बीते 26 जुलाई जिसे हम ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप से मनाते हैं| हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की अनुशंसा पर आधिकारिक रूप से पहली बार इस विजय दिवस का आयोजन किया गया था| आयोजन में विश्वविद्यालय के शिक्षकगणों के साथ भारतीय सेना के रिटायर्ड अधिकारी भी शामिल हुए थे, जिनकी अध्यक्षता में यह गौरवान्वित कर देने वाला समारोह समाप्त हुआ|
इस आधिकारिक कार्यक्रम के कुछ समय पश्चात ही सांयकाल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का विश्वविद्यालय के दक्षिणी परिसर में, शहीदों को नमन करने के लिए एक पूर्व निर्धारित कार्यक्रम भी था| जिसमे संगठन के सदस्यों ने ‘अमर जवान ज्योति’ जैसा दिखने वाला एक अस्थायी स्मारक प्रतिस्थापित किया गया था|
इस पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में लगभग 100 से ज्यादा छात्र – छात्राओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी और देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीदों को नमन किया| परन्तु इस कार्यक्रम की समाप्ति के अगले दिन जो हुआ वो ह्रदय झकझोर देने वाला है|
कार्यक्रम समाप्ति के कुछ घंटों पश्चात ही जब सारे छात्र छात्राए कार्यक्रम स्थल – साउथ कैंपस जंक्शन से अपने हॉस्टल को लौट चुके थे, अगले दिन 27 जुलाई, शाम में विश्वविद्यालय के सुरक्षा गार्ड्स ने आकर सम्मानित स्मारक को अपने स्थान से हटाकर, बेहद ही अपमानित तरीके से जमीन पर गिरा दिया| इस घटना की जानकारी होते ही छात्र छात्राओं का गुस्सा भड़क गया और जंक्शन पर भीड़ आ धमकी| अनियंत्रित हो रही स्थिति में प्रशासन ने लोकल पुलिस को बुला लिया जिसके बाद हालत और गंभीर हो गयी| छात्रों और सुरक्षा बलों में धक्का मुक्की शुरू हो गयी और नारे बुलंद होने लगे| जिसके बाद इस अपमान का बदला लेने के लये अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के नेतृत्व ने तुरंत इस अस्थायी स्मारक को स्थायी करने का फैसला लिया और स्मारक बनाने के लिए स्वयं ही खुदाई और सीमेंट से जुड़े कार्य शुरू कर दिए| सुरक्षा गार्ड्स और पुलिस बल से लगभग 8 से 10 घंटे के संघर्ष के बाद एक स्थायी स्मारक का कार्य पूर्ण हो चुका था| जिसके साथ ही जंक्शन का नया नाम अब ‘कारगिल चौक’ हो चुका था|
इस सारे घटनाक्रम पर किसका क्या रोल रहा, आइये जानते है –
1. विश्वविद्यालय प्रशासन:- जिन सुरक्षा गार्ड्स ने इस स्मारक को हटाने की कोशिश की थी उनके अनुसार उन्हें उच्च अधिकारियों से इस स्मारक को तुरंत हटाने के आदेश दिए थे| विश्वविद्यालय द्वारा प्रेस रिलीज में भी कहा गया है की “विश्वविद्यालय किसी भी छात्र संगठन/कर्मचारी को कैंपस के अन्दर किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य करने की अनुमति नहीं देता है| विश्वविद्यालय के नियमों के मुताबिक, कोई भी संगठन बिना किसी पूर्वानुमति के, किसी भी प्रकार का स्थायी/अस्थायी ढांचा प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है और ना ही विश्वविद्यालय की भौतिक संरचना में कोई बदलाव कर सकता है|”
वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं यह वही विश्वविद्यालय है जो उत्तरी परिसर में स्थापित आतंकवादी समर्थक ‘रोहित वेमुला’ के स्मारक को आज तक हाथ तक नहीं लगा पाया है| यह वही विश्वविद्यालय है जो रोहित आन्दोलन के समय छात्र- छात्राओं के हितो से जुडी शैक्षणिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए रत्ती मात्र का योगदान नहीं दे पाया था|
2. छात्रसंघ:- विश्वविद्यालय के छात्रसंघ पर अभी एसएफआई काबिज है| कारगिल विजय दिवस के आधिकारिक आयोजन पर छात्रसंघ सदस्यों की जिम्मेदारी बनती है की वे ऐसे आयोजनों में शामिल हों परन्तु उनके खून में घुली देशद्रोहिता, देश के सम्मान को बेचने वाली विचारधारा और हमेशा शहीदों को अपमानित करते रहने की मानसिकता उन्हें ऐसे सम्मेलनों में शामिल होने की अनुमति नहीं देती है| इनका रोल एक मूकदर्शक मात्र का है जबकि एसएफआई के एक महिला सदस्य का बयान है कि ‘विद्यार्थी परिषद् उस जंक्शन का नाम बदलकर शहीदों का उपहास कर रहा है, जिसका नाम हमारे द्वारा ‘भगत सिंह स्क्वायर’ रखा गया है|’
हास्यास्पद है कि जो लोग शहीदों के सम्मान समारोहों में शामिल तक नहीं होते है और देश के टुकड़े करने वाले नारे देने वालों के बचाव में आ जाते हैं वो सिर्फ नाम बदलने पर ऐसा बयान दे रहे हैं|
3. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्:- इस सारे क्रियाकलाप में सबसे ज्यादा प्रतिक्रियाशील संगठन यही रहा है| शोधार्थी एवं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय कार्यकरिणी सदस्य ‘करन पलसानिया’ का कहना है कि विश्वविद्यालय के उन सभी लोगों के खिलाफ यह संघर्ष जारी रहेगा जिन्होंने शहीदों को अपमानित करने की तुच्छ मानसिकता बना रखी है और वे सोचते है कि ऐसी मानसिकताओं के खिलाफ कोई मोर्चा नहीं लेगा| यह विश्वविद्यालय राष्ट्रविरोधियों का अड्डा बनता जा रहा है जिसके खिलाफ हमारे परिषद् सदस्यों की जंग जारी रहेगी|
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने शीघ्र ही विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू करने की घोषणा की है जिसमें उन्होंने मांग रखी है कि प्रशासन को इस पूरे शर्मनाक घटनाक्रम पर छात्र समुदाय की भावना आहत करने पर माफी मांगनी चाहिए, कैंपस में मंत्रालय द्वारा आदेशित ‘राष्ट्रीय ध्वज’ फहराना चाहिए एवं विश्वविद्यालय में शहीदों के सम्मान में एक ‘Wall of Martyrs’ का निर्माण होना चाहिए|
इस बहुप्रतिष्ठित विश्वविद्यालय का पूर्व छात्र होने की वजह से इस पूरे घटनाक्रम ने मुझे गंभीर रूप से आहत किया है| वैसे अक्सर यहाँ के कुछ छात्र राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में सक्रिय रहते है परन्तु विश्वविद्यालय प्रशासन का इस प्रकार का निर्लज्ज कदम यह दर्शाता है की आधिकारिक ‘कारगिल विजय दिवस’ का आयोजन ढोंग मात्र था यह सिर्फ इसलिए मनाया गया क्यूंकि आयोजन मंत्रालय द्वारा आदेशित था|