मंदिर जाइए, पूजा कीजिये, फोटो भी खिचाइये लेकिन ऑनलाइन मत पोस्ट करिए, जेल हो सकती है

पश्चिम बंगाल में हिन्दू होने का ये सही वक़्त नहीं है। ममता बैनर्जी चाहे जितना बोल ले, इनहोने जानबूझकर अपनी आत्मा को शैतान के हाथों बेच दिया है और इस्लामी कट्टरपंथियों को अपना शासन सुपुर्द कर दिया है। कभी जिसका नाम तक बंगाल ने नहीं सुना था इतने सालों, वो सांप्रदायिक दंगे एक बार फिर इस राज्य को डराने के लिए वापस लौटा है। पिछले 5-6 सालों में एक महीना ऐसा नहीं बीता है, जब जिहादी भीड़ का हिन्दू घरों पर हमलों ने खबरें न बनाई हों।

हमारी मीडिया के धर्मनिरपेक्ष आसक्ति को ध्याम में रखा जाये, तो सिर्फ वही हिंसा दिखाई जाएगी, जो छुपाया न जा सके, जैसे मालदा की हिंसा, या धूलागढ़ या बसीरहट की हिंसा इत्यादि। और बाकी घटनाओं को बड़ी सफाई से राज्य प्रशासन, कुटिल और चाटुकार मीडिया और एक चाटुकार पुलिस फोर्स द्वारा दबा दिया जाएगा।

पर इन सबके अलावा, ममता के बंगाल में एक बीजेपी या आरएसएस समर्थक होना उससे भी खतरनाक और जोखिम से परिपूर्ण है। मोदी सरकार और भाजपा के साथ ममता के रिश्ते इतने कडवे हो चुके हैं, की हर दिन ममता एक नए गठबंधन के साथ भाजपा के विध्वंस के लिए कमर कस लेती हैं।भाजपा विरोधी गठबंधन बनाने से लेकर भाजपा के कैडर को डराने धमकाने तक, ऐसा कोई पाप नहीं है जो ममता ने भाजपा को बंगाल से हटाने के लिए न किया हो।

अब चूंकि बंगालियों ने लाल सलामियों और कांग्रेसियों को चुका हुआ बताकर सत्ता से बेदखल कर दिया है, इसलिए ममता भली भांति परिचित है की उनके शासन को सिर्फ भाजपा चुनौती दे सकता है, जिसका सितारा आजकल बेहद बुलंद है।

शायद इसीलिए भाजपा हर उस संस्था को अपनाने के लिए बाहें खोल खड़ा है, जो भाजपा से सहानुभूति रख सके और उसे उसके उचित वोटर दे सके। बिना एक गोली चलाये भाजपा टीएमसी के लिए इतना बड़ा खतरा बन चुकी है की उनके गुंडे आए दिन भाजपा के कैडरों की बेहिसाब हत्या करते आ रहे हैं, जैसे अभी हाल ही में उत्तरी दिनाजपुर में हुआ था। मार्च में, हाल ही में, ममता की कुदृष्टि आरएसएस संचालित विद्यालयों पर पड़ी, जैसे सरस्वती शिशु मंदिर। रिपोर्ट आई की उन्हें इन विद्यालयों में  धार्मिक असहिष्णुता की बू आती दिखी और उन्होंने 125 विद्यालय बंद कराने के आदेश दे दिये। निस्संदेह बंगाल के विषैले मदरसों की तरफ ममता दीदी ने झाँका तक नहीं।

अभी हाल ही में, रिपोर्ट आई हैं की कलकत्ता पुलिस ने डीयू प्रोफेसर और आरएसएस विचारक राकेश सिन्हा के विरुद्ध धार्मिक असहिष्णुता बढ़ाने और वर्ग विशेष की भावनाओं को आहत करने के इल्ज़ाम में उनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया है। मज़े की बात तो देखो, प्रोफेसर सिन्हा बसीरहट दंगों में हिंसा फैलाने के इल्ज़ाम में पुलिस के अनुसार चौथे ऐसे व्यक्ति हैं, जिनहोने बसीरहट में दंगे भड़काने की कोशिश की है। 4 आरोपियों में से 3 तो विशेष रूप से भाजपा या आरएसएस पृष्ठभूमि से वास्ता रखते हैं।

ज़रा गौर कीजिएगा की बसीरहट दंगों में इसलामियों की भीड़ ने हिन्दू घरों में आतंक मचा के रखा था, हिंदुओं की हत्या की और उनकी दुकानें और घर जलाए, न की आरएसएस वालों ने वर्ग विशेष के लोगों के साथ ऐसा किया था, जिसका विश्वास बंगाल सरकार और पुलिस आपको दिलाना चाहती है।

जो बात प्रोफेसर राकेश सिन्हा के मुद्दे को रोचक बनाती है, वो यह की उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में अपनी माँ के साथ खिंचवायी गयी तस्वीर से इनहोने बंगाल में हिंसा भड़काई है। शायद ममता के राज में मूर्ति पूजन इनके आकाओं को रास नहीं आया होगा।

दूसरे तस्वीर में प्रोफेसर राकेश सिन्हा को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पुरस्कार लेते दिखाया गया है। शायद ममता बेगम के चाटुकारों को राष्ट्रपति का एक आरएसएस विचारक को पुरुस्कार देना पसंद नहीं आया।

आखरी तस्वीर, जो इनहोने पोस्ट की थी, वो सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ थी। अब तो निस्संदेह ममता बेगम और उनके चाटुकारों की काफी सुलगी होगी ये तस्वीर देखकर। आश्चर्य की बात यह है की राकेश सिन्हा साब पिछले दो साल से बंगाल नहीं गए हैं।

मज़ाक को अलग रखते हुये, ममता बेगम को पता है की धीरे धीरे ही सही, पर भाजपा बंगाल में अपने पैर जमा रही है, और अगले विधानसभा में पूरे ज़ोरशोर से इनसे मुक़ाबला करने को तैयार है। इसलिए इनकी नैया डुबोने के लिए ये किसी भी स्तर तक गिरने को तैयार है।

राकेश सिन्हा कहते हैं, ‘बिना किसी सबूत और गवाह के मेरे खिलाफ एक एफ़आईआर दर्ज़ की गयी है कलकत्ता में। ममता बैनर्जी अपने विरोधियों का मुंह बन्द करना चाहती है और इसी मानसिकता को हमें कुचलना पड़ेगा। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता वाकई में खतरे में है और पुलिस और प्रशासन को टीएमसी की बी टीम के तौर पर इस्तेमाल कर रही है।“

ये भी गौर करने लायक बात है की भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय और रूपा गांगुली पर बंगाल सीआईडी ने बाल तस्करी का आरोप लगाया है। पर बदकिस्मती से ममता बैनर्जी के इन विध्वंसक फैसलों से इनके विरोधियों की ही लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। प्रोफेसर राकेश सिन्हा साब ने ममता के इन विध्वंसक फैसलों के विरुद्ध अंतिम सांस तक अपनी लड़ाई जारी रखने का फैसला किया है।

ममता बेगम को देख के लगता है की नीरो नारी रूप में अवतरित हुआ है। गोरखालैंड से लेकर बसीरहट तक जहां बंगाल सांप्रदायिकता की आग में जल रहा है, वहीं ये भाजपा के विध्वंस के लिए रैलियाँ करा रही हैं। शायद इनके दिमाग में सत्ता का लालच घर कर चुका है। धर्मनिरपेक्षता और उदारवाद की आड़ में ममता बेगम वो काम कर रही है जिसे देख बड़े से बड़ा आततायी या तानाशाह भी शर्मा जाये। ये विडम्बना ही है की बंगाल ने साम्यवादियों के 3 दशक के कुशासन को हटाने के लिए ममता को चुना।

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