सरल विवेकहीन अज्ञानी साधारण हिंदू

हिंदू इस्लाम

यदि कोई हमारे उपमहाद्वीप के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास को तर्कसंगत तरीके से देखता है, तो उसे यह निष्कर्ष प्राप्त होगा कि विश्व का सबसे पुराना धर्म, हिंदू धर्म, क्षेत्र और अनुयायियों की क्षति के मामले में सबसे अधिक नुकसान उठाने वाला धर्म प्रतीत होता है। वैदिक काल के बाद के समय में सनातन धर्म की विभिन्न शाखाओं में विभाजन की शुरुआत हुई और मध्यकालीन युग ने चरमपंथी इस्लामिक देशों के आतताइयों द्वारा हिंदुओं पर खतरनाक एवं खुले उत्पीड़न का प्रमाण देखा।

आधुनिक समय में इसी कहानी को हिंदू कानून में सुधार और एक तर्कसंगत आरक्षण नीति-रुपी विभाजनकारी नीति से बदल दिया गया है जिससे दलित, ओबीसी जातियों के मुकाबले में ब्राह्मणों और अन्य उच्च जातियों को खड़ा कर दिया गया है। बहादुर नायकों और बुद्धिमानों का निर्माण करने वाला हिंदू धर्म अपनी विलुप्ति के दरवाजे खोलने वाले जयचंदों को भी जनमता रहा है। खुद को चोट पहुंचाने की इस आधुनिक हिंदू प्रवृत्ति ने इसे एक तेजी से गिरने वाला धर्म बना दिया है।

यहां हम भारतीय इतिहास की विभिन्न घटनाओं को सूचीबद्ध कर रहे हैं जो अज्ञानी भारतीय हिंदुओं के उत्पीड़न की कड़वी वास्तविकता की पुष्टि करते हैं।

भारत में इस्लामी आक्रमण

मध्यकालीन युग में इस्लामिक शासकों का केवल एक ही उद्देश्य था, किसी भी कीमत पर इस्लाम का विस्तार। दुर्भाग्य से भारत भी इस विस्तारवादी सोंच का शिकार बना और इस्लामिक आक्रमण का सबसे पहला और प्रत्यक्ष परिणाम हिंदुओं का सामूहिक रूपांतरण था, जिसने धर्मान्तरित होने से मना किया उसका उसके सामने कातिल की तलवार ही दूसरा विकल्प था।

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कम्युनिस्ट और उनके प्रतिष्ठित इतिहासकार इस तथ्य से कितना भी इनकार करें कि मुगल काल और दिल्ली सल्तनत के शासन के दौरान ‘जाजिया कर’ लगाने के अलावा बड़े पैमाने पर धर्मांतरण भी हुए थे।

इस व्यवस्था का एक उल्लेखनीय रूप हिंदू मंदिरों का विनाश और मस्जिदों द्वारा इन संरचनाओं का ‘स्थायी’ प्रतिस्थापन था, इस प्रकार हिंदुओं को इन पवित्र स्थानों से वंचित किया गया, बाबरी मस्जिद उसी का सबसे बड़ा प्रमाण माना है।

धर्मांतरण सूफीवाद के प्रति प्रेम या हिन्दू धर्म में फैले जातिवाद के नतीजे नहीं थे, जैसा कि रोमिला थापर सरीखे इतिहासकार चाहते है कि आप समझें, बल्कि इस्लामी तलवार का नतीजा थे।

यह हिंदुओं के उत्पीड़न के प्रारंभ को चिह्नित करता है, अगली 5 शताब्दियों या इसके आगे भारतीय हिंदू क्रूर राज्य और उनके क्रूर कलाप-क्रियाओं के अभ्यस्त हो गए और पूरी तरह से गैर-प्रतिक्रियाशील बन गए हैं।

विभाजन के बाद जनसांख्यिकी में बदलाव

भारत और पाकिस्तान सांप्रदायिक पद्धतियों पर हुए प्राचीन भारत के दो खंड थे। विभाजन के पाकिस्तानी विवरण के अनुसार, हिंदुओं और गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारत में रहना था और मुसलमानों का पाकिस्तान में रहने का निर्णय किया गया था। लेकिन विभाजन के बाद का युग एक पूरी तरह से अलग कहानी बताता है, जबकि एक बड़ी मुस्लिम जनसंख्या भारत में बनी रही।

अब भारत में मुसलमानों की आबादी 17-18% तक बढ़ी है और भारत में हिंदुओं की संख्या 80% से कम हुई है और वहीं  बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिन्दू लगभग विलुप्त हो गए हैं। बांग्लादेशी मुसलमानों के बड़े पैमाने पर भारतीय राज्यों में अवैध रूप से घुसपैठ के साथ यह पद्धति आगे और बदतर हो रही है जिससे एक स्पष्ट संदेश मिलता है कि हिंदू क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर रहने के लिए बाध्य हैं परन्तु बांग्लादेशी मुस्लिम न केवल ऐसी क्षेत्रीय बाधाओं से मुक्त हैं, बल्कि उनको हिंदुओं के शांतिपूर्ण अस्तित्व में बाधा डालने और उन्हें इस्लाम में धर्मान्तरित करने का अधिकार भी है।

इस प्रकार, भारतीय उपमहाद्वीप पिछले 6 दशकों या इससे अधिक समय से बड़े पैमाने पर जनसांख्यिकीय परिवर्तन से गुजर रहा है। हिंदुओं ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के मामले में केवल क्षेत्रीय कब्जा ही नहीं खोया है, बल्कि उनकी आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा भी खो दिया है, जैसा कि वे पाकिस्तान में लगभग 25% से 1% और बांग्लादेश में 33% से 7% तक कम हो गए हैं।

अल्पसंख्यक तुष्टीकरण

यह भारतीय राजनीति की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता रही है; अल्पसंख्यकों को लिंग न्याय से मुक्त होने का अधिकार दिया गया है, अल्पसंख्यक अधिकारों के रूप में कुछ आरक्षण लाभों के अलावा उनकी स्वयं के शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार दिया गया है, जबकि भारतीय कानून निर्माताओं को ज्ञात कारणों से हिंदुओं को विशेष रूप से इन अधिकारों से वंचित किया गया है। भारतीय हिंदू ही ऐसे हैं जो बहुमत होने की हानियों को सहन करते हैं।

 

निष्कर्ष

सदियों के उत्पीड़न और अप्रत्यक्ष विधायी और कार्यकारी अत्याचार के बाद भी, हिंदुओं में ही एक उप समूह है जो यह साबित करने के लिए बेताब है कि राष्ट्र में हिंदू सबसे अधिक कट्टरपंथी हैं, जबकि वे स्वयं अल्पसंख्यकों के भय में रहते हैं।

यह भी आश्चर्य की बात है कि हिन्दू धर्म में किसी भी धर्मांतरण को स्वयं हिंदुओं द्वारा ही संदिग्ध माना जाता है, जबकि भारत के कुछ अन्य धर्म मानव जाति की सेवा के नाम पे हिदुओं का धर्म करते रहते हैं। भारतीय हिंदू अपने स्वयं के धर्म में आतंकवादियों को ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं और अन्य धर्मों द्वारा दी गई धमकी को अनदेखा कर रहे हैं।

आज की दुर्भाग्यपूर्ण वास्तविकता यह है कि हिंदू धीरे धीरे समाप्त हो रहा है, परंतु हम इस बात से अनभिज्ञ हैं कि हिंदुओं को समाप्त की प्रक्रिया क्रमिक है जो कई सदियों पहले शुरू हुई थी।

संदर्भ:

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https://swarajyamag.com/magazine/great-hypocrisy-of-secular-indian-state-it-controls-only-temples-we-must-take-them-back

https://swarajyamag.com/politics/when-will-they-purge-indian-history-of-political-correctness-and-teach-us-as-it-is

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https://swarajyamag.com/books/whitesplaining-aurangzeb-the-politics-of-atrocity-denial

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http://www.thehindu.com/opinion/lead/pakistans-shrinking-minority-space/article6268754.ece

https://www.hudson.org/research/9781-cleansing-pakistan-of-minorities

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https://www.oneindia.com/india/burdwan-blast-terrorists-plan-greater-bangladesh-merge-west-bengal-1549242.html

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