इन 10 कारणों से श्री रामनाथ कोविन्द ने राष्ट्रपति उम्मीदवारी की रेस जीती

रामनाथ कोविन्द

एक अप्रत्याशित दांव खेलते हुये नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जुगलबंदी मीडिया हाउस और सम्पूर्ण विपक्ष की बोलती बंद करने में एक बार फिर सफल रही है। जब मीडिया अपने ही विचारों और सिद्धांतों की पोटली बना राष्ट्रपति चुनाव में बाँच रही थी, और कई प्रसिद्ध नामों पर विचार विर्मश करने में व्यस्त थी, तभी एनडीए ने अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार की घोषणा की, जो इनके आशाओं के एकदम विपरीत निकले।

हाल ही में एक नितिक्ष श्रीवास्तव के नाम से चलने वाले ट्विट्टर हैंडल का ट्वीट सामने आया है, जिसने बड़े सटीक रूप से 2016 में ही एनडीए के इस उम्मीदवार की घोषणा की भविष्यवाणी की थी, और बड़े करीने से इस हैंडल ने बड़े बड़े मीडिया घरानों और विपक्ष के प्रपंची नेताओं को धूल चटा दी।

इन  उम्मीदवार का नाम है रामनाथ कोविन्द, जो पेशे से वकील रह चुके है।

पर भाई, ये रामनाथ कोविन्द कौन है? ऐसी क्या बात है इनमे की पीएम मोदी ने इस वर्तमान बिहार के राज्यपाल को एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर चुनना ठीक समझा? आप खुद ही देख लें ।

परौन्ख गाँव, कानपुर शहर में 1 अक्टूबर 1945 को एक किसान परिवार को जन्मे श्री रामनाथ कोविन्द ने वकालत की शिक्षा ग्रहण की। ‘ऐसी क्या योग्यता है इनमे जो ये भारत के भावी राष्ट्रपति बन सकते हैं?’ जैसे प्रश्न के नीचे दिये गए तथ्य इनकी दावेदारी की पुष्टि करने के लिए काफी है:-

  1. वकालत की शिक्षा ग्रहण की।

बीएनएसडी इंटर कॉलेज के विद्यार्थी, और प्रसिद्ध दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज, कानपुर के स्नातक, श्री रामनाथ कोविन्द ने वकालत की शिक्षा भी ग्रहण की। कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी, श्री कोविन्द ने स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली की तरफ चल पड़े।

  1. लोक सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की

दिल्ली आने का इनका प्रमुख कारण था, लोक सेवा परीक्षा [यूपीएससी एग्ज़ाम्स] के लिए पढ़ाई करना और उसे उत्तीर्ण करना। हालांकि वे दो बार असफल भी हुये, पर तीसरी बारी में उन्होने ये परीक्षा उत्तीर्ण की। हालांकि इनकी रैंक आईएएस सेवा के लिए काफी नहीं थी, सो इन्हे सम्बद्ध सेवा में नौकरी से संतोष करना पड़ा।

  1. बार काउंसिल ऑफ इंडिया में वकील के तौर पर 1971 में दाखिला

आईएएस बनने का सपना त्यागने के बाद इनहोने वही किया जिसके लिए इनहोने कॉलेज में पढ़ाई की। 1971 में इनहोने बार काउंसिल ऑफ इंडिया, दिल्ली में बतौर वकील अपना दाखिला करवाया।

  1. दिल्ली हाइ कोर्ट में केंद्र सरकार के वकील (1977–1979)

इनकी सबसे पहली उपलब्धि आई 1977 में, जब इन्हे मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केंद्र सरकार की तरफ से दिल्ली हाइ कोर्ट में वकील नियुक्त किया गया। वहाँ इनहोने दो साल अपनी सेवाएँ दी।

  1. सूप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के स्थायी वकील (1980 – 1993)

1980 में इनके जीवन में एक और मोड़ आया। अब इन्हे सरकार की तरफ से सूप्रीम कोर्ट में बतौर स्थायी वकील प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। 13 सालों तक माननीय कोविन्द जी ने निस्संकोच अपनी सेवाएँ दी।

  1. मोरारजी देसाई के निजी सचिव के तौर पर कार्य किया

ये कुछ लोगों के लिए चौंकाने वाला तथ्य हो सकता है, पर इस राष्ट्रपति उम्मीदवार ने कभी भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई की बतौर निजी सचिव सेवा भी की थी। इससे इन्हे पीएमओ की कार्यशैली को करीब से जानने का मौका भी मिला।

  1. दो बार उत्तर प्रदेश से राज्य सभा सांसद (1994-2000 और 2000-2006)

इनके नाम अनगिनत उपलब्धि में सबसे उत्कृष्ट उपलब्धि है इनका बतौर राज्य सभा सांसद दो बार उत्तर प्रदेश से निर्वाचित होना। बतौर सांसद इनहोने सांसद की कार्यप्रणाली का भी गहन अध्ययन किया है। कई महत्वपूर्ण संसदीय समितियों की इनहोने अपनी सेवाएँ भी दी है, जैसे एससी/एसटी कल्याण समिति, सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण समिति इत्यादि। इसे कहने में कोई हर्ज़ नहीं की इन सेवाओं से इनहोने उच्च पद पर आसीन होने के लिए आवश्यक प्रशासनिक अनुभव भी ग्रहण किया है।

  1. न्यू यॉर्क में यूएन में भारत का प्रतिनिधित्व और यूएन आम सभा में अक्टूबर 2002 में भाषण का सौभाग्य

जब अटल बिहारी वाजपयी जी भारत के प्रधानमंत्री थे, तब उन्होने रामनाथ कोविन्द जी को संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधित्व का सुनहरा अवसर प्रदान किया। न सिर्फ इनहोने यह उत्तरदायित्व बखूबी संभाला, बल्कि अक्टूबर 2002 में आम सभा में इनहोने अपने भाषण से अपनी धाक भी जमाई। इससे ये साफ है की भारत के भावी राष्ट्रपति में देश का अंतराष्ट्रीय मंच पर प्रतिनिधित्व करने की उचित योग्यता भी है।

  1. वर्तमान में बिहार के राज्यपाल

71 वर्षीय रामनाथ कोविन्द बिहार के वर्तमान राज्यपाल के तौर पर अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। एक राज्य का कुशल निरीक्षण करने की इनकी क्षमता ने इन्हे एनडीए के लिए एक उचित उम्मीदवार के तौर पर उपर्युक्त समझा गया है।

  1. दलित – जिसमें मीडिया को ख़ासी दिलचस्पी हैं।

ये एक विडम्बना है की इस देश की राजनीति में योग्यता नहीं, जाति मायने रखती है। अब इससे एनडीए पूरी तरह अनभिज्ञ रहे, ऐसा सोचना भी असह्य है। एक दलित को उच्च पद के लिए नामित करना पार्टी के आगामी अभियानों के लिए वरदान समान ही साबित होगा। पर जिस तरह इसे मीडिया एक आडंबर बनाने पर तुली है, ऐसे योग्य मनुष्य के लिए अपमानजनक प्रतीत होता है, जिनहोने अपनी जाति के दंश से ऊपर उठ कर अपने देश की उच्च से उच्चतम सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

इसके अलावा डॉ॰ बी. आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ में बतौर प्रबंधन बोर्ड के सदस्य श्री कोविन्द कभी प्रसिद्ध भारतीय प्रबंधन संस्थान, कलकत्ता [आईआईएम कलकत्ता] के बोर्ड ऑफ गोवेर्नर्स के मनोनीत सदस्य भी रह चुके है। आरएसएस बैक्ग्राउण्ड से आने वाले कोविन्द जी बीजेपी दलित मोर्चा की 1998-2002 में अगुवाई भी कर चुके हैं। वे अखिल भारतीय कोली समाज के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

भारत का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतितनिधित्व करने का सौभाग्य इनके फायदे में ही रहा। चूंकि मोरारजी देसाई के साथ इनहोने काम किया है, इसीलिए इन्हे नीति निर्माण में भी अनुभव प्राप्त है। इनहोने एससी और एसटी समुदाय की महिलाओं के उन्मूलन और कानूनी सहायता में भी अपना योगदान दिया है। उत्तर प्रदेश और बिहार से संबन्धित होने के नाते इन्हे देश के लाखों लोगों की कई समस्याओं का भी गहरा अनुभव है।

बहरहाल, चाहे आप खुश हो या नाखुश, पर इस बार एनडीए ने अपना दांव सही खेला है। राष्ट्रीय राजनीति में इनका दांव आने वाले कई वर्षों तक अपनी छाप छोडते जाएगा। रामनाथ कोविन्द के लिए प्रणब दा की जगह भरना काफी मुश्किल होगा, पर उनका अनुभव और उनका ज्ञान इस देश के लिए काफी मूल्यवान सिद्ध हो सकता है।

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