दो तरफा युद्ध के लिए आवश्यक 42 सक्रिय स्क्वाड्रन से घटकर हमारी भारतीय वायुसेना के पास अब सिर्फ 33 सक्रिय स्क्वाड्रन है। श्री एंटनी जी, इस धीमी गति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। रक्षा मंत्रालय इस देश के सबसे अहम मंत्रालयों में से एक है, और 24 अक्टूबर 2006 को प्रणब मुखर्जी के इस्तीफे के बाद से ही इस मंत्रालय और देश के रक्षा प्रणाली का बुरा वक़्त शुरू हो गया था। भारतीय रक्षा प्रणाली का यह बुरा दौर करीब 7 लंबे वर्षों और 5 महीनों तक चला, जब तक पहले मनोहर पर्रीकर और फिर अरुण जेटली ने कमान नहीं संभाली। तब से इस आग को बुझाने का काम चल रहा है।
ज़रूरी कार्य कुछ इस प्रकार है:-
- एलसीए तेजस को एचएफ़ 24 मरुत की हालत पर नहीं आने देना
- राफेल [एमएमआरसीए], जो मूल्य वृद्धि के कारण पहुँच से बाहर हो चुकी थी
- एफ़जीएफ़ए सौदे को दोबारा सक्रिय करना
- वर्तमान स्क्वाड्रन्स की सेवा क्षमता बढ़ाना
अभी हाल में आईएएफ़ के पास 33 सक्रिय स्क्वाड्रन है, जो सोवियत काल के मिग 21 और मिग 27 के सेवानिर्वृत्त होने के साथ ही 23 तक गिर जाएंगी, जो अपने आप में चिंताजनक है। पर इस अंधेरी रात में उम्मीद की एक किरण की तरह उभरकर निकली है ‘तेजस’। ये अलग बात है की इसे बनने में 33 साल लग गए, पर आखिरकार आईएएफ़ की ‘फ्लाइंग डैगर 45’ में जुड़ने में यह सफल रही है, और इसके सामने अब सिर्फ इसके उत्पादन दर को बढ़ाने की चुनौती थी। पर अब एचएएल से एक और अच्छी खबर आई है : 2019 तक उनकी फैसिलिटी 16 हवाई विमानों के दर से विमान तैयार करने में सफल रहेगी।
एक अंग्रेज़ी अखबार से बात करते वक़्त एचएएल डायरेक्टर टी सुवर्णा राजू ने ये सुनिश्चित किया है की इसी साल 8 तेजस फाइटर्स मैदान में उतारने के लिए तैयार खड़े हैं। और तो और, 1231 करोड़ रुपये के अतिरिक्त निवेश के साथ, जिसमें एसम्ब्ली लाइन की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के भी पुख्ता इंतेजाम मौजूद हैं, तेजस लाइन 2018-19 सत्र आते आते 10 फाइटर्स बनाने योग्य तैयार हो जाएगी, और 2019-20 आते आते पूरे 16 तेजस मार्क 1ए बनाने योग्य बन जाएगी।
पिछले साल सितंबर में केंद्र सरकार ने भारत निर्मित तेजस मार्क 1ए के सात स्क्वाड्रन्स को भारतीय वायुसेना में भर्ती करने का निर्णय लिया, जिससे फाइटर्स की कमी को पाटा जा सके। पहले 20 तेजस फाइटर्स आईओसी के मानकों के अनुसार बनाए जाएंगे, और बाकी के 20 एफ़ओसी के मानकों, और फिर इसके बाद मार्क 1 ए के विमानों पर काम शुरू किया जाएगा। मार्क 1 ए को न आईओसी और न एफ़ओसी के मानकों की आवश्यकता है और मार्क 1 पर इसे यह अपग्रेड्स प्राप्त होंगे :-
- इजराएल के ईएलटीए कॉर्प. के साथ विकसित एईएसए रडार
- प्रारम्भिक वज़न 6500 किलो से 1000 किलो तक घटाया गया विमान का वज़न
- इसके कुछ एलआरयू को पुनर्विकसित कर और विमान के डैड वेट को सही वितरण देकर उसे रखरखाव के अनुकूल बनाना
- फ्लाइट के दौरान ईंधन भरने की क्षमता
- एक एकीकृत एल्क्ट्रो ओप्टिक एलेक्ट्रोनिक वारफेयर सेन्सर
क्योंकि तेजस का निर्माण उम्रदराज़ हो रहे मिग 21 को बदलने के उद्देश्य से हुआ था, और चूंकि कावेरी इंजन जिसका उपयोग पहले तेजस विमानों में होना था वो अभी तक तैयार नहीं है इसलिए तेजस में कम शक्ति वाले GE 404 इंजन का इस्तेमाल होगा. साथ ही साथ २००१ से लेकर अब तक कई नवीनतम तकनीक आ चुके हैं, इसलिए भारतीय वायुसेना अत्याधुनिक तेजस विमान चाहती थी.
श्री राजू ने कहा की निजी कंपनियों के हाथ बागडोर देने से काम में तेज़ी आई है, एचएएल ने पाँच ‘प्रथम टीएर’ आपूर्तकों का सृजन किया है, जो तेजस का एक एक हिस्सा बनाने में अपना पूरा पूरा सहयोग देंगे!
- फ्रंट फ्यूज़लेज की आपूर्ति डाइनामैटिक टेक्नोलौजी लिमिटेड, बेंगलुरु करेगी
- सेंटर फ्यूज़लेज की आपूर्ति वीईएम टेकनोंलौजी, हैदराबाद
- रियर फ्यूज़लेज की आपूर्ति अल्फा टोकोल बेंगलुरु करेगी
- विंग्स की आपूर्ति लार्सेन एंड टौब्रो, कोयंबटूर करेगी और
- टेल फिन और रडार की आपूर्ति नेशनल एरोस्पेस लैबोरेटरी और टाटा एडवांस्ड माटेरियल्स लिमिटेड करेगी
इन प्रथम टीएर आपूर्तकों के साथ कुछ ऐसे निजी फ़र्म से भी आवश्यक समग्रियों की आपूर्ति का पुख्ता इंतेजाम करने में एचएएल पूरे ज़ोर शोर से लगी हुई है, जो आगे चलकर एरोस्पेस क्षेत्र में एक अदद नाम कमा सकते हैं:-
- लक्ष्मी मशीन वर्क्स, कोयंबटूर से अविओनिक्स रैक्स और एयर इंटेक्स
- अंफेनोल, पुणे से इलैक्ट्रिकल पैनेल्स
- ऐकुस, बेलगौम से स्लेट्स और एलेवोंस
- मैसूर से पाइपलाइंस और
- श्री कोटेस्वर कैम सिस्टम, सिकंदराबाद से प्रेसीशन मैकानिकल एसम्ब्लीज़
श्री राजू ने ये भी बताया, ‘पहले हमें शुरू से अंत तक तेजस विमान बनाने में 19 महीने लगते थे। अब हमें 11 महीने लगते हैं, और जल्दी ही सितंबर आते आते तेजस बनाने में हमें सिर्फ 9 महीने लगेंगे।”
इस उत्पादन स्तर से एचएएल सभी 123 विमान 2024-25 तक तैयार कर देगा। 2022-23 तक मिग 21 बाइसोन के सेवा से निर्वृत्ति होते ही कम से कम 4 तेजस स्क्वाड्रन आईएएफ़ में भर्ती हो जाएंगे। आईएएफ़ 272 सूखोई मार्क 1 विमानों का संचालन करता है, जो मिग 29 और मिराज जितने ही भारी हैं, और मीडियम वेट कैटेगरी की श्रेणी में आते हैं। लाइट वेट कैटेगरी इसलिए अहम है किसी भी वायुसेना के लिए, क्योंकि वो परिचालन लागत को काफी हद तक कम कर देती है।
और सोवियत काल के मिग 21 विमानों, विशेषकर इंटरसेप्टर और फाइटर विमानों की भूमिकाओं के लिए बदलने के लिए आपको एक अत्यंत योग्य विमान की आवश्यकता थी। निस्संदेह तेजस इस काम के लिए ही बनी थी, पर उसे उतारने में अनावश्यक देरी से कई नुकसान हो रहे थे, जिनमें से कुछ इस प्रकार थे:-
- आईएएफ़ का फाइटर स्क्वाड्रन इस वक्त अपने न्यूनतम स्तर पर है
- आईएएफ़ को अब एक और सिंगल एंजन फाइटर की आवश्यकता है, जो या तो एसएएबी गृपेन ई होगी या फिर एफ़ 16 ब्लॉक 72 होंगी, जिससे एचएएल तेजस के अपने हिस्से में नुकसान निस्संदेह होगा।
36 राफेल जेट विमान और और तेजस मार्क 1 ए के संगठित उत्पादन के साथ आईएएफ़ को अब थोड़ी राहत की सांस मिली है। मिस्टर एंटनी के खुद की छवि बनाने के लिए जो कीमत देश को और देश की रक्षा प्रणाली को चुकानी पड़ी है, उसका आखिरकार प्रायश्चित हो चुका है। आईएएफ़ ने साथ ही साथ गैप सोल्यूशंस को पाटने के लिए ज़्यादा महंगी सुखोई एमके30 की खरीद में भी इजाफा किया है।