रानी पद्मिनी पर आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए देवदत्त पटनायक को एक महिला का करारा जवाब

देवदत्त पटनायक रानी पद्मिनी

देवदत्त पटनायक जी, मैं यह स्वीकार करते हुए अपनी बात को शुरू करती हूँ  कि मैंने आपके द्वारा लिखी हुई महान पुस्तकों को नहीं पढ़ा है। इसलिए मुझे इन पर टिप्पणी करने से परहेज करना होगा। हालांकि, मैंने आपके ट्वीट्स पढ़े हैं और हाल ही में चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी के बारे में किए गए ट्वीट्स ने मुझे आपको यह पत्र लिखने के लिए बाध्य किया है।

आप इस तथ्य से दुखी हैं कि मेवाड़ के लोग और भारत की एक बड़ी जनसंख्या रानी पद्मिनी को एक बहादुर महिला के रूप में महान सम्मान के योग्य मानती है क्योंकि उन्होंने अनादर के बदले जौहर यानी आत्म दाह का चुनाव किया था। एक रानी के प्रति ऐसा सम्मान आपके उदारवादी, प्रगतिशील विचारधारा का हिस्सा लगता है। देवदत्त पटनायक जी, आप मुझे आपके द्वारा फैलाये गए कुछ मिथकों को ध्वंस करने की अनुमति दें।

रानी पद्मिनी महारावल रतन सिंह की पत्नी थीं, जो मेवाड़ के शासक थे, जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ किले को जीतने का फैसला किया था। अब, लोकप्रिय कथाओं ने हमें यह विश्वास दिलाया है कि खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण इसलिए किया था क्योंकि वह “रानी पद्मिनी” को पाना चाहता था। देखिए देवदत्त पटनायक जी, यही वह बात है जहां सभी भ्रम शुरू होते है। क्योंकि आपका भ्रम कि क्यों रानी पद्मनी ने “जीवन का चयन” नहीं किया भी यहीं से उपजा है।

दुर्भाग्यवश देवदत्त पटनायक जी, मध्ययुगीन युद्ध इस तुलना में थोड़े अधिक जटिल थे

चित्तौड़गढ़ केवल एकमात्र किला नहीं है। यह एक अतिविशाल 700 एकड़ का आरक्षित नगर है। यह एक 180 मीटर ऊंची पर्वत चोटी के ऊपर बनाया गया है। हाँ मध्ययुगीन मानकों के अनुसार भी यह बहुत बड़ा है। सातवीं शताब्दी के बाद से ही इस क्षेत्र में किले की कमान मतलब राज्य का शासन था। इस अति विशाल गढ़ तक पहुंचना बहुत मुश्किल था और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके लंबे घेरे का निर्माण आक्रमणकारियों से सामना करते हुए अपनी आत्मरक्षा करने के लिए किया गया है। जलाशयों का जल और भूमिगत जल लगभग एक वर्ष तक 50,000 लोगों को जीवित रख सकता था, भारत के उत्तर-पश्चिमी के सूखे, रेतीले भूभाग को देखते हुए आप कल्पना कर सकते हैं कि गढ़ इतना प्रतिष्ठित क्यों था। हां, चित्तौड़गढ़ का मतलब ही शक्ति है। जिस किसी ने भी इस किले का नियंत्रण किया था यह सम्पूर्ण क्षेत्र उसका हुआ। तो अब आप इसके बारे में परिकल्पना कर सकते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी इसमें इतनी दिलचस्पी क्यों रखता था।

ऐसा लगता है कि श्री भंसाली ने खिलजी को एक दाढ़ी वाले आशिक के रूप में प्रस्तुत करने का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है लेकिन एक सच्चा इतिहासकार ही इसकी सच्चाई के बारे में बताएगा कि वह ऐसा बिलकुल नही था।

वह एक निम्न वर्ग का बर्बर व्यक्ति था जो शिशुओं को उनकी माताओं के सामने मारना पसंद करता था और 20,000 हिंदुओं के कटे हुए सिर से मीनार बनाने की शेखी बघारता था। साथ ही यौन रुख के मामले में वह एक समलैंगिक और बालकामुक के रूप में जाना जाता था। अब अगर यह सर्व शक्तिशाली सुल्तान केवल रानी पद्मिनी की मांग कर रहा था तो क्या आपको नहीं लगता कि उसने उनका अपहरण और तस्करी करने की कोशिश की होगी? देखिए, मैंने आपसे कहा था कि मध्यकालीन युद्ध बॉलीवुड की विकृत स्वच्छंदतावाद की तुलना में अधिक जटिल था।

महारावल रतन सिंह और अलाउद्दीन खिलजी के बीच युद्ध के परिणामस्वरूप चित्तौड़गढ़ की आठ महीने की लंबी घेराबंदी हुई। आखिरकार, वे पूरे सम्मान से लड़ाई लड़े और लड़ते हुए ही महारावल की मृत्यु हो गई।

अब, आपको क्या लगता है कि तब क्या हुआ होगा? मैं इसे और अधिक स्पष्ट करती हूँ। जब एक हमलावर एक अन्य राज्य को से नष्ट करने का इरादा बनाता है, तो वह शासक को मारने के अलावा भी बहुत कुछ करता है। युद्धों को तलवारों और ढालों की तुलना में मनोवैज्ञानिक स्तर पर अधिक लड़ा जाता हैं। देवदत्त पटनायक जी आप क्या सोचते हैं – क्यों आधुनिक राष्ट्र आज भी अपने राष्ट्रप्रमुख-परिवार के सदस्यों की इतनी जमकर रक्षा करते हैं?

अब आप क्या सोचते हैं कि खिलजी ने महाराज और उनके सेनापति एवं अग्रणी योद्धाओं को मारने के बाद क्या किया होगा? हाँ, उसने किले पर कब्जा किया होगा, आपको क्या लगता है कि उसने अपनी लड़ाई में आहत, यात्रा एवं भूख से आक्रांत पैदल सैनिकों को सम्मानित किया होगा? उसने उन्हें गढ़ के निवासियों पर निडर होकर आक्रमण करने का आदेश दिया होगा। वे किसी भी औरत का बलात्कार कर सकते हैं, जिस पर वे अपना हाथ रख दे उसे लूट लेते हैं। देवदत्त पटनायक जी, मध्ययुगीन सेनाएं तो लाशों का भी बलात्कार और उनको अशुद्ध  करने के लिए जानी जाती हैं।

अब उसने यह कैसे सुनिश्चित किया होगा कि कोई भी व्यक्ति उससे आगे का विरोध करने की हिम्मत नहीं करेगा? जवाब स्पष्ट है। कि उसने शाही महिलाओं और बच्चों को बंदी बनाया होगा। उसने यह कैसे सुनिश्चित किया होगा कि मेवाड़ के लोगों की नैतिकता इतनी हद तक टूट गई है कि कोई भी उन पर हमले की हिम्मत नहीं कर सकता जब तक वह वहां रहते है? उसने अपने कैदियों पर अत्याचार करके उदाहरण प्रस्तुत किया होगा।

रानी पद्मिनी एक वीर योद्धा घराने की रानी थी। रूमानियत और सस्ती लोकप्रियता वाले बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं को रानी पद्मिनी को सरल, निडर एवं फैंसी गुड़िया के रूप में चित्रित करके खुद को बेवकूफ न बनाए। रानी पद्मिनी जानती थी कि उनका और किले के अंदर सैकड़ों अन्य स्त्रियों के भाग्य में क्या होगा। उनका बलात्कार किया जायेगा, पहले सुल्तान और उसके सेनापति द्वारा फिर धीरे-धीरे सेना रैंकिंग के धटते क्रम के सैनिकों द्वारा। उन्हें कोड़े मारकर, निर्वस्त्र करके दौड़ाया जायेगा। बच्चों को उनकी माँ के सामने मार दिया जाएगा और यह एक अंतहीन प्रक्रिया है जो कि तब तक चलती रहेगी जब तक सुल्तान यह सुनिश्चित नहीं कर लेता कि एक भी राजपूत विरोध करने और दोबारा खड़ा होने के लिए जीवित नहीं है। जो महिलाएं बचती तो उन्हें सेक्स दासी के रूप में बेच दिया जाता। देवदत्त पटनायक जी सोचिए? जो लोग अपनी रानी और उनके शाही साथियों को प्रताड़ित होते हुए, कोड़े लगाये जाते हुए और हर दिन बलात्कार किये जाते हुए देखते, उनकी मनःस्थिति क्या होती?

रानी पद्मिनी बेहतर जानती थी। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि प्रतिशोध के लिए राजपूत लौ को जलते रहना होगा। वह जानती थीं कि अगर उन्हें ज़िंदा पकड़ लिया गया तो उनके और उनके साथियों के पास दुख, यातना और रोग के अलावा कुछ नहीं बचेगा। वह जानती थी कि उनकी दीवारों पर प्रहार कर रहे लोग, अपनी भयंकर हवस के चलते, मुर्दो को भी नहीं बख्शते थे। वह जानती थी कि उनकी जनता उनके अशुद्ध शरीर को देख नहीं पायेगी। अंत में उनके पास एक ही विकल्प बचा।

हां देवदत्त पटनायक जी, एक विकल्प। एक रानी का विकल्प वह रानी जो देवी की तरह आराध्य होने की हकदार है, उस रानी ने फैसला किया कि जिसने उसके पति और उसके वीर योद्धाओं को मार डाला है, उसे उनके गढ़ की दीवारों के टूटने के बाद बस राख की एक ढेरी ही मिलेगी। उसने फैसला किया कि वह खुद को भ्रष्ट होने और अपमानित करवाने की इजाजत नहीं देगी। उन्होंने फैसला किया कि वह अपने लोगों को नीचा नहीं दिखाएंगी। वह जानती थी कि उनकी जिंदगी सिर्फ खुद की ही नहीं थी, बल्कि मेवाड़ के लोगों की भी थी, जो एक दिन फिर से अपनी प्रिय रानी का बदला लेने के लिए उठेंगे।

देवदत्त पटनायक जी, वह सही साबित भी हुआ क्योंकि खिलजी द्वारा कब्जा करने के बाद भी चित्तौड़गढ़ का नाश नहीं हुआ था। रानी पद्मिनी ने ज्योति को जला दिया था, उसके बाद केवल एक दशक बाद, राजपूत सिसोदिया ने गढ़ पर वापस नियंत्रण कर लिया था। और चित्तौड़गढ़ में राणा संग्राम सिंह, राणा उदय सिंह, राणा कुंभा और कई अन्य महान हिंदू शासक मेवाड़ की महिमा पर अनगिनत ऊंचाइयों को छूते रहे।

देवदत्त पटनायक जी, रानी पद्मिनी ने मौत का चयन नहीं किया। उसने अमरता को चुना।

-एक स्वाभिमानी भारतीय

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