इसलिए पीएम मोदी इजराएल के लिए इतने खास हैं

इजराएल मोदी यात्रा

जुलाई 4 को पीएम नरेंद्र मोदी के इजराएल आगमन को यहूदी मीडिया में खूब गिनाया जा रहा है। इजराएली दैनिक ‘द मार्कर’ ने उन्हे विश्व का सबसे महत्वपूर्ण प्रधानमंत्री का दर्जा दिया है। उनके लेख का शीर्षक कहता है, ‘उठो, जागो, विश्व का सबसे महत्वपूर्ण पीएम आ रहा है”

इतना ही नहीं, स्थानीय इजराएली अखबार और समाचार पोर्टल्स ने मोदी के इस ऐतिहासिक यात्रा के लिए पलक पावड़े बिछा के रखे हैं। जेरुसलम पोस्ट ने एक अलग विभाग ही डाला है मोदी जी के स्वागत में, जहां भारत से संबन्धित लेख और कथाएँ प्रकाशित की जाती है। इजराएल में हुये विश्व योग दिवस ने इजराएली मीडिया द्वारा विशालकाय प्रसारण भी देखा।

इतनी दोस्ती तो अमेरिका और इजराएल में भी है, पर इतना तो डोनाल्ड ट्रम्प की यात्रा पर भी जगजाहिर नहीं था, जितना मोदी के आगमन पर हो रहा है। मार्कर अपने लेख में कहता है की मोदी सवा सौ करोड़ देशवासियों का नेता है, जो काफी लोकप्रिय भी है और दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते हुये अर्थव्यवस्थाओं में से एक का प्रतिनिधित्व भी करता है। ऐसे कद के मनुष्य को उनका उचित सम्मान मिलना अति आवश्यक है।

पीएम मोदी इजराएल के लिए क्यों खास है, इसकी कई वजह हो सकती है। इजराएल के प्रधानमंत्री श्री बेंजामिन नेतन्याहु ने अपने हफ्ते की कैबिनेट मीटिंग की शुरुआत में ही नरेंद्र मोदी की तारीफ़ों के पुल बांधते हुये बोले की ये यात्रा द्विपक्षीयों सम्बन्धों को बल देने में एक अहम कदम साबित होगा। उन्होने कहा, “अगले हफ्ते, मेरे मित्र और भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, इजराएल पधारेंगे। ये एक ऐतिहासिक यात्रा होगी, क्योंकि इनसे पहले, 70 साल के इतिहास में किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इजराएल की यात्रा  नहीं की, और यह इज़राईल के सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक बल का प्रमाण देता है।” इसे एक ट्वीट्स की कड़ी के जरिये इनहोने व्यक्त करने का प्रयास भी किया।

एयरपोर्ट पर खुद पीएम मोदी का स्वागत करने श्री बेंजामिन नेतान्याहु आएंगे और उन्के साथ उनकी विशेष प्रोटोकॉल टीम भी आएगी, जिसमें रब्बी [यहूदी पंडित] सहित कई इजराएली शामिल होंगे। ऐसा स्वागत तो सिर्फ पोप या यूएस राष्ट्रपति को मिलता है। तो फिर नरेंद्र मोदी को भी क्यूँ? ये महज कूटनीति से तो ज़्यादा ही है।

हालांकि भारत ने इजराएल को बतौर एक स्वतंत्र देश 1950 में ही स्वीकार लिया था, पर इन दोनों के बीच संबंध सिर्फ 1992 में मधुर हुये। इसके बावजूद भी ऊंचे स्तर की राजनीतिक यात्राएं संभव नहीं हो पायी। हालांकि पूर्व राष्ट्रपति शिमोन पेरेस और भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने इजराएल की यात्रा की तो ज़रूर है, पर बतौर राष्ट्रपति, कभी नहीं। ओस्लो रेकॉर्ड्स पर 1993 में दस्तखत होते ही पूर्व इजराएली प्रधानमंत्री इट्ज़हाक राबिन ने भारत की यात्रा की इच्छा जताई, पर तब के भारतियों ने उनकी इस याचिका को भाव नहीं दिया।

किसी भी रक्षा मंत्री ने एनडीए II की सरकार से पहले कोई खास यात्रा नहीं की थी इजराएल की, सिवाय एनडीए I  के समय में जसवंत सिंह ने। 2003 सितंबर में अटल बिहारी वाजपयी ने तत्कालीन इजराएली पीएम एरियल शेरॉन का स्वागत किया था। तब से इजराएल को भारत की एक ऐसी ही यात्रा की प्रतीक्षा है।

हालांकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और सुषमा स्वराज की यात्राओं ने मोदी की यात्रा की रूपरेखा तैयार की। उन्होने फिलिस्तीन का भी दौरा किया, ताकि सामंजस्य बना रहे। पर मोदी जी की यात्रा अलग होगी, उनके रहने की जगह से कुछ किलोमीटर दूर रामल्लाह की यात्रा वो नहीं करेंगे। यानि परंपरा को तोड़ते हुये वे पहले ऐसे प्रधानमंत्री होंगे, जिनहोने इजराएल और सिर्फ इजराएल की यात्रा की। यह यात्रा भारत का इजराएल को गुप्त प्रेमी की तरह व्यवहार करने के मिथक को भी तोड़ेगी।  

इजराएल की यूरोप में धमक थोड़ी कम हुई है। जबसे इस्लामिक साम्राज्यवाद ने इस महाद्वीप पर आक्रमण किया, जर्मनी को छोड़ कोई भी देश इजराएल के समर्थन के लिए तैयार नहीं है। जिनहोने कभी इजराएल का हाथ थामा था, वही आज वक़्त पड़ने पर इजराएल को यूएन के प्रकोप के दर से दोराहे पर साथ छोड़ रहे हैं। ऐसे में इजराएल ने कभी अपने कट्टर दुश्मन पूर्व के देशों से दोस्ती बढ़ाने की नीति ‘एक्ट ईस्ट’ नीति पर अमल करने का फैसला किया है।

भारत इजराएली हथियारों के सबसे बड़े ख़रीदारों में से एक है, जो उसे अमेरिका के बाद इजराएल की दृष्टि में दूसरा सबसे बड़ा सहयोगी साबित करता है। ऐसा मानना है की मोदी की यह यात्रा इनहि सुरक्षा के रिश्तों को और मजबूत करेगी। इजराएल की रक्षा उद्योगों ने मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान में काफी दिलचस्पी भी दिखाई है।

यूएन में एक समारोह के दौरान 2014 में मिले नेतन्याहु और मोदी तबसे फोन पर निरंतर बात करते हैं। वे दोनों ट्विट्टर पर एक दूसरे को शुभकामनाएँ भी दिया करते हैं।

यहाँ कई मसले विचार में है, जैसे:-

  1. एक 4 करोड़ डॉलर की संयुक्त कोष की स्थापना, जो भारतीय और इजराएली व्यापार में सहयोग दे।
  2. बॉलीवुड फ़िल्मकार जो इजराएल में शूटिंग करना चाहते हैं, उन्हे हर प्रकार की सहायता प्रदान करना।
  3. भारत और इजराएल का आपसी पर्यटन का बढ़ावा।
  4. एक संयुक्त भारत इजराएल सरकारी कृषि परियोजना
  5. रक्षा सौदा

ऐसा सुनने में आया है की भारतीय मूल के लगभग 4000 लोग मोदी जी के तेल अवीव में अभिभाषण को सुनने के लिए पधारेंगे। दोनों ही देश इस्लामिक आतंकवाद से लड़ने में व्यस्त है। 26/11 के हमलों के दौरान आतंकियों ने यहूदी नरीमन हाउस को भी निशाना बनाया था, जिसमें आठ इजराएली को खूंखार जिहादियों ने मौत के घाट उतार दिया, जिसमें रब्बी गव्रैल और रिवका होल्त्ज़्बेर्ग भी शामिल थे। उनके बेटे मोशे को उनकी भारतीय सेविका सांद्रा समुएल्स ने बचाया। मोदी जी इनसे भी मिलते हुये आगे बढ़ेंगे। इसका अर्थ साफ है, भारत इजराएल को उसके दुख में अब अकेला नहीं छोड़ेगा।

अब गुप्त द्वार से बाहर आ रहे भारत इजराएल संबंध, और यही समय की अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आतंकी देश फिलिस्तीन के आडंबरों से भारत पूरी तरह मुंह मोड ले। यहाँ पर समर्थन देने से भारत अपने आतंकवाद के खिलाफ अपनी मुहिम को ही कमजोर बनाएगा।

मोदी जी की यात्रा एक अहम पड़ाव अवश्य है, पर यहाँ रुकना नहीं चाहिए। भारत और इजराएल के सम्बन्धों में अपार संभावनाएँ है, जो आसमान को भेद सकती है!

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