ऐसे फूटा ममता बनर्जी का सेक्यूलर बम उन्हीं के मुंह पर, भाजपा को बिना मांगे सब कुछ मिल गया

हमने स्कूल के दिनों में एक मुहावरा सीखा था “एक बुरा बढ़ई अपने औजारों पर ही दोष मढ़ता है।” मुहावरे का अर्थ एकदम सरल है कि एक अक्षम व्यक्ति अपनी गलती को स्वीकारने के बजाय बाहरी कारकों, साधनों और प्रतिक्रियाओं को अपनी अक्षमता का दोष देता है। भारतीय राजनीति में भी एक ऐसी शख्स है जो इस मुहावरे पर बिल्कुल फिट बैठती है। एक ऐसी शख्स जिसका रवैया बिल्कुल उस व्यक्ति की बड़ी बहन की तरह है जिसके हिसाब से हर कोई उसके खिलाफ षड़यंत्र कर रहा हो। हाँ आप उस राजनीतिक शख्स का अनुमान लगाने में सहीं हैं, लेकिन यदि आप अभी भी उलझन में हैं तो मैं आपको बताता हूँ, वो कोई और नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी है।

ममता बनर्जी उन नेताओं की पहली पंक्ति में शामिल हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए फ़ासीवादी, तानाशाह जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था। अपने पुरुष समकक्ष की तरह वो हर मामले के लिए मोदी और आरएसएस को दोष देने के लिए तैयार रहती हैं, चाहे वो राज्य के गवर्नर द्वारा की गयी कोई आलोचना हो या मोहर्रम के दौरान दुर्गा विसर्जन रूकवाने के लिए कोर्ट से मिली फटकार हो। उनके खिलाफ कुछ भी हो, उन्हें हर चीज के पीछे भाजपा और मोदी ही दिखते हैं।

एक महिला जो मोदी को तानाशाह कहती है वह खुद दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर अस्थायी प्रतिबन्ध लगाकर एक महिला तुगलक की तरह बर्ताव कर रही है। यही का उन्होंने 2015 और 2016 में भी किया था। हालांकि जब तीन हाऊसिंग सोसाइटी के कुछ लोगो ने 2016 में इस आदेश के खिलाफ कोर्ट में याचिका लगाई थी जिसमें न्यायधीश दीपशंकर दत्त ने इस प्रतिबंध से छूट दिलवाया और विजयादशमी के दिन भी रात्रि 8:30 बजे तक मूर्तियां विसर्जित करने की अनुमति दी। ममता बनर्जी द्वारा लगाए गए इस प्रतिबंध का कारण था, अगले दिन मोहर्रम होना। इस वर्ष भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने 1 अक्टूबर को मुहर्रम के कारण ऐसा ही प्रतिबंध लगाया था। हालांकि इस बार भी तीन हाउसिंग सोसाइटी ने जनहित याचिका दायर की और माननीय कोलकाता हाई कोर्ट ने फिर से इसमें कड़ी कार्यवाही किया। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद राज्य सरकार ने 30 सितम्बर सायं 6 बजे तक होने वाले विसर्जन को बढ़ाकर 10 बजे तक किया। तत्पश्चात कार्यकारी मुख्य न्यायधीश राकेश तिवारी और न्यायमूर्ति हरीश टंडन के कोलकाता हाइकोर्ट के बेंच ने सरकार के निर्देश को रद्द कर दिया और मूर्ति विसर्जन के समय को बढ़ाकर 1 अक्टूबर (मुहर्रम वाले दिन) 12 बजे तक कर दिया। हाई कोर्ट ने तुष्टिकरण की राजनीति पर सरकार को कड़ा फटकार भी लगाया। कोर्ट ने कहा ” आप बिना किसी आधार के अपनी शक्तियों का उग्र प्रयोग कर रहें हैं, आप मात्र एक राज्य सरकार हैं तो क्या आप स्वैच्छिक आदेश पारित कर सकते हैं?” हाइकोर्ट ने सरकार को मूर्ति विसर्जन में रोक लगाकर अपनी अक्षमता को ढंकने की बात भी कही। हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस और पश्चिम बंगाल पुलिस की तुलना करते हुए कहा कि क्यों राज्य पुलिस एक समय में दोनों समुदायों के धार्मिक जलसों की व्यवस्था नहीं कर सकती।

हाईकोर्ट के फैसले से गुस्से में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सबसे पहले यह कहा कि – “हम सभी तरीकों से सावधानी बरतेंगे लेकिन कोई हिंसा हो जाए तो मुझे जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा। मैं हिंसा के लिए जिम्मेदार नहीं होउंगी, मैं केवल शांति के लिए जिम्मेदार हूँ।” इसके बाद आगे उन्होंने कहा “जब लोग बंगाल की संस्कृति को समझ नहीं पाते हैं तो मैं समझ नहीं पा रही कि वो बंगाल पर ज्ञान क्यों देते हैं। केंद्र से लोग प्रतिशोध को तुले हुए हैं। क्या उन्हें शांति से रहते हुए लोग बेचैन करते हैं ? चिंगारी में आग लगाना आसान है उसे डुबाकर रखना मुश्किल।” ममता बनर्जी ने खुले आम हाइकोर्ट की निंदा करते हुए यह कहा कि “कोई मेरे गले को तो छू सकता है, लेकिन मुझे क्या करना है यह नहीं बता सकता।”

कल्पना कीजिए कि एक राज्य की मुख्यमंत्री कहती है कि हिंसा टूट जायेगी तो वो जिम्मेदारी नहीं लेगी। कल्पना कीजिए एक ऐसी मुख्यमंत्री जो अपने तुष्टिकरण के राजनीति के नतीजे का दोष अपने प्रतिद्वंद्वी पार्टी पर लगा रही है। दुर्गा मूर्ति विसर्जन को लेकर अफ़वाह फ़ैलाने का भी आरोप बीजेपी पर लगाया है। हिन्दू त्यौहारों में राजनीति करने को लेकर वह केंद्र सरकार पर आरोप लगा रहीं हैं वो भी तब जब खुद हर साल तुगलकी फरमान जारी करती हैं।

वहीं दूसरी ओर भाजपा और संघ ने ममता बनर्जी के मनमाने फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। राज्य के भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने हाइकोर्ट की इसके लिए प्रशंसा की है। राज्य भाजपा अध्यक्ष ने कहा – “बंगाल के हिंदुओं को दुर्गा पूजा के लिए न्यायपालिका पर निर्भर होना चाहिए। हमें यह गंभीर संदेह है कि यह ममता बनर्जी की सरकार पुरे बंगाल की है या मात्र एक समुदाय की जो राज्य में 27 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। दक्षिण बंगाल के आरएसएस के महासचिव जिंशु बसु ने कहा – “यह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य के लोगो को न्यायपालिका के द्वार पर दुर्गा पूजा मनाने के लिए दस्तक देना पड़ रहा है। हिंदुओं को अब तृणमूल कांग्रेस में कोई विश्वास नहीं है। सत्तारूढ़ दल केवल एक समुदाय के तुष्टिकरण में लिए हिंदुओं को अपने मूल अधिकारों को वंचित कर रहा है।”

सरकार का उद्देश्य सांप्रदायिक नफरत और शत्रुता के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम का दुरुपयोग करना था जिसे हाईकोर्ट ने बड़ी ही समझदारी से नाकाम कर दिया। हाईकोर्ट का निर्देश और उसका अंतिम परिणाम भाजपा के पक्ष में आया जो मुद्दा पहले दिन से ही मुख्य रुप से सक्रिय था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ हाईकोर्ट की यह कार्यवाही ने भाजपा के रूप को मजबूत किया है और इस फैसले को भाजपा के बड़े नैतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है।

वर्तमान में एक लाख शिया मुस्लिम पश्चिम बंगाल में रहते हैं। यह स्थिति से भी स्पष्ट है कि ताजिया जुलूस के लिए अनुमति के लिए केवल दो मुस्लिम संगठनों ने अपील की थी। एक लक्ष्य मुस्लिमों को खुश करने के लिए ममता बनर्जी ने हिंदू समुदाय को परेशान किया जिनकी पश्चिम बंगाल में कुल आबादी 70% से अधिक है।

इस मुद्दे ने भाजपा को एक नई जीवनरेखा दी है, इनकी मुख्य शक्ति हिंदुत्व है। ममता बनर्जी को पता था कि हाईकोर्ट पिछली बार की तुलना में अधिक बड़े रुख के साथ इस निर्देश को खत्म कर सकता है, जो वास्तव में हुआ भी।

दरअसल ममता बनर्जी का मकसद एक संदेश देना था कि देखो यहां तक कि मुझे पता था कि मेरे आदेश को हाईकोर्ट द्वारा थप्पड़ भी मारा जा सकता है फिर भी मैंने तुम्हें बचाने की कोशिश की, और देखिए 30% मतदाता खुश। अहंकार से लड़ रहे ममता बनर्जी के यह कदम वास्तव में हिंदुओं को महसूस कराते हुए भाजपा को बढ़ावा दे रहे हैं कि राज्य सरकार उनके साथ भेदभाव कर रही है। 70% आबादी को नाराज करके 100000 अंकों को खुश करने के लिए यह कभी भी अच्छा आंकड़ा नहीं था।

भाजपा ने अभी हाल ही में अपनी लोकप्रियता में वृद्धि देखी है, इसके लिए ममता बनर्जी की तुष्टिकरण वाली राजनीति को धन्यवाद कहना होगा। हाल ही के नागरिक चुनावों और उप चुनावों में भाजपा एक बड़ी प्रतिद्वंदी पार्टी के रूप में उभरी है और प्राथमिक विपक्षी दल के रूप में अपनी पहचान बनाई है। इससे पहले भाजपा RSS शिविर के रामनवमी उत्सव में भारी सफलता मिली थी जब लोग बड़ी संख्या में रैलियों में एकत्र हुए थे। यह पश्चिम बंगाल के इतिहास में एक अनजान था जहां रामनवमी कभी एक बड़ा त्यौहार बन ही नही सका। विश्व हिंदू परिषद ने इस वर्ष मुहर्रम पर शस्त्र पूजन करने का भी फैसला किया है और इस घोषणा को हिंदू समुदाय से कई सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है।

लेख को  समाप्त करने से पहले मैं ममता बनर्जी के नए गेम प्लान के बारे में बताता हूं जो दिखाता है कि यह महिला कितनी चतुर है।  हालांकि हाईकोर्ट में मुहर्रम सहित सभी दिनों में मूर्ति विसर्जन की अनुमति दी थी लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने चालाकी का इस्तेमाल यहां पर भी किया है। पहले यह कहा गया कि राज्य सरकार उच्चतम न्यायालय के पास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करेगी लेकिन राज्य सरकार ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता और वकील कपिल सिब्बल से परामर्श किया और सर्वोच्च न्यायालय से संपर्क न करने का फैसला किया। इसके बजाय ममता बनर्जी ने अपनी तानाशाही को पूरा करने के लिए एक नया कार्ड खेला। हाई कोर्ट ने कहा था यदि विसर्जन अनुमेय में नहीं पाया जाता है तो अन्य निर्देश प्रभावी नहीं होंगे। इसका अर्थ यह है कि मूर्ति विसर्जन स्वीकार्य है या नहीं है इसका फैसला राज्य सरकार कर सकती है। देसी पश्चिम बंगाल सरकार ने पूजा समिति के आयोजकों को अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन के लिए पुलिस से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया है। सरकार पूजा समितियों को मूर्ति विसर्जन करने की अनुमति से इनकार के लिए कोई भी बहाना बना सकती है। जाहिर सी बात है ममता बनर्जी अभी भी जानती है कि हिंदुओं के धार्मिक अधिकारों से कैसे खिलवाड़ करना है।

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