रविश कुमार को एक निडर, स्मार्ट और प्रख्यात पत्रकार के रूप में जाना जाता है, जो किसी भी प्राधिकारी से किसी भी तरह के सख़्त सवाल पूछने का साहस रखता है। रविश कुमार का सबसे प्रतिष्ठित और संभवतः सबसे प्रसिद्ध शो देश में ‘असहिष्णुता’ के माहौल की आलोचना करते हुए जेएनयू प्रकरण के दौरान “स्क्रीन काली” करने वाला था। उन्होंने भारत के लोगों पर राष्ट्रवाद के नाम पर असहिष्णु होने का आरोप लगाया था और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कड़ी पैरवी की थी। उन्होंने स्क्रीन काली कर यह सुझाव देने की कोशिश किया था कि कुछ लोग, अधिकांश मीडिया समूह (जिसमें एनडीटीवी शामिल नहीं है) और वर्तमान शासन के लोग और संभवतः पूरी दुनिया ने एक उदार बहस को सम्पाप्त ही कर दिया है।
रविश कुमार लगातार वर्तमान सरकार को लोगों का ब्रेनवाश करने और कट्टर बनाने को लेकर दोषी ठहराते हुए कड़े प्रहार कर रहे हैं। सबसे हलिया मामले में गुजरात में दो अज्ञात लोगों ने एक 17 वर्षीय दलित युवक को मूँछ पर ताव दिखाने या मूँछ को मोड़ने जैसे छोटे से कारणवश उसके पीठ को ब्लेड से लहूलूहान कर दिया।
गुजरात की इस घटना ने एक बड़े विवाद को जन्म दिया और सोशल मीडिया ने इसपे कड़ी प्रतिक्रिया दी। अपेक्षित रूप से मीडिया समूहों ने इस ख़बर को दिन रात कवर किया। एनडीटीवी, द वायर, द क्विंट जैसे मीडिया समूहों ने भारतीय नागरिकों के दिमाग़ में ये छाप पैदा करना शुरू कर दिया कि भारत अपने देश के निचली जाति की आबादी के लिए असहिष्णु है और दलितों को छोटे छोटे मुद्दों पर मार दिया जाता है। दलित कार्यकर्ताओं ने एक दलित किशोर पर “मूँछ को लेकर” हुए हमले के जवाब में सोशल मीडिया में एक क्रांति की शुरआत की।
इसके बाद सोशल मीडिया में विरोधी लोगो और फ़ोटो संदेश की बाढ़ आ गई जिसमें एक मूँछ के नीचे ताज था, जिसमें लिखा हुआ था “मिस्टर दलित”। लोग विरोध के रूप में अपनी मूँछ घुमाती हुई तस्वीर डालने लगे।
ख़बर के मुताबिक़ यह घटना 25 सितंबर 2017 को शुरू हुई थी। 24 वर्षीय पीयूष परमार जो कि गुजरात के गाँधीनगर जिले के लिंबोदरा गाँव का रहने वाला है। ऊपरी जाति के दरबार समुदाय के कुछ लोगों ने पीयूष और उसके चचेरे भाई दिगंत महेरिया गरबा से वापस गाँव लौटने के दौरान कथित तौर पर जातिगत टिप्पणी की थी। लड़कों ने समूह से परहेज़ किया और अपने घर लौट गए। पीयूष के अनुसार उस समूह के कुछ लोग बाद में उसके घर आकर “निचली जाति होने के बाद भी मूँछों पे ताव देने” के कारण मारपीट की।
“जैसा कि उस जगह पर अँधेरा था जिस वजह से हम उनको देख नहीं पाए। जब हम जहाँ से आवाज़ आ रही थी उस ओर गए तो वहाँ दरबार समुदाय के तीन लोग थे। किसी भी तरह के झगड़े से बचने के लिए हमने उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया। जैसे ही हम घर पहुँचे वो लोग हमारे घर आए और हमें गाली देना शुरू कर दिया। उन्होंने सबसे पहले मेरे चचेरे भाई दिगंत पर हमला किया फिर उन्होंने मुझे मारना शुरू कर दिया, वह बार-बार मुझसे कह रहा था कि निचली जाति से आने के बाद भी तुम मूँछों पे कैसे ताव दे सकते हो?” यह पीयूष परमार ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से कहा।
पीयूष के चचेरे भाई दिगंत महेरीया को भी कथित रूप से पीटा गया। 26 सितंबर को कलोल पुलिस ने एक ही गांव के 3 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया जिनकी मयूरसिंह वाघेला, राहुल विक्रमसिंह सेरथिया और अजीत सिंह वाघेला के रूप में पहचान की गई। एफआईआर आईपीसी की धारा 323(चोट लगाना) 504(शांति का उल्लंघन करने के लिए जानबूझ कर अपमान करना) और 114 (उत्पीड़न) के तहत अपराध दर्ज किया गया।
29 सितंबर को एक और इसी तरह की घटना गुजरात के उसी गांव के 30 वर्षीय दलित युवक कुणाल महेरिया के साथ घटी। रिपोर्ट के अनुसार राजपूत समुदाय के कुछ लोगों ने दलित समुदाय से होने के बाद भी मूँछों के साथ खेलने की वजह से कुणाल के साथ मारपीट की।
“जब मैं अपने दोस्तों से शुक्रवार की रात मिल रहा था तब भरतसिंह वाघेला और कुछ अन्य लोगों ने मुझे रोक लिया और मेरे साथ मौखिक रूप से दुर्व्यवहार किया। वाघेला ने मुझसे कहा कि सिर्फ मूँछों से खेलकर मैं राजपूत नहीं बन सकता। जब मैंने उसे नजरअंदाज किया तो वाघेला ने मुझे एक लकड़ी से मारा,” कुणाल महेरिया ने रविवार को यह कहा। आईपीसी की धारा 323 के तहत वाघेला के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई। वाघेला को जल्दी गिरफ्तार भी कर लिया गया। पहली घटना के साथ ही इस घटना को भी मीडिया द्वारा अच्छी तरह से कवर किया गया।
तीसरी घटना भी गुजरात के उसी गाँव में 3 अक्टूबर 2017 को लगभग शाम 5:30 बजे के आसपास हुई। पीयूष परमार का चचेरा भाई 17 वर्षीय दिगंत महेरिया जब स्कूल से लौट रहा था तब दो अज्ञात लोगों ने कथित तौर पर उसकी पीठ पर ब्लेड से हमला किया। डेक्कन क्रॉनिकल द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार :-
“जब पीयूष को पीटा गया तब दिगंत उपस्थित था। मंगलवार को जब दिगंत परीक्षा दे कर घर वापस आ रहा था तब दो नकाबधारी पुरुषों ने उसे पकड़ लिया। बाइक में बैठे उन लोगों ने दिगंत से कहा कि एफआईआर करने वालों पर हमला करने के लिए उन्हें डेढ़ लाख रुपए मिले हैं”, उसके चाचा किरीट महेरिया ने यह आरोप लगाया।
हाल ही के समय तक करीब 1 हफ्ते से अधिक समय तक मीडिया समूहों ने अपने टीवी शो में गुजरात की इस घटना को बड़ा कवरेज दिया। लेकिन अचानक उन सभी का उत्साह ग़ायब हो गया। गुजरात पुलिस इन तीनों केस की खोजबीन कर रही थी और उन्हें एक अजीब चीज मिली।
इंडियन एक्सप्रेस में 4 अक्टूबर को प्रकाशित खबर के मुताबिक गांधीनगर के एसपी वीरेंद्र सिंह यादव ने आश्चर्य व्यक्त किया कि “लड़के को एक बाइक में सवार तो नकाब धारी लोगों ने ब्लेड से हमला किया। जब हमने गांव में इसकी खोज बीन की तो हम आश्चर्यचकित थे कि घटना के स्थल पर किसी ने भी चीख की आवाज नहीं सुनी।” यह वास्तव में आश्चर्य की बात थी। दो लोगों ने पीठ पर कई बार बार किया और लड़के ने मदद के लिए किसी को आवाज ही नहीं दी। पुलिस ने जांच के लिए तीन टीम बनाई थी। जांच से इन निष्कर्षों का पता चला है :-
1. फॉरेंसिक टीम को अपराध के स्थल पर कोई भी ब्लेड प्राप्त नहीं हुआ है।
2. अपराध के स्थल पर फॉरेंसिक टीम को कोई रक्त भी नहीं मिला।
3. पीड़ित द्वारा पहने हुए कपड़े हमले के विवरण के अनुरूप नहीं थे।
4. कथित तौर पर किया गया अपराध सीसीटीवी फुटेज से भी स्थापित नहीं हो पाया।
5. जब इलाके के आसपास के लोगों से पूछताछ की गई तो लोगो ने बताया कि उन्होंने कोई अपराध नहीं देखा है और कोई भी चीख नहीं सुनी है।
6. आसपास के इलाके में एक स्थानीय पान की दुकान के मालिक ने पूछताछ के दौरान ऐसी किसी भी घटना के घटित होने को खारिज कर दिया।
7. पूछताछ के दौरान दिगंत महेरिया ज्यादा देर तक नहीं टिक पाया और उस ने कबूल किया कि अपने दो नाबालिक मित्रों की सहायता से खुद पर हमला किया था। उन्होंने एक तेज ब्लड खरीदा और दोस्तों की मदद से उसे पीठ पर वार कर चोट लगाया।
8. दिगंत ने यह बात कबूल किया कि उसने इस मामले में शिकायत दर्ज कराई और इस मुद्दे को पढ़ा जानबूझकर बनाया क्योंकि उसे मीडिया कवरेज और पब्लिसिटी चाहिए थी।
9. दिगंत के दोस्तों ने यह कबूल किया कि उन्होंने दिगंत के दबाव डालने के कारण उसके पीठ पर वार किया।
10. दिगंत ने यह स्वीकार किया कि कुछ एनजीओ ने उससे मुलाकात और बातचीत की, जिसने उसे प्रसिद्धि के लिए ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। तथाकथित पीड़ित दलित किशोर ने यह स्वीकार किया कि उसने इन सभी चीजो को एनजीओ के प्रभाव में आकर पब्लिसिटी और सहानुभूति हासिल करने के लिए किया है।
गांधीनगर के एसपी वीरेंद्र सिंह यादव ने कहा “हमने उसके दोनों दोस्तों जिन्होंने कहा कि उन्होंने अपने दोस्त की पीठ पर वार किया उनसे और उनके माता-पिता से भी सवाल किया।” पुलिस दल ने इस खुलासे को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सार्वजनिक किया जिसमें दलित षड्यंत्रकर्ता और तथाकथित शिकार व्यक्ति के पिता मौजूद थे। पिता ने भी अपने बेटे की गलती को स्वीकार किया। एस पी यादव ने कहा कि चूँकि तीनों किशोर नाबालिक है इसलिए वह मामले को नहीं बढ़ा रहे हैं क्योंकि इससे उनका कैरियर खराब हो सकता है। मुझे यह जरूर कहना चाहिए कि गुजरात प्रशासन दयालु है, जहाँ किशोर है जिसने झूठे आरोप लगाए थे जिसने इस क्षेत्र में दंगों को उकसाने की क्षमता रखी थी, उसे किशोर सुधार गृह नहीं भेजा गया। इसके विपरीत बंगाल पुलिस एक किशोर लड़के को किशोर गृह के बदले जेल भेजने की कोशिश में थी, क्योंकि उसके एक फेसबुक पोस्ट से पश्चिम बंगाल के बशीरहाट में दंगे भड़क गए थे।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार दिगंत ने कहा “मैं किसी के भी दबाव में नहीं हूं। मैंने यह अपने दोस्तों की मदद से किया है। मुझे नहीं पता क्यों।” अपने बेटे के कारनामे से चकित और लज्जित होकर दिगंत के पिता ने कहा “मुझे नहीं पता कि क्या कहना है।मेरा सर बहुत भरा हुआ है। मैं उस वक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद था और मैंने यह स्वीकारा कि मेरे बेटे ने गलती की है। मैं बस यही कहना चाहूंगा। उसने यह अपनी उम्र की मूर्खता में किया है ऐसा मुझे लगता है। हमारे घर के सामने रहने वाले लड़कों ने उसकी मदद की।”
सच्चाई के बाहर आने के बाद यह स्पष्ट है कि देश में अराजकता का माहौल पैदा करने के लिए पर्दे के पीछे एक बड़ी साजिश रची जा रही है। क्या समय है कि हम सभी को सतर्क रहने की आवश्यकता है।
● क्यों एक ही महीने की अवधि के भीतर गुजरात के एक ही गांव में तीन ऐसे ही मामले सामने आए जहां मूँछें मोड़ने जैसे मूर्खतापूर्ण मामले के कारण हिंसा हुई?
● जब यह साबित हो चुका है कि दिगंत ने खुद पर हमला किया है तो क्या अन्य मामले प्रमाणिक है क्या वह भी झूठे हैं ?
● क्या यह सिर्फ संयोग है कि सभी पीड़ित सीधे या परोक्ष रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं ? क्रुणाल महेरिया भी दिगंत महेरिया का चचेरा भाई है।
● 29 सितंबर को पियूष परमार के साथ कथित मारपीट का कोई साक्षी क्यों नहीं है ?
● क्या यह घटना एक साजिश थी जो दिसंबर 2016 में हुए एक और मामले से प्रेरित थी ? दिसंबर 2016 में नरेश परमार और महेश परमार नाम के दो भाइयों को मूँछो के लिए पीटा गया था। उस मामले में भी आरोपी दरबार समुदाय से ही थे। क्या यह केवल एक संयोग है कि हर बार दरबार समुदाय के लोग ही हिंसा में शामिल होते हैं?
● आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महेश परमार दलित नेता जिग्नेश मेवानी के राजनीतिक टीम का हिस्सा है। कौशिक परमार सुबोध परमार सुरेश अग्जा आदि लोग इस टीम के अन्य सदस्य हैं। नरेश और महेश परमार के केस में विरोध अभियान को आगे बढ़ाने के लिए कौशिक पर मारने प्रमुख भूमिका निभाई थी।
● जिग्नेश मेवानी आम आदमी की गुजरात इकाई का आधिकारिक प्रवक्ता है।
● एनजीओ ने दिगंत को प्रेरित करने के लिए किस तरह की भूमिका निभाई? कौन से एनजीओ ने उसे प्रेरित किया? क्या मोदी सरकार द्वारा 20,000 एनजीओ के एफसीआरए लाइसेंस रद्द करने फैसले के बदला लेने के लिए किसी एनजीओ की साजिश है?
● दलित समुदाय किस पार्टी को वोट देना चाहता है उसको वोट देने से डराने के लिए क्या एनजीओ असुरक्षा का माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं ?
● इस मामले में पुलिस क्या कार्यवाही करेगी ?
सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि “मीडिया चैनल और दलित कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया इस साजिश पर कैसी होगी ?”
क्या दलित कार्यकर्ता अब उस लड़के के कारनामे के लिए उसकी आलोचना करेंगे या चुप्पी साधे रहेंगे ?
क्या एनडीटीवी जैसे मीडिया घराने और रविश कुमार जैसे पत्रकार इस घटना को उतनी तरजीह देंगे जितनी उन्होंने पहले दिया था ?
क्या रविश कुमार एक जिम्मेदार पत्रकारिता की जिम्मेदारी लेते हुए अपने दर्शकों को बताएंगे कि गुजरात में चल रहे तीन दलित युवको को मारने के केस में एक ने पब्लिसिटी के लिए यह किया था ? और बाकि की जांच हो रही है।
◆ नहीं, 17 वर्षीय दलित किशोर पर हमले को कवर करने के लिए रविश कुमार को देश से माफ़ी मांगने की जरुरत नहीं है। वह तो लोगो को बताकर अपना काम कर रहे थे। आखिर वो कैसे जान सकते हैं कि हमला प्रमाणिक था ?
◆ नहीं, इस मामले में साजिश को नहीं समझ पाने के लिए रविश कुमार को माफ़ी मांगने की जरुरत नहीं है। वह एक टीवी एंकर हैं, जांच अधिकारी नहीं।
◆ नहीं, रविश कुमार को सरकार से न्याय की मांग करने के लिए माफ़ी मांगने की जरुरत नहीं है।
तो रविश कुमार को क्या करना चाहिए ? रविश कुमार को असल में उपलब्ध तथ्यों को प्रस्तुत करने के बजाय अपनी राय पर जोर देने के अपने दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है। रविश को तत्काल प्रतिक्रियाशील पत्रकारिता को रोक किसी निष्कर्ष में निकलने से पहले तथ्यों की प्रतीक्षा करनी चाहिए। यदि रविश कुमार ने ‘दलित किशोर पर हमला’ को कवर किया तो उन्हें ‘दलित किशोर ने खुद पर हमला किया’ को भी कवर करना चाहिए। रविश कुमार को लोगो को सच्चाई बताना चाहिए, जैसे इस मामले में लड़के ने खुद पर पब्लिसिटी के लिए हमला किया। रविश कुमार को अपने कर्तव्य को निभाने की जरुरत है, और उन्हें अपने दर्शकों को बताना चाहिए कि यदि दलितों को आतंकित करना जुर्म है तो ऊपरी जाति के लोगो पर झूठा केस लगाना भी अपराध है।
चर्चा को ख़त्म करते हुए मैं एक प्रश्न रविश कुमार से करता हूँ। “प्रिय सर, एक बार आपने जेएनयू प्रकरण के दौरान स्क्रीन काला किया था। अब जब यह मामला साजिश किया हुआ साबित होता है तो क्या आप स्क्रीन काली करेंगे ?”