इन महानुभाव ने सबसे पहले शुरू की थी काँग्रेस मुक्त भारत की प्रक्रिया

एनटीआर

Image Courtesy: Deccan Chronicle

जब बात काँग्रेस के विध्वंस की हो, और ‘काँग्रेस मुक्त भारत’ के सपने को पूरा करने की हो, तो यह अवश्यंभावी की हम उस मनुष्य को याद करें, जिसने इस सुनहरे अभियान की नींव रखी थी। आज कोंग्रेसियों की तिलमिलाहट पर यह स्वर्ग में मन ही मन मुस्का रहे होंगे। इनका नाम है नंदुमुरी तारका रामा राव, जिनहे प्रेम से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों में एनटीआर के नाम से बुलाया जाता है।

आपातकाल और जेपी आंदोलन के पश्चात ये एनटीआर ही थे, जिनहोने इन्दिरा गांधी के बढ़ते कद को चकनाचूर किया था। और ये सब हुआ था ‘आरू कोटला आन्ध्रूला आत्मा गौरवम’ अर्थात ‘छह करोड़ तेलुगू वासियों के आत्मगौरव के लिए’, जिसका इस्तेमाल दो दशक बाद भी बतौर मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने किया था ‘गुजराती अस्मिता’ का मुद्दा उठा के।

एक कलाकार, जिसने कभी काँग्रेस सरकारों को प्रकृतिक आपदाओं में धन इकट्ठा करने में सहायता की थी , से लेके उस आदमी तक जिसने बोफोर्स में लिप्त राजीव गांधी के विरुद्ध एक गठबंधन खड़ा किया था, जिसमें बीजेपी, कम्यूनिस्ट आदि पार्टियां थी, इस राजनीतिक यात्रा के अपने उतार चढ़ाव थे।

इन सबकी शुरुआत हुई, आज के अघोषित कोंग्रेसी युवराज के अतिसुन्दर पिता के अतिसुन्दर घमंड से। तब काँग्रेस का शासन था आंध्र प्रदेश पे, और एनटीआर के प्रभुत्व की वजह से वे उन्हे अपने मंडली में शामिल करना चाहते थे। जब जनता पार्टी का प्रयोग निष्फल रहा था, तब काँग्रेस के केंद्र आंध्रा बना था। इन्दिरा गांधी ने मेडक पर अपनी पकड़ बनाए रखी और अरुण नेहरू को राएबरेली सौंप दिया। सच पूछें तो इन्दिरा गांधी आंध्र प्रदेश से प्रथम प्रधानमंत्री थी, जिनहोने 1980 से 1984 तक शासन किया था। क्योंकि कोई बाहरी समस्या तो थी नहीं, इसलिए अंदर ही पंजाब की समस्या को जन्म दिया इनहोने और राजनैतिक शतरंज में व्यस्त रही इन्दिरा जी। कहने को विपक्ष था ही नहीं। अपने मर्ज़ी से जब चाहा, सीएम बनाया, और जब चाहा, हटा दिया।

एक ऐसे ही खराब दिन पर, राजीव गांधी, जो तब एक नौसिखिया थे, पर काँग्रेस के आम सचिव भी थे, हैदराबाद पहुंचे। तत्कालीन आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री अंजईयाह जी ने काँग्रेस के चमचा संस्कृति का पालन करते हुये एयरपोर्ट पर उन्हे रिसीव करने पहुंचे। पर मुस्कुराने के बजाए अंग्रेज़ी में उनके ऊपर टूट पड़े राजीव साहब, और वो भी सबके सामने। लोकल मीडिया में ये खबर खूब बिकी, और इस सार्वजनिक अपमान के साथ साथ अंजईयाह जी को कुर्सी से ही हटा दिया गया। 1978 से 1982 तक , रेकॉर्ड के अनुसार, राज्य के चार मुख्यमंत्री रहे।

काँग्रेस में नेताओं की दुर्दशा देख एनटीआर – जिनहे कभी भी ओछी बातें प्रिय नहीं लगती थी, तेलुगू भाषियों के सम्मान की रक्षा करने के लिए मैदान में कूद पड़े, अपने आप, बिना किसी सहायता के। इनका सिर्फ एक बिन्दु का एजेंडा था, ‘तेलुगू भाषियों के सम्मान की रक्षा’। ये अपने आप में एक आश्चर्य है, की जो राज्य भाषा के दम पर बना था, काँग्रेस राज के तीन दशक बाद, पहली बार स्वाभिमान के लिए मोर्चा निकालते हुये दिखा। अब आप समझ सकते हैं की कैसे काँग्रेस का राज हुआ करता था राज्यों में तब। यूं ही नहीं ये पार्टी इतनी बदनाम है।

भाई मोर्चे में एनटीआर अन्ना आए हैं, तो कीचड़ तो चापलूस कांग्रेसी उछालेंगे ही। शुरू कर दिया इनहोने एनटीआर के विरुद्ध कडवे बोलों की झड़ी लगा दी, कुछ ने तो यह कह दिया की राजनीति एक्टिंग नहीं होती, जैसे राजनेताओं ने कभी एक्टिंग की ही नहीं। एनटीआर, जो किसानों के परिवार में पैदा हुआ था, और तेलुगू फिल्म जगत का सुपरस्टार बनने के लिए अथक परिश्रम किया, लड़ना जानते थे। और उनके लड़ने के तरीकों ने भारत मे चुनाव लड़ने के समीकरण ही बदल दिये।

लगातार चार सुपर हिट मूवी, जिनमे उन्होने क्रमश: एक गुस्सैल नौजवान, एक सैनिक अफसर जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध बगावत करता है, एक न्यायाधीश [ये जस्टिस चौधरी हिन्दी में भी बनी] और एक पुलिस अफसर के रूप में भूमिका निभाई। वो हज़ार मुश्किल से गुजरने को तैयार थे, इतना की उन्होने एक शेर्वोले वैन को अगले नौ महीनों के लिए अपना घर ही बना लिया, और नाम रखा ‘चैतन्य रथ’, जो भारतीय राजनीति का पहला रथ, जिसे बाद में आडवाणी ने लगभग एक दशक बाद उठाया।

अपने सुपुत्र हरीकृष्ण को ड्राईवर बना कर एनटीआर सड़कों पे निकले और राज्य के हर छोटे बड़े गाँव की यात्रा की। बाप बेटे की जोड़ी ने लगभग 40000 किलोमीटर की दूरी ऐसे तय की पूरे राज्य का चक्कर लगा कर।

N.T. Rama Rao campaigning on his ‘Chaitanya ratham.’ | Photo Credit: File Photo

इसी रथ के ऊपर से एनटीआर अपने भाषण देते थे। ये पहले राजनीतिज्ञ थे जिनहोने आम जनता के साथ खाना खाया, और जिस गाँव में रुकते, वहीं अपने तीनों वक़्त का भोजन भी करते थे [मैंने उन्हे पहली और आखरी बार पोदिली में नाश्ता करते वक़्त देखा था। हम सौभाग्यशाली थे ये दृश्य देखने के लिए, क्योंकि मेरी माँ कोर्ट में काम करती थी, और वहाँ के मैजिस्ट्रेट की धर्मपत्नी एनटीआर की बड़ी प्रशंसक थी, सो हम भी मैजिस्ट्रेट के संग हो लिए ]

क्योंकि वो एक लोकप्रिय अभिनेता थे, इसलिए उन्हे ज्ञात था की जनता का व्यवहार कब और कैसे बदलता है। उन्हे पता था की आम जनता के साथ क्या सही काम करता है। राम और कृष्ण के पौराणिक चरित्रों को निभाने की वजह से वे एक अलौकिक व्यक्ति के समान थे। खाकी पहने, इनकी साफ सुथरी त्वचा सूर्य के निरंतर तपिश से करियाई हुई शक्ल लेकर ये भाषण देते थे, उन विषयों पर जो आम आदमी की नब्ज़ पकड़ ले, उस ध्वनि में जिसमें वे ही बात कर सकतें है।

किसी गाँव वाले द्वारा चलाये गए हैंड पम्प से वे सड़क किनारे ही नहा लेते थे। इनका प्रचुर समर्थन तेलुगू समाचारपत्र ‘इनाडू’ ने किया, जो बाद में स्थानीय मीडिया का बादशाह ईटीवी बना। इस राजनैतिक अभियान को पूरे ज़ोर शोर से कवर भी किया और रामा राव की सड़क किनारे नहाते हुये फोटो भी अगले दिन अखबार के प्रथम पन्ने पर छपती। सांझ में जब यही रामा राव जी गाँव के बच्चों के साथ खेलते थे, तब वो अगले दिन के समाचार पत्र का केंद्र बिन्दु बन जाता था।

ये प्रथम व्यक्ति थे, जिनहोने काँग्रेस के वंशवाद की आलोचना की। उन्होने काँग्रेस के कार्यकर्ताओं की ग़ुलामी भरी मानसिकता पर सवाल उठाए, और उन्हे उस शक्तिशाली कांग्रेसी टंगुटुरी प्रकसम पनतुलु की याद दिलाई, जिनहोने साइमन कमिशन के विरोध में अपनी शर्ट फाड़कर अंग्रेजों को अपने सीने पर गोली चलाने के लिए ललकारा। और कांग्रेसियों के पास इसका कोई उत्तर नहीं था। इन्दिरा गांधी के चलते कोई असली नेता बचा ही कहाँ था।

जब वो यात्रा करते, तो विश्राम स्थल पर ही छोटी छोटी सभाएं करते और अपने उम्मीदवार चुनते। नौ महीने के पश्चात चुनावों में इनकी पार्टी ने 294 सीटों में से 199 जीतकर राज्य के प्रथम गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने।

[सच में मुझे हंसी आती है जब आज की मीडिया सिर्फ एक साल में शीला दीक्षित को हराने के लिए अरविंद केजरीवाल का गुणगान करती है। पहले, केजरीवाल अन्ना हज़ारे को सीढ़ी समझ चढ़े, और फिर उन्हे टरका दिया, जब खुद की पहचान इनहोने बनाई। दूसरी बात, दिल्ली आंध्र प्रदेश नहीं है। जब दिल्ली राज्य के चुनाव की बात आती है, तो दिल्ली के स्थानीय निकाय चुनाव भी इसके बराबर कठिन या सरल लगते हैं।

तीसरा, आज के लाइव टीवी और सोश्ल मीडिया ने जनता तक पहुँच काफी आसान बना दी है उन दिनों के मुक़ाबले जब एनटीआर को अगले दिन मिलने वाले अखबार पर निर्भर रहना पड़ता था। तब निस्संदेह औल इंडिया रेडियो काँग्रेस के गुणगान गाती फिरती थी। भारतीय राज्यों में चुनाव कैसे लड़े जाते हैं, इसका अपमान होगा यदि केजरीवाल की विजय को ऐतिहासिक बताया गया तो।]

एनटीआर ने आंध्र प्रदेश को पहली शिक्षित सरकार दी। खुद एक ग्रेजुएट होने के बाद भी वो कैबिनेट में सबसे कम पढे लिखे थे। पहली बार स्वास्थ्य मंत्री एक चिकित्सक थे और विधि मंत्रालय एक अधिवक्ता के पास था। उद्योग और सिंचाई का कार्य इंजीनियर संभालते थे। आज का लोकप्रिय सिंगल विंडो प्रणाली का आरंभ भी इनहोने ही किया था। आज भी सरकारी परिवहनों में सर्वश्रेस्थ परिवहन आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में चलता है। [काश ये जीवित होते, तो तेलंगाना कभी बंटता ही नहीं।]

भारत के कई लोग इस बात से अनभिज्ञ हैं की मॉनसून की तरह कभी हैदराबाद में दंगे और कत्लेआम भी आम बात थी। एनटीआर के आते ही सब बदल गया। उन्होने पुलिस को खुली छूट दे दी, जिससे उनके कार्यकाल में कभी भी सांप्रदायिक दंगे नहीं हुये। यहाँ तक की काँग्रेस और मजलिस के विधायकों को बड़े आराम से जेलों में ठूंस दिया जाता, और किसी प्रकार का राजनैतिक हस्तक्षेप उन्हे बहार नहीं निकाल सकता था। यहाँ तक की नक्सली भी उनके गुणगान गाते थे।

जब उन्हे अपने हृदय का इलाज कराने अमेरिका जाना पड़ा, तो कुटिल काँग्रेस ने उनके दायें हाथ, और कैबिनेट पे द्वितीय नंबर के मंत्री को अपने झांसे में लिया, और पार्टी को दो फाड़ करते हुये उन्हे मुख्यमंत्री बना दिया। ये काँग्रेस की हढ़बढ़ाहट का सबसे उच्च कोटी का उधारण है [मुझे हंसी आती है जब राहुल गांधी कॉंग्रेस को लोकतन्त्र से जोड़ते हैं] कोंग्रेसी राज्यपाल रामलाल ने बहुमत की न सुनकर अपने पार्टी के तलवे चाटे। जब एनटीआर वापस आए, तब उन्हे ये बात पता चली।

चैतन्य रथ फिर से सेवा में हाजिर था और पट्टियाँ लगाए लगाए उन्होने फिर सड़कों से अपनी यात्रा शुरू की। द्रमुक से लेकर भाजपा तक, सबने उनका समर्थन किया [काश, इतना कभी भाजपा के लिए किए होते] इन्दिरा गांधी को मजबूरी में रामलाल को हटाना पड़ा। पर एक ही महीने बाद उनके पापों का हिसाब लेने के लिए उनही के अंगरक्षकों ने उन्माद में आकार उनकी हत्या कर दी। प्रचंड बहुमत के साथ सहानुभूति की लहर पर राजीव गांधी लोकसभा में आए और प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। पर आड़े आई तो सिर्फ तेलुगू देसम पार्टी के 36 सांसद। ऐसा प्रथम बार हुआ, की एक क्षेत्रीय पार्टी मुख्य विपक्षीय पार्टी भी थी लोकसभा में। अभी दो साल पहले सोनिया और राहुल गांधी की बकैती का अगर जवाब दूँ, तो राजीव गांधी ने इनके नेता को विपक्ष के नेता का दर्जा भी नहीं दिया था।

मानो राजीव गांधी को चुनौती देते हुये, एनटीआर ने विधानसभा भंग कर 250 सीटों में से 202 सीटों पर दोबारा कब्जा किया।

इसी दौरान एनटीआर जी ने प्रथम राज्य स्तरीय परीक्षा का गठन किया, जिससे इंजीन्यरिंग और मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिल सके, और इसी से राज्य का शैक्षणिक स्तर भी काफी हद तक सुधरा। इसके साथ साथ इनके प्रिय परियोजना ‘तेलुगू गंगा’, जिसके माध्यम से ये सूखे आंध्र के खेतों तक कृष्ण नदी का पानी पहुंचाना चाहते थे, जिसकी वजह से इनका कद और बढ़ गया। जब चंद्रबाबू नायडू ने गोदावरि और कृष्ण के बीच संपर्क का उदघाटन किया, तो उन्होने सिर्फ एनटीआर के सुहाने सपनों को अमली जामा पहनाया।

कभी काँग्रेस के दिनों में पाकिस्तान समान नर्क दिखने वाला हैदराबाद इनके कार्यकाल में एक फलता फूलता मेट्रो शहर बनने लगा, जिससे बाद में चंद्रबाबू नायडू ने एक मेगा सिटी में परिवर्तित किया। उन्होने सभी शहरों और कस्बों में बड़े बड़े बस स्टैंड बनाने शुरू कर दिये, जिसका मुख्य उद्देश्य था सभी सरकारी दफ्तरों को एक ही परिसर में समाना, जिससे लोगों के अलग अलग ऑफिस जाने की जटिलता भी कम होती। हालांकि आज आंध्र प्रदेश और तेलंगाना बड़े बस स्टैंडो का भले ही दम भरते हो, उनके अंतिम उद्देश्य को पूरा करना अभी बाकी है।

एनटीआर की लोकप्रियता को रोकने में नाकाम राजीव गांधी ने अपना पार्टी का ब्रह्मास्त्र छोड़ा, राज्यपाल का। एनटीआर को अपने 1982-89 के कार्यकाल में चार राज्यपालों को झेलना पड़ा, जिसमें कुमुदबेन जोशी को उन्हे लगभग पाँच वर्ष झेलना पड़ा।

इनके बीच के रिश्ते आज के भारत पाकिस्तान के रिश्ते के समान है। सुश्री जोशी जी ने राजभवन को काँग्रेस का कार्यालय बना दिया और राज्य के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री के काम में खलल डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

जब मनीष तिवारी और अभिषेक मनु सिंघवी राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों की ताक़त पर लैक्चर देते हैं न, तब लगता है की बच्चे है बिचारे, इन्हे अपने पूर्वजों के पाप कैसे दिखेंगे?

जब राजीव गांधी बोफोर्स घोटाले में लिप्त थे, तो एनटीआर ने राष्ट्रीय पटल पर आकर सारे राजनैतिक दलों को काँग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए प्रेरित किया। जब राष्ट्रीय मोर्चा बना, तो वो खुद इसके अध्यक्ष थे, और वीपी सिंह इसके संयोजक। पर आखिर ये कलाकार ही थे, भगवान तो नहीं थे, सो इनके ऊटपटाँग हरकतों के साथ कॉंग्रेस के निरंतर आघात की वजह से ये आखिरकार 1989 के चुनाव में इन्हे हार का मुंह देखना पड़ा।

पर तब तक इनहोने तेलुगू भाषियों के मन में अपनी अमिट छाप छोड़ दी थी। इनका अपनी पार्टी सीट छोडना ताकि पीवी नरसिम्हा राव लड़कर लोकसभा में भारी मतों से जीत सके, काँग्रेस के उन्हे राज्यसभा में सिमटाने के मंसूबों को ठेंगा दिखाने के समान था। एक तरीके से शुरुआती दिनों में एनटीआर ने पीवीएनआर के प्रधानमंत्री पद में उनकी काफी सहायता भी की।

तो जब आज कोई काँग्रेस मुक्त भारत की बात करता है न, तो मैं निस्संदेह यह कह सकता हूँ, की एनटीआर की आत्मा स्वर्ग में मुस्कुरा रही होगी, और इसकी दुआएं भी दे रही होगी। ये देश इनका ऋणी रहेगा।

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