अगर ये सारे गुण आप में हैं तो आप भी बुद्धिजीवी हैं

बुद्धिजीवी

बुद्धिजीवी! के आवश्यक गुण :

बुद्धिजीवी! बड़ा अजीब सा शब्द है। मेरी तरह पिछले 2-3 सालों में में आपने भी बहुत बार इस शब्द को सुना होगा। मीडिया, सोशल मीडिया, राजनैतिक मंचो, विचार मंचों और अन्य सार्वजनिक स्थलों से बार बार कुछ लोग खुद को और अपने आसपास के लोगो को ‘बुद्धिजीवी’ शब्द से संबोधित करते हुए देखे गए हैं। लेकिन ये बुद्धिजीवी कौन है ? कहाँ से आते हैं ऐसे लोग ? क्या करते हैं ? और कैसे बनते हैं ?

फरवरी 2016 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जब आतंकी अफज़ल गुरु की बरसी का कार्यक्रम आयोजित किया गया था तब वहाँ ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारे लगाये गए थे। तब मीडिया के कुछ समूहों द्वारा उन्हें ‘बुद्धिजीवी’ कहा गया था। ना सिर्फ उन्हें बल्कि देश के जिन जिन लोगों भारत विरोधी कृत्यों का समर्थन किया उन्हें बुद्धिजीवी कहा गया। देशद्रोह के आरोपी और फिर जेल से डाँट खाकर अंतरिम जमानत में रिहा हुए छात्रनेताओं को भी यही कहा गया। तब मुझे कुछ कुछ समझ आने लगा। कुछ ऐसा कि यदि आप अपने देश की संप्रभुता को चुनौती देते हैं, और चुनौती देने वालों की मदद करते हैं तो आपको बुद्धिजीवी की श्रेणी में रखा जा सकता है।

ये तो मेरे लिए शुरआत था लेकिन थोड़ा आश्चर्यजनक था। देश में लगातार कुछ घटनाएं होती गई और मीडिया में लगातार कुछ लोग बुद्धिजीवी बने रहे। पिछले वर्ष जम्मू कश्मीर में हिजबुल का कमांडर आतंकी बुरहान वानी जो कि आतंकी कम अय्याश ज्यादा था, उसे सुरक्षबलों ने मार गिराया। ख़बरों के अनुसार कश्मीर की कई महिलाओं से उसके संबंध थे और महिलाओं के साथ वो शोषण भी करता था। मुझे लगा यह तो आतंकी है, अच्छा हुआ इसे मारा गया। लेकिन तभी अचानक मैंने एक छात्र की राय सुनी, देशद्रोह के आरोपी ‘बुद्धिजीवी’ उमर खालिद ने बुरहान वानी को क्रांतिकारी बताया था। एक मीडियाकर्मी बुद्धिजीवी ने आतंकी को आतंकी ना कहकर ‘हेडमास्टर का बेटा‘ कहा।

तब मुझे समझ आया कि ‘आतंकी‘ को ‘क्रांतिकारी’ कहने वाले बुद्धि जीवी होते हैं। समझने में थोड़ा समय लगा लेकिन मैं काफी कुछ समझ रहा था।

एक रात अचानक खबर आई कि रात 2 बजे कोर्टरूम खोला गया है। पता चला कि देश के कुछ बुद्धिजीवीयों ने आतंकी याकूब मेमन के बचाव के लिए प्रधानमंत्री को खत लिखा था और कुछ वकील आधी रात में कोर्ट खुलवा कर आतंकी की पैरवी कर रहें हैं। और इन्हें देश में ‘बुद्धिजीवी’ कहा जा रहा है। तब मुझे ये भी समझ आया कि सुप्रीम कोर्ट में आतंकी का बचाव करना और आतंकी के लिए आधी रात में कोर्ट खोलना और खुलवाना बुद्धिजीवियों की श्रेणी में आता है।

कुछ समय पहले देश के जाने माने बुद्धिजीवी (उपरोक्त दिए हुए तथ्यों के आधार में बने खाँचे में फिट होने वाले) ने ओलंपिक मैडल दिलाने वाले फोगाट बहने, योगेश्वर दत्त भारत का नाम रौशन करने वाले वीरेंद्र सहवाग और मंझे हुए अभिनेता रणदीप हुड्डा को अनपढ़ और बमुश्किल पढ़ा लिखा कहा था। मुझे थोड़ा अजीब लगा लेकिन तब तक मैं समझ चुका था कि जो देश का नाम बढ़ाएं उन्हें गालियां देने और उनके अपमान करने पर बुद्धिजीवी की पदवी का वजन बढ़ जाता है।

बुद्धिजीवी होने का एक और पैमाना मुझे नज़र आया। इस पैमाने की सबसे ख़ास बात यह थी कि इसमें दो तरह की बाते करनी होती है। जैसे कि एक बुद्धिजीवी कलाकार है, (ट्वीट के बाद उसे बना दिया गया था) उसने कहा कि उसके कुत्ते को दीपावली के दौरान पटाखों से डर लगता है और जानवरों को बचाना चाहिए, फिर एक दिन उसी कलाकार का ट्वीट था कि ‘मटन’ बिरयानी स्वादिष्ट होती है। इसी तरह होली में पानी की बर्बादी होती है, दीपावली में प्रदूषण होता है, रक्षाबंधन/करवाचौथ जैसे त्यौहार पितृसत्तात्मक हैं, लेकिन ईद का मटन स्वादिष्ट होता है, बुरखा/हिजाब महिलाओं को आज़ादी देता है, तीन तलाक़ प्रगतिशील है, बस ऐसे ही विचार चाहिए होते हैं बुद्धिजीवी बनने के लिए।

खुद को बुद्धिजीवी वर्ग कहना इन्हें सम्मानजनक लगता है लेकिन एक बात का आंकलन करने पर यह सामने आता गया कि सेना के लोगो को बलात्कारी कहना, तिरंगे की अवहेलना करना, जन-गण-मन से परहेज करना और एसी रूम में बैठकर पुरे देश के बारे में बातें करना ही इनका एक मकसद है। जिसे ये लोग बखूबी निभाते हैं। जिस तरह मेरे एक दोस्त की मिठाई की दुकान है और एक दोस्त की कपड़े की। मुझे जब भी मिठाई और कपड़े लेने होते हैं मैं इन्ही लोगो के पास जाता हूँ ठीक उसी तरह इनका भी सबकुछ फिक्स है।

4 लोगो का मंच होगा, कभी 3 लोग मिलकर चौथें को बुद्धिजीवी कहेंगे, तो कभी चौथा लेख लिखकर तीनों को बुद्धिजीवी कहेगा, और ये सिलसिला लगातार चलते रहेगा।

मैंने जब पहली बार यह शब्द सुना था तो इसके मतलब को जानने की कोशिश किया था। बुद्धिजीवी का मतलब मुझे मिला ‘जिनके पास बुद्धि हो या जो विभिन्न मसलों पर अपने ज्ञान का इस्तमाल कर अपनी राय रखते हैं’ , इसे पढ़ने के बाद जब मैंने भारत के बुद्धिजीवियों को देखा तो लगा मुझे याद आया कि मैंने तो ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ की जगह ‘भारत माता की जय’ कहा था, मैंने याकूब के लिए माफ़ी नहीं फाँसी ही मांगा था, मेरे लिए भारतीय सेना बलात्कारी नहीं बल्कि शौर्य है और राष्ट्रगान पर खड़े होने के दौरान मैं गर्व महसूस करता हूँ, मतलब मैं इनके हिसाब से कभी बुद्धिजीवी नहीं बन सकता, और मुझे गर्व है कि मैं इनके जैसा बुद्धिजीवी नहीं हूँ।

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