क्या यही चाहते थे राजनाथ सिंह? वामपंथी जोकरों का प्यार और सम्मान!

राजनाथ शुचि

जब शुचि सिंह कालरा ने कश्मीरियत के बारे में ट्वीट किया, तो उन्हे राजनाथ सिंह से जो उम्मीद थी, वो अमरनाथ यात्रियों पर हुए कायराना हमले पर हम सबकी आवाज़ बनकर बोली। जिस तरह ब्रेकिंग न्यूज़ ने हमें निहत्थे यात्रियों पर बरसाए गए कहर के बारे में बताया, उसने न सिर्फ हमें अंदर तक झकझोरा, बल्कि गुस्से और बेबसी से सराबोर कर दिया, और इसी क्रोध ने शुचि को एक गाली बोलने पर विवश कर दिया।

सात लोग, जिनकी आस्था उन्हे गुजरात से एक कठिन रास्ते से बाबा बर्फानी के दर्शन करने को खींच लायी, उनको कश्मीर घाटी में जिहादियों ने गोलियों से भून दिया। उसी घाटी में इन्हे भूना गया, जिसके पवित्र अमरनाथ गुफा में वर्षों से भगवान शिव अपने असंख्य भक्तों को दर्शन देते आ रहे हैं। और ऐसे संकट की घड़ी में, करोड़ों भारतीयों के इस घटना से लगे ज़ख़्मों पर मरहम लगाने के बजाए कश्मीरियत के सड़े गले राग को अलापना शुरू कर दिया। अब आप यह पूछेंगे की आखिर यह कश्मीरियत है किस बला का नाम, जिसने एक शुचि कालरा जैसे शांत और सौम्य महिला को अपना आपा खोने पर मजबूर किया और राजनाथ सिंह जैसे राजनेता को उनसे वार्तालाप करने के लिए विवश कर दिया।

अगर आपको मुझसे पूछना हो, तो एक कश्मीरी होने के नाते मैं शुचि से ज़्यादा तीव्र और कडवे शब्दों का उपयोग करती, जिससे इस कश्मीरियत के आडंबर का पर्दाफाश होता, जिसे समय समय पर कश्मीर घाटी की कड़वी सच्चाई को छुपाने का प्रयास किया जाता है। इस बैसाखी के सहारे राजनाथ सिंह अपने पार्टी के मूल सिद्धांतों के ही विरुद्ध चले गए। क्या एक भी मिनट के लिए इनहोने सोचा की इनके कश्मीरियत के राग से देशवासियों पर क्या गुज़रेगी? क्या एक बार भी इनहोने सोचा की ऐसे कायराना हमले पर इनके बेतुके बोल पर जनता क्या प्रतिक्रिया देगी?

इतना ही नहीं, जले पर नमक छिड़कते हुये यह महाशय तो उन कश्मीरियों की रक्षा में शुचि कालरा से भिड़ गए, जिनपर त्वरित कारवाई की सुश्री कालरा ने मांग की थी। क्या सोच रहे थे जब इन्हे लगा की अमरनाथ यात्रा पे हुई हत्याओं के बदले त्वरित कारवाई की मांग करना सारे कश्मीरियों को आतंकवादी समझने के समान है। यात्रियों पर हमला आतंकवादियों ने किया, और उनकी धुलाई करने से घाटी के आम कश्मीरियों का कोई वास्ता नहीं है। विशेषकर उमर फय्याज और डीएसपी मोहम्मद आयुब पंडित की हत्याओं के बाद तो कई लोग इनपर त्वरित कारवाई से काफी सुकून महसूस करेंगे।

गृह मंत्री द्वारा इस अनावश्यक रक्षण का परिणाम ये निकला की विषैले प्रवृत्ति के लोगों को बहती गंगा में हाथ धोने का मौका मिल गया और इस रक्षण को अपने लिए संकेत समझते हुये इस महिला को टिवीटर से ज़बरदस्ती हटाने की मुहिम शुरू कर दी, शुचि की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता गयी तेल लेने। अपने आप को उदारवादी कहने वालों ने सिर्फ मिस कालरा को जमके परेशान किया, अपितु उनके नियोक्ता को उसकी नौकरी खत्म करने के लिए बाध्य भी किया, और साथ ही साथ इनके व्यतिगत डिटेल्स को सार्वजनिक भी किया, जिससे इन्हे घृणा का पात्र बनाया जा सके।

अब सवाल यह की उसी दिन गृहमंत्री ने यह ट्वीट क्यों प्रसारित किया जिस दिन टिवीटर गृहमंत्री/कश्मीर/कारवाई के मसलों से सराबोर था? क्या यह इन्हे कड़ी निंदा से आगे बढ्ने की ट्विट्टर उपभोक्ताओं के निरंतर आवाहनों के प्रति एक त्वरित, पर बचकाना रवैय्या था? या ये अपने सख्त कश्मीर नीति से विमुख होने की एक सोची समझी चाल थी? क्या यह खफा अलगाववादियों को मनाने का एक प्रयास था? क्योंकि ऐसे कश्मीरियत की बात करना, जिसने कई कश्मीरी पंडितों को अपने ही घरों से भागने पर मजबूर किया, जिसने कश्मीरी संस्कृति के सबसे अहम हिस्से ही इतिहास से हटाने की जुर्रत की, ऐसे वक़्त में निस्संदेह अनुचित था।  और जिस निंदा की यह तारीफ कर रहे थे, उसके बारे में जितना कम कहा जाये, उतना ही अच्छा। जब एक दिन लोग इन आतंकियों की निंदा करे, और अगले दो दिन उनही का जनाज़ा गाजे बाजे के साथ उठाए, तो साफ दोगलेपन की बू आती है।

अगर राणा अय्यूब और निधि राज़दान, उमर अब्दुल्लाह जैसे महानुभावों से प्रशंसा को एक उपलब्धि के तौर पर गिना जा सकता है, तो शुचि कालरा को दी गयी प्रतिक्रिया से राजनाथ सिंह ने उसे निस्संदेह हासिल किया है। पर यह प्रशंसा कब तक ठहरती है, ये एक अलग ही प्रश्न है।

इसी वक़्त कई अखबार और न्यूज़ चैनल एक आम औरत को बदनाम करने में अपने आप को श्रेष्ठ समझ रहे हैं, जिसने सिर्फ ट्विट्टर पर अपने अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का उपयोग करने का ‘दुस्साहस’ किया था।

यह एक घटना हमारे पत्रकारों की अपने व्यवसाय के प्रति प्रतिबद्धता के बारे में बहुत बताती है, जैसे कब और क्या कोई खबर इनके एजेंडे के लिए उपरयुक्त है, और किस प्रकार के प्रतिक्रिया में अपने एजेंडा को ये ठूंस सकते है, चाहे वो एक उत्तेजित नागरिक और उनके देश के गृहमंत्री के बीच एक निजी बात ही क्यों न हो!

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