने यूएवी [मानव रहित हवाई वाहन] के माध्यम से भारत को कार्गिल युद्ध में मदद दी। भले ही भारत ने युद्ध जीता था, पर अगर इज़राइल की यह मदद न मिली होती, तो ऐसा होने में ज़्यादा समय और ज़्यादा नुकसान होता। पाकिस्तान के खिलाफ ही एक सीमित सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन पराक्रम’ में भी इज़राइल ने भारत की सहायता की, विशेष विमानों के जरिये हार्डवेयर भेजकर।

पर इज़राइल को भारत से बदले में क्या मिला? कुछ नहीं!

इससे आहत हो एक समय इज़राइल सरकार के एक महत्वपूर्ण कर्मचारी ने कहा था, भारत वो बला है, जो इज़राइल के साथ प्रेम संबंध तो रखती है, पर उसे सबके सामने स्वीकारने से डरती है। पर ये बीता हुआ कल था, हर चीज़ की तरह 2014 में एक नए भारत, और भारत इज़राइल सम्बन्धों का एक नया अध्याय शुरू हुआ।

अक्टूबर 2015 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इज़राइल की यात्रा की। इस यात्रा ने राजनीति में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर स्थापित किया, क्योंकि ये किसी भी भारतीय राष्ट्रपति द्वारा पहली इज़राइल यात्रा थी।

जनवरी 2016 में विदेश मंत्री श्रीमति सुषमा स्वराज ने इस देश का दौरा किया।

इसी वर्ष अप्रैल में लगभग 200 करोड़ डॉलर्स की रक्षा सौदों पर भारत और इज़राइल ने भारतीय थलसेना की क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्य से हस्ताक्षर करे। इस सौदे के अनुसार इज़राइल एरोस्पेस उद्योग भारतीय थलसेना को विकसित मीडियम रेंज की मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति कराएगी। सुरक्षा के मसले से संबन्धित कैबिनेट कमेटी, जिसे खुद इज़राइल के प्रधानमंत्री नेतृत्व संभालते हैं, ने फ़रवरी में इस सौदे पर हामी भरी थी। इजराएली रक्षा के इतिहास में ये सबसे बड़ा अनुबंध रहा है।

तो साफ तौर पर प्रधानमंत्री मोदी ने अरबों की प्रशंसा पाने के लिए इजराएलियों को नज़रअंदाज़ करना बंद कर दिया है, और यह बात खुद इज़राइल के पीएम बेंजामिन नेतान्याहु बखूबी जानते है, और इसीलिए वे प्रधानमंत्री मोदी के आगमन का बेसबरी से इंतज़ार कर रहे हैं!

हाल ही में ट्वीटों की एक लड़ी के द्वारा नेतान्याहु ने मोदी के आगमन की महत्वता और दोनों देशों में मजबूत रिश्तों की अहमियत बयां की:-

https://twitter.com/IsraeliPM/status/878909993189343232

ये एक महत्वपूर्ण पल है। पूरा विश्व इस बात से अनभिज्ञ रहा है की इज़राइल ऐसे लोगों से भिड रहा है, जो हर इजराएली का सर्वनाश चाहता है। हमास के युद्ध अपराधों को यूएन देखने से भी इंकार करता है, जांच तो बहुत दूर की कौड़ी है। कभी दुनिया की तरह इज़राइल फ़लस्तीन के रिश्तों पर दोगलापन दिखाने वाला भारत अब पीएम मोदी के जरिये अपनी गलतियाँ सुधारकर एक नई दिशा में इज़राइल के साथ बढ़ना चाहता है, इज़राइल के साथ आतंकवाद को इस दुनिया से मिटाने के पाठ पर।

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