बीजेपी ऐसे कर रही है गुजरात में कांग्रेस के हौसले पस्त

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गुजरात चुनाव की सुगबुगाहट के चलते गुजरात की राजनीति रोज नयी करवट ले रही है। वार-पलटवार के बीच सत्तापक्ष और विपक्ष रोज नए दांव पेंच आजमा रहे हैं। जहाँ कांग्रेस अपने 22 वर्षों के वनवास को खत्म करने के लिए तरकश के सभी तीर आजमाने के बाद एक बार फिर जातिगत राजनीति पर अपना दांव लगाने पर मजबूर है वहीं बीजेपी और अमित शाह ने गुजरात चुनाव से महीनो पहले से अपनी जमीन मजबूत कर रखी है। अब जब कांग्रेस पाटीदार आन्दोलन के चेहरे हार्दिक पटेल के सहारे गुजरात की गद्दी साधने का प्रयास करती नजर आ रही है तो बीजेपी पुरे आत्मविश्वास के साथ 150 सीटें जीतने का दावा कर रही रही है। इस बीच बीजेपी हार्दिक के दो साथी वरुण और रेशमा को अपने पाले में कर इसे मास्टर स्ट्रोक बता रही है। लेकिन कांग्रेस ने गुजरात में अपने सूखे को ख़त्म करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है वहीं राहुल गांधी भी पिछले कुछ दिनों से आक्रामक नजर आने लगे है, लेकिन राहुल विकास के मुद्दे पर सरकार को घेरने में कामयाब नही हो पाए, बल्कि नोटबंदी के बाद से दसियों चुनाव हार चुके राहुल गांधी नोटबंदी को विफ़ल बताने से आगे बढ़ ही नही पा रहे।

गुजरात चुनाव में राहुल और कांग्रेस ने झोंकी पूरी ताकत:

पिछले कई चुनाव की नाकामयाबी के बाद पार्टी का पतन होता देख इस बार कांग्रेस ने गुजरात चुनाव में पूरा जोर लगा दिया है। चुनाव प्रचार की कमान खुद राहुल गांधी ने संभाली है और पिछले कुछ दिनों से ट्विटर पर हलके चुटकुले और जोक्स के सहारे और बोट्स (फेक फॉलोवर बढ़ाने/बनाने का एक तरीका) की मदद से ही सहीं, आक्रामक होने की जद्दोजहद में लगे हुए है। अपने भावी अध्यक्ष का यह रूप देख के कांग्रेस फुले नही समां रही है। यहाँ तक की कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का दावा भी कर डाला है। राहुल गांधी ने अपने शुरुवाती रैली में ही विकास को प्रमुख मुद्दा बनाया और जब कहा कि गुजरात में ‘विकास पागल हो गया है’, एक बार को ऐसा लगा जैसे इस बार कांग्रेस विकास के मसले पर भाजपा से मुकाबला करेगी और मोदी को और गुजरात सरकार को विकास के नाम पर घेर पायेगी। लेकिन, राहुल गांधी ने अगली यात्रा में मंदिर का रुख कर लिया। तो विकास के मुद्दे पर कांग्रेस का टिके रहना मुश्किल ही नजर आ रहा है।

विकास के मुद्दे की निकली हवा तो जातिगत राजनीति पर उतरी कांग्रेस :

गुजरात चुनाव में अब सॉफ्ट हिंदुत्व पर फर्जी नक़ल कर कांग्रेस को मंदिर मुद्दे से भी ज्यादा फायदा नजर होता नही दिख रहा तो गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने फिर अपना दांव पलट कर जातिगत राजनीति की तरफ मोड़ दिया। कांग्रेस अब जातिगत आन्दोलन से निकले युवा नेता जैसे पाटीदार आन्दोलन के हार्दिक पटेल, ओबीसी आन्दोलन के अल्पेश ठाकोर और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी के सहारे गुजरात की राजनीति में अपना दांव खेलना चाह रही है। दरअसल कांग्रेस सबसे पुरानी पार्टी होने के बावजूद आज कुछ ही राज्य बचे है जहाँ बीजेपी के साथ सीधे मुकाबले में बची हुई है वरना सभी राज्यों में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के पिछली सीट पर बैठकर तो कहीं तीसरे पायदान पर तो कहीं चौथे पर सवारी कर रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार तो में हमने कांग्रेस का हश्र देख ही लिया। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान उसने पहले तो अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने का मंसूबा दिखाया। “सत्ताईस साल यूपी बेहाल” अभियान चलाया। भावी मुख्यमंत्री का एलान भी कर दिया। लेकिन, जैसे-जैसे चुनाव की तारीख करीब आने लगी, हिम्मत जवाब दे गयी।

लेकिन गुजरात में भाजपा से उसका सीधा मुकाबला है। यहां दो दल ही मुख्य है। ऐसे में कांग्रेस को चाहिए था की विकास के मुद्दे पर प्रभावी ढंग से अपना पक्ष रखती, पहले से विकसित राज्य होने के बावजूद एक नयी ऊँचाई पर ले जाने की बात करती और गुजरात को शिखर पहुचाने जैसे वादें करती। कांग्रेस अकेली विपक्षी पार्टी होने की हैसियत का निर्वाह स्वाभिमानी ढंग से करती लेकिन ऐसा करने में कांग्रेस नाकामयाब साबित हुयी है। देर रहते राहुल गांधी को समझ आ गया कि विकास के मुद्दे पर गुजरात में मोदी को घेरना टेढ़ी खीर है तो पूरी की पूरी कांग्रेस पार्टी जातिगत राजनीति में कूद पड़ी है, जिसमे कांग्रेस हमेशा से माहिर रही है। कांग्रेस गुजरात में आकर पाटीदार, ओबीसी और दलित समुदाय के नेताओं की खुशामद में जुट गई है। उधर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी का ‘हार्दिक पटेल जिस सीट से चाहें, टिकट दिया जाएगा’ कहना खुद बयां करता है की कांग्रेस विकास के मुद्दे से किस कदर घबरायी हुई है और उसे जातिगत राजनीति के अलावा दूसरा कोई चारा नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस जैसी पार्टी का तीनो जाति के नेताओं के सामने बिछ जाना गुजरात की राजनीती की सच्चाई बयां कर रहा है।

क्या है गुजरात के जातिगत समीकरण ? :

हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से गुजरात बीजेपी के चुनौती बने हुए हैं। कांग्रेस इन तीनों युवा नेताओं को अपने पाले में करने की कोशिश लगातार कर रही है। आपको बता दें कि गुजरात में पिछड़ी जाति की आबादी करीब 40 प्रतिशत, पाटीदार समुदाय की आबादी 12.16 प्रतिशत है। दलित जातियों की आबादी लगभग 17% है। हार्दिक पटेल पाटीदार नेता है तो अल्पेश ओबीसी समाज के नेता है। जिग्नेश मेवाणी दलित नेता के रूप में उभर कर आये है। ऐसे में सभी समुदायों की अहमियत अपने आप बढ़ जाती है।

क्या पाटीदार आन्दोलन के पीछे कांग्रेस का हाथ था?

पिछले वर्ष आन्दोलन के समय जिस तरीके राहुल गांधी ने हार्दिक पटेल का समर्थन किया था, तमाम आशंकाएं जताई जा रही थी की इसके पीछे गुजरात चुनाव को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस का हाथ हो सकता है। क्योंकि यही पैटर्न लगातार हर राज्यों में दोहराया जा रहा था। फिर हार्दिक पटेल के राहुल के साथ रिश्तों की गर्माहट को देखें तो यह आशंकाएं सच्चाई में बदल जाती है। हार्दिक का राहुल गांधी को एयरपोर्ट पर रिसीव करने पहुँचना बहुत कुछ बयां करता है। सभी तार को एक दुसरे से जोड़ते जाइये तो आप भी समझ जायेंगे कि माजरा क्या है। कुछ महीनों पहले यही हार्दिक पटेल पाटीदार समाज को लेकर गुजरात में आन्दोलन कर रहा था जिस आन्दोलन में खूब आगजनी हुई और सरकारी खजाने का जमकर नुकसान किया गया था। कारण मात्र इतना नहीं था कि पाटीदार समाज को आरक्षण चाहिए बल्कि कारण यह था मोदी को रोकने के लिए गुजरात में टूट चुकी कांग्रेस को किसी मजबूत कड़ी का सहारा चाहिए था। कांग्रेस भी इस बात को बखूबी समझ सकती है कि जो मोदी का विकासवादी सुधार मात्र तीन वर्षो में देश पर इस कदर हावी हो सकता है उसने 14 वर्षो में गुजरात में क्या नहीं किया होगा। हार्दिक को नेता बना दिया गया और विपक्ष और कांग्रेस को इसके बदले में मोदी विरोधी लहर बनाने में एक साथी मिल गया।

परंपरागत जातिगत राजनीती के सहारे राहुल :

बस यही चूक कर जाते है राहुल गांधी। राहुल अब भी कांग्रेस वाली पुरानी परम्परागत राजीनीति को संजोये बैठे है। जहाँ एक ओर इस देश में अनगिनत ऐसे मुद्दे है जिसमे बदलाव लाया जा सकता है, वहीं राहुल अब भी हिन्दू-मुस्लिम, जात-पात और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के सहारे जोर अजमाना चाहते है।

राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस समझ ही नही पा रही है कि गुजरात चुनाव में उनका मुकाबला राम मंदिर और परंपरागत हिन्दू वोटर के सहारे बैठी बीजेपी के साथ नही है बल्कि अब उनका मुकाबला नयी जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर सबका साथ सबका विकास, एक भारत श्रेष्ठ भारत, मेक इन इंडिया और हिंदुत्व और विकास साथ लेकर चलने वाली बीजेपी और विकासपुरुष मोदी से है।

राहुल गांधी को यह भी समझना है कि मोदी आज विकास की बात बात ही नहीं कर रहे बल्कि विकास की नींव भी रखते जा रहे है, हर वो काम कर रहे है जिसको सोचने में ही पिछली सरकारों के पसीने छूटने लगते थे। जीत-हार से ऊपर उठकर जनता का साथ लेकर वो हर मुमकिन कोशिश कर रहे है क्योंकि वो जानते है बीमारी गहरी है और इलाज भी बड़ा करना होगा। वहीं दूसरी ओर राहुल अब भी दादा नेहरू, दादी इंदिरा और पिता राजीव की विरासत में दी गई जातिगत और तृष्टिकरण की राजीनीति से बाहर नहीं आ पा रहे है। अगर बीजेपी अब भी हिन्दू और राम मंदिर के सहारे बैठी होती तो एक बार को शायद राहुल की परंपरागत राजनीति फिर एक बार चमक सकती थी। लेकिन आज का भारत एक अलग भारत है, यहाँ सिर्फ मंदिर ही नहीं बल्कि विकास भी चाहिए, यहाँ गीता भी चाहिए और कंप्यूटर भी चाहिए, यहाँ रोजगार भी चाहिए और शिक्षा भी चाहिए। और जब देश को ऐसे वक्त एक बड़े बदलाव की आस है, तो राहुल अब भी जातिगत राजनीती कर पाटीदार आन्दोलन, नरेंद्र पटेल, हार्दिक पटेल, जिग्नेश और अल्पेश ठाकोर में गुजरात की गद्दी तलाश रहे है।

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