ये पत्रकार हिन्दू धर्म को बदनाम कर रहा था, तभी इसके मुंह पर पड़ा कर्मफल का करारा तमाचा

रेज़ा असलान ट्रम्प

Mandatory Credit: Photo by Buchan/Variety/REX/Shutterstock (5510667w) Christina Jennings and Reza Aslan Winter TCA Tour - Day 1, Pasadena, America - 05 Jan 2016

यूएस के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ भद्दी गलियों का इस्तेमाल करने के लिए कथित पत्रकार रेज़ा असलान को आखिरकार उसकी उचित सज़ा मिल ही गयी। न सिर्फ उसे सीएनएन से फटकार पड़ी, बल्कि उसके कट्टरपंथी कार्यक्रम ‘बिलिवर’ पर कैंची भी चलायी गयी।

जिस ट्वीट ने रेज़ा के घमंड को चकनाचूर कर दिया, वो कुछ इस प्रकार है:-

“ये धरती का बोझ सिर्फ अमेरिका ही नहीं, राष्ट्रपति की कुर्सी पर भी कलंक है। पूरे मानवता पर यह शर्मिंदगी समान है!’
(This piece of sh*t is not just an embarrassment to America and a stain on the presidency. He’s an embarrassment to humankind)

हालांकि उन्होने क्षमापत्र भी लागू किया, पर ये किस कोण से क्षमापत्र लगता है? आप खुद ही पढ़ कर समझ लीजिये, ये तो बस शब्दों की कारीगरी है, जो एक लोकतान्त्रिक तरीके से निर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति पर भद्दा और करारा हमला है:-

जब लन्दन पर हुये आतंकी हमले के पहले कुछ मिनटों में अमेरिका के राष्ट्रपति ने यात्रा प्रतिबंध की बात की, तो मैंने अपना आपा खो दिया, और उनसे भद्दे रूप में प्रतिकृया दी। ये मैं नहीं हूँ। मुझे राष्ट्रपति के पीड़ितों के प्रति अभाव के विरोध में अपना हताशा और सदमा और बेहतर तरीके से जताना चाहिए था। मैं अपने शब्दों के लिए क्षमा मांगता हूँ।

“When in the first few minutes of the terror attack in London, the President of the United States tweeted about his travel ban, I lost my cool and responded to him in a derogatory fashion. That’s not like me. I should have used better language to express my shock and frustration at the president’s lack of decorum and sympathy for the victims of London. I apologize for my choice of words.” Source: DailyMail

हमें तो ऐसा लग रहा है, मानो अपने ही रविश कुमार ने अंग्रेज़ी के प्रकांड विद्वान बन इस क्षमापत्र को लिखा हो। उसी की तरह पाखंड की सोंधी खुशबू आती है इस पत्र से। आपको नहीं आती?

जो भी इन्होंने कहा है, वो किसी तरह से सच है, न ही क्षमा के योग्य। उन्होने कहा, ये मैं नहीं हूँ। सच पूछिये, तो ये वही हो सकते है।

रेज़ा असलान का इतिहास ऐसे ही ओछे, भद्दे, अश्लील संवादों से भरा पड़ा है। राष्ट्रपति ट्रम्प को इन्होने जो भी कहा है, वो न तो इनकी ज़ुबान की फिसलन है, और न ही ऐसा पहली बार हुआ है।

इन्होने  तो इससे भी बुरा बोला और सुनाया है। निम्नलिखित कुछ ऐसे सबूत है, जो न सिर्फ इस छद्म पत्रकार की सच्चाई उजागर करते  है, बल्कि इसके कट्टरपंथ की कड़वाहट भी सामने लाते है। अभी एक महीने पहले ही इन्होने 9 मई 2017 को ट्रम्प के खिलाफ क्या बोला था, खुद ही देख लीजिये!

रेज़ा असलान साहब न अपने जज़्बात संभाल सकते हैं , और न ही अपने गुस्से को काबू में रख सकते हैं। ये कुछ और ट्वीट हैं, जहां आप इनकी नीच प्रवृत्ति को और बारीकी से देखते हैं। एक ऐसा भी पत्रकार है, जो भद्दी गालियां देने के साथ किसी के बलात्कार करने की कामना भी करता है:- इनहोने तो डोनाल्ड ट्रम्प के बेटे तक को नहीं बख्शा:-

Screen shots of tweets, Courtesy: NewsBusters.Org and DailyWire

रेज़ा असलान वही इंसान है, जिन्होंने हिन्दुओं का चित्रण इंसानी मांस का भक्षण करने वाली नरभक्षियों से तुलना की थी, जो अब निलंबित सीएनएन चैनल के कार्यक्रम ‘बिलीवर’ पर दिखाई जाती है। उन्होने इस बेजा प्रदर्शन के खिलाफ उठ रहे हजारों आवाज़ों का मज़ाक उड़ाते हुये कहा “जातिगत भेदभाव अमेरिका के हिन्दुओं को ज़्यादा ही चिड़चिड़ा बनाती है” अघोरी साधुओं को जानबूझकर ऐसे दृश्य बनाना, जहां वे रेज़ा असलान को धमकी देते हुये दिख रहे और उन पर माल मूत्र फेंक रहे थे, सच्चाई से ज़्यादा सुनियोजित ढोंग ज़्यादा लगता है, जिसका साफ इशारा रेज़ा असलान की कट्टरपंथी सोच की तरफ है, जो हिन्दुओं का एक गलत चित्रण विश्व को पेश करना चाहते है। वाराणसी के पवित्र शहर को मृत् शहर की संज्ञा देना, और गंगा में अस्थि विसर्जन को कूड़ा कहना इनके अंदर व्याप्त विश्व के तीसरे सबसे बड़े पंथ के प्रति घृणा को दर्शाता है।

वहीं दूसरी तरफ इस्लामिक कट्टरपंथ की जमके रक्षा करते आए हैं रेज़ा असलान साहब, चाहे वह महिलाओं के गुप्तांगों पर हो रहे अत्याचार हों, या इस्लाम में व्याप्त हिंसा हो, या इस्लाम में औरतों के साथ होती बदसलूकी ही क्यूँ न हो, ऐसा कोई इस्लामिक कुरीति नहीं, जिसका बचाव रेज़ा असलान ने न किया हो।

विकिपीडिया प्रोफ़ाइल में इनके धार्मिक विचारों में एक झलक ये बताने के लिए काफी है की रेज़ा असलान आखिर किस खेत की मूली है। शिया परिवार में जन्मे, और 15 साल में एवंजेलीकल ईसाई धर्म में परिवर्तन करने वाले रेज़ा असलान दोबारा इस्लामी बन गए। उनके इस्लामिक कट्टरपंथ पर भगोड़ा व्यवहार, शब्दों की हेराफेरी उनके असली व्यक्तित्व की एक छाया है।

नीचे दिया गया यूट्यूब वीडियो रेज़ा असलान की वास्तिविकता को उजागर करता है

रेज़ा असलान अपने आप को एक बुद्धिजीवी और विश्व धर्मों के विद्वान मानते है। एक आलोचनात्मक समीक्षा के बाद इस झूठे दलील को हवा देने के लिए और झूठ नहीं बचते। हाँ, रेज़ा असलान साहब धार्मिक अध्ययन में बीए और उसी विषय में एमटीएस [मास्टर ऑफ थियोलोजिकल स्टडीज़] की डिग्री प्राप्त की है, कोई भी आचरण करने वाला हिन्दू आपको बताने के लिए काफी है की इन सब में महारत हासिल करके सनातन धर्म के आधार स्तंभों की झलक भी दिखने लायक नहीं है रअसलान साहब का ज्ञान, दूसरे धर्मों की बातें तो छोड़ ही दें! तो फिर इन्हे हिन्दुओं को कोसने का हक़ किसने दिया? शायद इनके पक्षपाती, नस्लवाद और कट्टरपंथ से परिपूर्ण सोच ने।

ये तो साफ है की रेज़ा असलान एक बुद्धिजीवी विद्वान, और धार्मिक विशेषज्ञ बिलकुल नहीं है, जैसे उनके चैनल सीएनएन ने उन्हे दिखाने की कोशिश की। इनके विचार इतने कट्टर और नस्ली हैं, की इन्हे तो किसी भी शक्तिशाली पद पर होना ही नहीं चाहिए। इस उचित दंड को लागू करने में इतने साल लग गए, ये सिर्फ सीएनएन और तथाकथित बुद्धिजीवियों और इस दुनिया में सामाजिक और राजनैतिक विचार विर्मश के कथित प्रहरियों के खोखले सिद्धांतों की पोल खोलने के लिए काफी है।

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