प्रधानमंत्री का अगला क़दम भारतीय चुनाव प्रणाली को पूरी तरह से बदल देगा

समकालिक चुनाव

क्या आपको याद है कि नीति आयोग की गवर्निंग कॉउंसिल की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने क्या कहा था? खैर, अब चुनाव आयोग भी वही बातें करता दिख रहा है। और जब यह बात प्रधानमंत्री मोदी ने पहले ही कह दिया है तो हम इसमें बिना किसी देरी के कार्यान्वन की उम्मीद भी कर सकते हैं। चुनाव आयोग ने यह सार्वजनिक कर दिया है कि सितंबर 2018 तक वह लोकसभा और राज्यों के विधानसभाओं के चुनाव को साथ साथ कराने (समकालिक चुनाव) के लिए सक्षम हो जायेगी। यदि ऐसा सच में होता है तो यह निश्चित रूप से भाजपा सरकार के लिए बड़ी कामयाबी होगी। मैं आपको बताता हूँ कि समकालिक चुनाव से हमारे देश को कैसे फायदा हो सकता है, और कुछ ऐसी अड़चन जिसकी उम्मीद की जा सकती है। यदि इन अड़चनों पर अच्छे से ध्यान दिया जाता है तो यह सभी के लिए (कुछ को छोड़कर) जीत की स्थिति साबित होगी।

समकालिक चुनाव, यदि संक्षेप में व्याख्या करें तो, इसका मतलब है आप अपने निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता केंद्र में जाएंगे और 2 अलग अलग वोट डालेंगे, एक केंद्र सरकार में आपके क्षेत्र के लिए सांसद उम्मीदवार हेतू और दूसरा अपने राज्य के विधानसभा में आपके क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए विधानसभा उम्मीदवार के लिए।

एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि, आप समकालिक चुनाव में केंद्र और राज्य सरकार के लिए एक ही वोट नहीं देंगे। उदाहरण के लिए, यदि आप राज्य विधानसभा में भाजपा को वोट देते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि केंद्र में भी भाजपा के लिए वोट डाल रहे हैं। कुछ स्वाभाविक सी राजनैतिक वजहों के कारण कुछ क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों द्वारा ऐसी ही अफवाहें उड़ाई जा रही है, उन्हें अत्यधिक डर है कि यदि अगले वर्ष चुनाव हो जाये तो जनादेश उनके खिलाफ होगा। उदाहरण के लिए देखे तो, यदि आप मेघालय से हैं तो आप राज्य के लिए यूडीपी-एचएसपीडीपी गठबंधन (राज्य का क्षेत्रीय गठबंधन) को वोट दे सकते हैं वहीं केंद्र के लिए भाजपा को वोट दे सकते हैं। सिर्फ यही है कि एक के बजाय दो अलग-अलग ईवीएम मशीन पर अलग-अलगवोट डाले जाएंगे।

यदि समकालिक चुनाव को लागू किया जाता है तो इसके लाभ हमें लगभग तत्काल दिखने लगेंगे :

● चुनाव कराने में होने वाले व्यय में काफी राहत मिलेगी। लोकसभा चुनाव में पैसों में काफी व्यय होता है, और लगभग इतने ही खर्च प्रत्येक वर्ष राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान होते हैं। 2012 में उत्तरप्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में हुए विधानसभा चुनाव का खर्च लगभग 1000 करोड़ रुपये था। 2014 के लोकसभा चुनाव का खर्च 8000 करोड़ था। अब यह आपको तय करना है कि समकालिक चुनाव हमारे जेब में पड़ने वाले दबाव को कम करेंगे या नहीं ?

● वर्तमान मानदंड के अनुसार जैसा प्रशासनिक मशीनरी को वर्ष में 3-4 बार चुनाव कराने का बोझ नहीं होगा।

● हमेशा चुनावी दायित्व के अधीन रहने वाली सरकार भी अपने वोट बैंक को सुरक्षित करने के बजाय बेहतर प्रशासन की ओर ध्यान केंद्रित कर सकेगी। राजनेता अपने निर्वाचन क्षेत्र को छोड़कर हमेशा देश के किसी न किसी क्षेत्र में चुनावी प्रचार में लगे होते हैं। यदि सरकार एक वर्ष को चुनावी प्रचार से जोड़ लिया जाए तो एक साथ चुनाव कराने के बाद सभी सरकारों को अच्छा काम करने के लिए ठोस रूप से 4 साल का समय मिलेगा।

● नैतिक आचार संहिता जो सभी दलों और नेताओं को को चुनाव के पहले पालन करना पड़ता है, जिसकी वजह से कई आर्थिक गतिविधियों पर भी प्रतिबंध लग जाता है, वह लगभग 4 साल तक किसी भी सरकार/राजनीतिक दल के लिए लागू नहीं होगा।

● देश के नागरिक निरंतर चुनाव के हो मोड में हो यह जरुरी नहीं है, इसीलिए नागरिकों को मनोवैज्ञानिक राहत देना जरूरी है। इस तरह के अभियान आम तौर पर राजनैतिक ध्रुवीकरण को बढ़ाते हैं।

● केंद्र एवं राज्य सरकारों को अधिक समन्वयित किया जाएगा। राज्यसभा चुनावों में भी समकालिक चुनाव का असर दिखाई देगा। राज्यसभा अधिक संतुलित होगी जिससे संसद के दोनों सदनों में एक साथ काम होंगे।

इसमें उत्पन्न होने वाली कुछ उल्लेखनीय समस्याएं भी हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण और गंभीर बात यह है कि निर्वाचित राज्य सरकारें और यहाँ तक कि केंद्र सरकार वास्तव में अपने कार्यकाल को पूरा कर पाएगी। यदि सरकार अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विश्वास मत हासिल करने में नाकामयाब हो जाती है तो राज्य/राष्ट्र को राज्यपाल/राष्ट्रपति शासन को स्वीकार करना होगा जब तक पुनः चुनाव से किसी पार्टी द्वारा नई सरकार का गठन नहीं कर लिया जाता। और यदि फिर से चुनाव होते हैं तो राज्य और केंद्र सरकार के कार्यकाल बेमेल हो जाएंगे, और फिर अलग-अलग चुनाव के लिए आगे बढ़ेंगे।

इस समकालिक चुनाव की विशाल योजना को सफल बनाने के लिए यदि मोदी सरकार इस तंत्र के साथ आ सकती है तो इन समस्याओं के अलावा आने वाली अन्य समस्याओं से भी निपट सकती है। हमारा लोकतांत्रिक मानक वास्तव में उठेगा और हम एक मजबूत, स्थिर और निश्चित रूप से राजनीतिक रूप से अधिक संतुलित भारत को देखने के लिए जीवित रहेंगें।

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