भारतीय टीम की पाकिस्तान के हाथों करारी हार की सबसे बड़ी वजह ये है

कोहली कप्तान

Image Courtesy: OneIndia

ऐसा कैसे हो सकता है जिस टीम के आगे अच्छे से अच्छे धुरंधर टीमें ढेर हो गयी वो ऐसे हार जाए? ऐसा कैसे हो सकता है की जिस टीम को कुछ ही हफ्तों पहले हमने धूल चटाई थी, उसी के सामने हम घुटने टेक दें, वो भी इतने शर्मनाक तरीक़े से? बैटिंग हो या बोलिंग, यहां तक कि फील्डिंग में भी पाकिस्तान ने तबियत से हमें धोया है।

ठीक है, हार जीत तो लगी रहती है, पर जिस टीम के पास भुवनेश्वर कुमार जैसा स्विंग गेंदबाज़ भुनेश्वर कुमार हों, सर्वश्रेष्ठ वनडे स्पिनर अश्विन हों, सबसे विस्फोटक बल्लेबाज़ विराट कोहली हो, सर्वश्रेष्ठ वनडे फिनिशर धोनी हों, और धमाकेदार ओपनर शिखर और रोहित हों, ऐसी टीम का नौसिखिये पाकिस्तानियों के सामने ऐसे बेशर्मी से घुटने टेकना, वो भी चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में , कुछ हजम नहीं होता।

इसके बारे में जितना सोचता हूँ, उतना ही मेरा शक यकीन में बदल जाता है, की इस शर्मनाक हार के पीछे कप्तान विराट कोहली की घटिया कप्तानी का हाथ है।

यह विकेट तो बल्लेबाज़ का स्वर्ग था, आउटफील्ड भी तेज़ था, और दिन भी सुहाना था। तो ऐसे में पहले गेंदबाजी करने का क्या तुक था? इसलिए की भारत लक्ष्य का पीछा करने में अक्सर सफल होता है? ये गलत था, क्योंकि ऐसे मौकों पर जरूरी नहीं कि लक्ष्य का पीछा करें, लक्ष्य दिया भी तो जा सकता था। ज़ाहिर सी बात थी, जब बल्लेबाज़ उतरे, तो उनके चेहरे पर चिंता के बादल साफ दिख रहे थे।

भारत के दो सर्वश्रेष्ठ कप्तान धोनी और गांगुली अपने असाधारण बोलिंग परिवर्तन के लिए जाने जाते थे। जहाँ गांगुली विपक्षी टीम की बड़ी साझेदारी बनाने पर अक्सर गेंद सचिन या सहवाग या फिर स्वयं को थमाया करते थे वहीँ धोनी इस काम के लिए युवराज और जडेजा(जो उस समय पार्ट टाइम गेंदबाज़ थे) को चुनते थे. कल जब कोहली के दोनों स्टार फिरकी गेंदबाज़ पिट गए, तो उन्हें लगाये रखने का औचित्य क्या था? कोहली के पास विकल्प थे, केदार जाधव थे विकल्प में।
कल फील्डिंग के नाम पर आखिर हो क्या रहा था? रन बचा के आज तक कोई टीम एकदिवसीय श्रंखला का फाइनल नहीं जीती है, जीतने के लिए विपक्षी टीम की गिल्लियां उड़ानी पड़ती है. कोहली की फील्ड प्लेसमेंट बिलकुल रक्षात्मक थी, उसमे आक्रामक तेवर लेश मात्र भी नहीं था। कोई स्लिप नहीं, कैचिंग पोजीशन पर एक भी फील्डर नहीं, और तो और जब फखर ज़मान गेंदबाजों की धुनाई कर रहे थे तब भी फील्डिंग जस की तस रही, ना पोजीशन बदले ना आक्रामकता आई।

और बार बार जो कोहली एक बालक की भाँति धोनी के पास चले जाते हैं राय मांगने के लिए वह भी ठीक नहीं है. ठीक है पूर्व कप्तान और सीनियर्स के लिए सम्मान अच्छी बात है लेकिन जब तक खुद के फैसलों पर भरोसा नहीं तब तक कप्तानी किस काम की। एक टीम का विश्वास एक कप्तान तभी जीत सकता है जब वो अच्छे फैसले ले और उनपर अडिग रहे। और तो और कुंबले के साथ कोहली की कथित नोक-झोंक ने भी टीम का मनोबल नीचा किया।

विराट कोहली के बल्लेबाज़ी के क्या कहने, पर कप्तान के तौर पर इन्होंने बहुत निराश किया है।

विजेताओं की टीम होने के बावजूद इनका सही ढंग से कोहली ने उपयोग नहीं किया। अब वो खुद कप्तान है, तो आशा करते हैं कि वो अपने खुद के उदाहरण से अपनी प्रतिबद्धता सिद्ध करें.

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