गुजरात चुनाव में अमित शाह के नए दाव ने किया विपक्षियों को चारों खाने चित्त

गुजरात चुनाव, पाटीदार

गुजरात चुनाव को लेकर राज्य की राजनीतिक गतिविधियाँ अपने चरम पर है जैसे-जैसे राज्य में विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे है, राजनीतिक उथल-पुथल बढ़ने लगी है और चुनावी माहौल गरमाने लगा है। गुजरात चुनाव को इसीलिए भी महत्वपूर्ण और दिलचस्प बना दिया गया है क्योंकि गुजरात नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल के लिए तो विख्यात रहा ही है लेकिन इसलिए भी है कि इसी राज्य ने देश को एक कुशल प्रधानमंत्री भी दिया है। यही नही बल्कि भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले रणनीतिकार अमित शाह का भी गृह राज्य है। एक के बाद एक लगातार संसद से पंचायत तक के चुनाव भाजपा को जितवाने के बाद यह देखना होगा कि वह खुद के गृह राज्य में बीजेपी का विजय रथ को कैसे आगे बढ़ा पाएंगे, क्योंकि इसी मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा पालिका से लेकर विधानसभा तक हर चुनाव को मोदी के लिए साख का चुनाव बना दिया जाता है। वही राहुल गांधी के चुनाव दर चुनाव मात खाने के बाद भी राहुल में इन्हें हर चुनाव के पहले एक नई रणनीति और प्रतिभा नजर आने लगती है। तो अपनी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए मीडिया द्वारा गुजरात चुनाव भी अमित शाह और मोदी की साख का चुनाव माना जायेगा। ऐसे में तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए जहाँ अमित शाह जीत की हामी भर रहे है तो वहीं कांग्रेस को पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के समर्थन मिलने से प्रदेश कांग्रेस गदगद है।

वादों और दावों का दौर चला है तो बीजेपी भी इसमे पीछे नही है। लेकिन यह चुनाव एक और मामले में दिलचस्प हो जाता है जब पाटीदार आंदोलन से निकलें युवा नेता आपस में ही बाट जाते है। जहाँ हार्दिक पटेल कांग्रेस को समर्थन कर रहे है वहीं उनके साथी रहे रेशमा और वरुण पटेल चुनाव के तुरंत पहले बीजेपी में शामिल हो गये।

इसके बाद पाटीदार आन्दोलन की हवा निकल गयी और यह एक राजनितिक आन्दोलन ही प्रतीत होता दिख रहा है।

बीजेपी में शामिल हुए पाटीदार आन्दोलन के दो बड़े नेता :

गुजरात चुनाव को लेकर राजनीती पूरी तरह गरमा गयी है। इस बार यह इसलिए भी ज्यादा दिलचस्प होता दिखाई दे रहा है क्योंकि पाटीदार आन्दोलन से निकले नेताओं में से कुछ बीजेपी में शामिल हो गए तो कुछ कांग्रेस को समर्थन करने लगे जिससे तमाम समीकरण बदलने लगे है। इससे पहले पाटीदार नेता रेशमा पटेल और वरुण पटेल ने शनिवार को अहमदाबाद में भाजपा कार्यालय में अमित शाह से मुलाकात की। दोनों भाजपा में शामिल हो गए। वरूण और रेशमा हार्दिक पटेल की पाटीदार अनामत आंदोलन समिति का प्रमुख चेहरा थे और आंदोलन के दौरान सत्तारूढ़ बीजेपी के आलोचक रहे है। अब दोनों नेताओं के भाजपा में शामिल होने से हार्दिक पटेल के लिए इसे तगड़ा झटका माना जाए तो अतिशयोक्ती नहीं होगा। उधर अल्पेश ठाकुर भी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। इससे पहले यह भी खबर थी कि अल्पेश आने वाले समय में गुजरात चुनाव को लेकर अपनी रणनीति की घोषणा कर सकते हैं। यह भी कयास लगाए जा रहे थे कि वे नई राजनीतिक पार्टी भी बना सकते हैं।

गुजरात चुनाव की सुगबुगाहट के बीच एक नाटकीय घटनाक्रम में पटेल आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल के महत्वपूर्ण सहयोगी वरूण पटेल और रेशमा पटेल सत्ता पक्ष बीजेपी में शामिल हो जाने से बीजेपी इसे अपनी बड़ी जीत मान रही है क्योंकि गुजरात में पाटीदार आन्दोलन बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती था। जिसमे सेंध लगाने में अमित शाह कामयाब होती हुए।

पूरे घटनाक्रम की दिलचस्प बात यह है कि यह घटनाक्रम कांग्रेस अध्यक्ष भरतसिंह सोलंकी के हार्दिक पटेल को उनकी पार्टी के साथ हाथ मिलाने का न्योता देने के कुछ घंटों बाद हुआ है। सोलंकी ने आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के राज्य की सत्ता में आने पर ओबीसी वर्ग को 20 फीसदी अतिरिक्त आरक्षण देने का वादा किया था। मतलब जैसे ही हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को समर्थन देने का मन बनाया उनके साथी ने भाजपा का दामन थाम लिया।

क्या था पाटीदार आन्दोलन ?

पाटीदार समाज के आरक्षण की मांग करते हुए हार्दिक पटेल ने पिछले साल बड़ा आन्दोलन खड़ा किया था जिनके अगुवाई में पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पीएएएस) बनाई गयी। आरक्षण की मांग को लेकर पिछले साल हुए पटेल आंदोलन के दौरान जान माल की भयानक हानि हुयी थी और 14 लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी थी। इसी आन्दोलन में हार्दिक के सहयोगी और नेता रहे रेशमा और वरुण प्रमुख चेहरा थे। लेकिन हार्दिक पटेल से नाराजगी के बाद रेशमा और वरुण आंदोलन से अलग हो गए थे।

क्या है गुजरात के जातीगत समीकरण :

हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से गुजरात बीजेपी के चुनौती बने हुए हैं। कांग्रेस इन तीनों युवा नेताओं को अपने पाले में करने की कोशिश लगातार कर रही है। आपको बता दें कि गुजरात में पिछड़ी जाति की आबादी करीब 40 प्रतिशत, पटेल कुणबी पाटीदार की आबादी 12.16 प्रतिशत है। दलित जातियों की गुजरात में अन्य राज्यों से काफी कम मात्र 7.17 प्रतिशत आबादी है। हार्दिक पटेल पाटीदार नेता है तो अल्पेश ओबीसी समाज के नेता है। जिग्नेश मेवानी दलित नेता के रूप में उभर कर आये है।

हार्दिक पटेल के समर्थन से कांग्रेस गदगद:

कांग्रेस ने पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल को गुजरात में विधानसभा चुनाव लड़ने का न्योता दिया है। जिसके बाद शनिवार को एक निजी चैनल से बातचीत करते हुए हार्दिक ने कहा कि वह बीजेपी को हराने के लिए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का साथ देंगे। गौरतलब है कि कांग्रेस ने गुजरात में बीजेपी को हराने के लिए हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को एक साथ आने का न्योता दिया था। इस बीच गुजरात की पिछड़ी जातियों के युवा नेता अल्पेश ठाकोर ने कांग्रेस में शामिल होने का ऐलान किया है। जिससे कांग्रेस दो बड़े नेताओं का साथ पाकर गदगद है और अपनी जीत का दावा करही है।

हार्दिक पटेल को बताया गद्दार :

अहमदाबाद में रेशमा और वरुण ने बीजेपी में शामिल होने के बाद हार्दिक पटेल को गद्दार बताया। पाटीदार आंदोलन दो गुटों में बंटने के बाद बीजेपी में शामिल हुए पाटीदार नेताओं ने कहा कि हार्दिक ‘कांग्रेस का एजेंट’ बन गया है और मौजूदा राज्य सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए आंदोलन का इस्तेमाल करने का प्रयास कर रहा है। वहीं पाटीदार आन्दोलन से निकली युवा नेता रश्मी पटेल ने भाजपा ज्वाइन करने के बाद कहा ‘‘हमारा आंदोलन ओबीसी कोटा के तहत आरक्षण के बारे में था। यह बीजेपी को उखाड़कर उसकी जगह कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए नहीं था। जहां बीजेपी ने हमेशा समुदाय का समर्थन किया है और हमारी ज्यादातर मांगे मान ली हैं। कांग्रेस सिर्फ पटेलों को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है | हम इस तरह की दुर्भावनापूर्ण साजिश का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं।’’ रेशमा और वरुण के बीजेपी में शामिल होने पर हार्दिक ने अपना दुःख व्यक्त करते हुए ट्वीट किया है ‘कनखजूरा के पैर टूट जाने के बावजूद भी कनखजुरा दौड़ेगा ! मेरें साथ जनता हैं। जनता का साथ है तब तक लड़ता रहूँगा !’

यह कई मायनों में भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह की बड़ी जीत है क्योंकि माना जाता है आज भी राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस भाजपा के लिए गुजरात मे कोई चुनौती खड़ी नही कर पाई है।

भले ही मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद गुजरात भाजपा थोड़ी कमजोर जरूर हुई लेकिन देर न करते भाजपा ने आनंदी बेन को हटा विजय रूपानी को मुख्यमंत्री बनाकर समय रहते स्थिति को भांप काबू कर लिया। ऐसे में भाजपा के लिए पाटीदार आन्दोलन के हार्दिक पटेल ही बड़ी चुनौती बनकर उभरे थे। हालांकि पाटीदार जाट और मराठा आंदोलन, आन्दोलन कम और भाजपा का विजय रथ रोकने के लिए विपक्ष द्वारा खड़ा किया गया आंदोलन ज्यादा नजर आता है। बहरहाल हार्दिक पटेल ने पहले ही संकेत दे दिए थे कि यह आंदोलन सिर्फ गुजरात मे भाजपा को रोकने के लिए ही है। ऐसे में भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती थी हार्दिक पटेल और उनका आंदोलन जिसकी एक बड़ी धुरी थे वरुण और रेशमा पटेल और इन दोनों युवा नेताओं के भाजपा में शामिल होने के बाद भाजपा विपक्षियों की इस चाल को भी नाकाम करने में कामयाब होती नजर आ रही है।

अब यह देखना मजेदार होगा की पाटीदार नेताओं के बंटवारे के बाद कौन सी पार्टी इसका लाभ ले पायेगी और इन्हें भुनाने में कामयाब हो पायेगी। अगर राहुल गांधी हार्दिक पटेल के सहयोग बाद भी गुजरात चुनाव में जैसे तैसे कुछ चमत्कार करने सफल हो जाते है तो आने वाले समय में इसे कांग्रेस के रिफार्म में रूप में देखा जायेगा और कांग्रेस में फिर राहुल के लिए आगे की चुनौतियाँ थोड़ी आसान होगी लेकिन वहीं अगर हार्दिक के समर्थन के बावजूद एक बार फिर विफल होते है तो कांग्रेस अपने कई बड़े चेहरे खो देगी और राहुल खुद कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती माने जाने लग जायेंगे। बररहाल तो यही कहना सही रहेगा कि अमित शाह के राजनीतिक सूझबूझ ने फिर से भाजपा के एक नए परन्तु तगड़े विपक्षी दल को तहस नहस कर दिया है।

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