आइये मिलिए उन नामचीन हस्तियों से जो रोहिंग्या मुस्लिमों को देश से बाहर नहीं जाने देना चाहते

रोहिंग्या

देश में रोहिंग्या मुसलमानों का मामला काफी गर्म रहा है। म्यांमार में अलगाववाद, आतंकवाद गतिविधियों में लिप्त होने की वजह से वहाँ की सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को सबक सिखाना शुरू किया जिसके बाद रोहिंग्या मुसलमानों ने आतंक छोड़ वहाँ से भागना ही सही समझा। म्यांमार की सेना ने अपने देश को आतंक से बचाने के लिए रोहिंग्या समूहों को पूरी तरह से खदेड़ना शुरू कर दिया था। जिसके बाद वो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य देशों में जाकर अवैध रूप से बसने लगे। भारत में अभी 40-60 हजार रोहिंग्या मुसलमान अवैध रूप से रह रहें हैं। लेकिन इन सब के बीच एक ऐसी टोली निकल कर आई है जिनका रोहिंग्या मुसलमानों के ऊपर प्रेम अत्यंत उमड़ रहा है। जी, आप बिल्कुल सहीं सोच रहें हैं, यह वही टोली है जो खुद को बुद्धिजीवी कहती है, जो भारत विरोधी तत्वों का समर्थन करती है और तो और आतंकियों को बचाने के लिए रात 2 बजे कोर्ट खुलवाती है।

दरअसल कुछ दिन पहले मोदी सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर किया जायेगा। सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी डाली गई थी, और उस याचिका की सुनवाई में भी सरकार ने अपना रुख साफ़ कर दिया था। लेकिन इन सब के बाद देश की एक टोली में हाहाकार मचा हुआ है।

इसी वजह से देश के जाने माने (ऐसा वो खुद को कहते हैं) 51 लोगों ने रोहिंग्या मुसलामानों के समर्थन में और उन्हें वापस नहीं भेजने के लिए प्रधानमंत्री को लिखे ख़त में हस्ताक्षर किया है।

भारत ने अनेकों धर्मों को शरण दिया है, लेकिन किसी संदिग्ध समुदाय को शरण कैसे दिया जा सकता है? म्यांमार में सेना ने यह खबर पुख्ता की थी कि आईएसआईएस के लड़ाके रोहिंग्या मुसलमानों को ट्रेनिंग दे रहे थे। वहीं नागालैंड पुलिस की खुफिया इकाई ने 12 अक्टूबर को रोहिंग्या द्वारा स्थानीय लोगो पर हमले करने के प्रति आगाह भी किया था। खुफिया एजेंसी ने रोहिंग्या लोगो के नागालैंड में भी आईएस से जुड़े होने की खबर दी है। एक रिपोर्ट के अनुसार रोहिंग्या शरणार्थी कैम्पों में जमात-उद-दावा, अलकायदा, जमात-ए-इस्लामी और दूसरे इस्लामिक आतंकी संगठन के लोग घुस चुके हैं। देश की सुरक्षा एजेंसी ने भी रोहिंग्या मुसलमानों को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया है। हाल ही में म्यांमार में 28 हिंदुओं की कब्र बरामद हुई थी, जिसमें यह बात निकल कर आई कि रोहिंग्या मुसलमानों ने हिंदुओं को धार्मिक घृणा के चलते मार दिया था। वहीं कुछ बचे हुए हिंदुओं के बयान भी आये जिन्होंने बताया कि कैसे उन लोगों को मारा गया, महिलाओं के माथे के सिंदूर मिटाये गए, और तो और महिलाओं के साथ बलात्कार भी किया गया।

अब आप खुद सोचिए, क्या ऐसे किसी समुदाय को भारत में शरण देना उचित है ? क्या भरोसा है कि ये लोग भारत में आतंक नहीं फैलाएंगे ? क्या भरोसा कि यहाँ भी हिंदुओं को नहीं मारेंगे ? लेकिन नहीं! कुछ लोगों को इन्हें बचाने में ही खुद की भलाई दिख रही है। अब तक दुनिया के सभी बड़े इस्लामिक आतंकी संगठनों रोहिंग्या मुसलमानों के पक्ष में बयान दिया है। आतंकी संगठनों ने बड़े हमलों की धमकी भी दी है।

रोहिंग्या मुसलामानों के पक्ष में पहले तो पठानकोट हमले का मास्टरमाइंड आतंकवादी मसूद अज़हर आया था लेकिन अब प्रशांत भूषण (आतंकी के लिए रात में कोर्ट खुलवाने वाले वकील), शशि थरूर(कांग्रेस सांसद), पी. चिदम्बरम( कांग्रेस), योगेन्द्र यादव (आप पार्टी से बाहर किये हुए), तीस्ता सीतलवाड़ (तथाकथित एक्टिविस्ट), स्वरा भास्कर (कुछ असफल फिल्मों की नायिका और साइड एक्ट्रेस), निवेदिता मेनन(शिक्षक, जेएनयू) और करण थापर और सागरिका घोष जैसे पत्रकार भी रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में सामने आ चुके हैं। मसूद अज़हर के साथ ये सभी वही लोग हैं जिन्होंने जेएनयू में हुए देशविरोधी प्रकरण का वैचारिक तौर पर समर्थन किया था।

रोहिंग्या ना हमारे देश के हैं और तो और हमारे देश के लिए खतरा है यह तो स्पष्ट है फिर भी ये लोग उनकी पैरवी करने को जुटे हैं। लेकिन आपने कभी इन नामों में से किसी को भी कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ बोलते देखा है ? क्या कभी किसी को कश्मीरी पंडितों के साथ हुए नरसंहार पर प्रधानमंत्री को खत लिखते देखा है ? कभी उन पंडितों को भी अपने घर में बसाने के लिए कोई याचिका दायर करते देखा है ? नहीं ना! बिल्कुल यही बात है, जो समझना आवश्यक है। ये ऐसे लोग हैं जिन्हें देश में बुद्धिजीवी कहा जाता है।

राजनीति में विचारों का मतभेद हमेशा से रहा है। जितने भी राजनेता हैं वो अपने विरोधियों पर तरह तरह के आक्षेप लगाते हैं जो वैचारिक रूप से होते हैं और तो और कभी कभी निजी भी हो जाते हैं। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो देश के अनेकों संस्थानों में बैठे होते हैं लेकिन उन्हें भी राजनीति ही करनी होती है। अपने संस्थान का इस्तेमाल वो अपनी राजनीती और विचारों को फ़ैलाने के लिए करते हैं। लेकिन जब आप विचारों के विरोध में आकर देश के विरोध में काम करने लग जाते हैं तो आप कैसे बुद्धिजीवी हुए ?

जब यह साफ़ साफ़ स्पष्ट है कि रोहिंग्या देश के लिए खतरा है, सुरक्षा एजेंसियों ने भी यह साफ़ कर दिया, अनेकों तथ्य सामने आ चुके हैं, फिर भी इनको देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करना है ? ध्यान से देख लीजिए इन्हें, देश की सबसे पुरानी पार्टी के नेता अब विरोध में रोहिंग्या मुसलामानों को बसाना चाहते हैं। पत्रकार, वकील, असफल कलाकार अपने ही देश के सुरक्षा के खिलाफ में खड़े हो गए हैं। कभी आपको कहीं ये लोग मिले, तो इनसे सवाल जरूर कीजिएगा, कि जिसको अज़हर मसूद जैसे आतंकवादियों का समर्थन है उनको समर्थन करने की क्या मजबूरी थी ?

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