इन कारणों से बने धूमल मुख्यमंत्री पद के दावेदार

प्रेम कुमार धूमल

भाजपा ने मंगलवार को हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। सोलन जिले के राजगढ़ में एक रैली को संबोधित करते हुए, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने घोषणा की कि भाजपा के अभियान का नेतृत्व दो बार मुख्यमंत्री रह चुके प्रेम कुमार धूमल करेंगे। अमित शाह ने कहा कि धूमल वोटों की गिनती के दिन, 18 दिसंबर के बाद हिमाचल प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री होंगे। इस प्रकार शाह ने शीर्ष पद के लिए पार्टी की पसंद पर अटकलों को समाप्त कर दिया। हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव 9 नवंबर को होने हैं और परिणाम 18 दिसंबर को घोषित किए जाएंगे।

हिमाचल प्रदेश उन गिने चुने राज्यों में से एक है जहां कांग्रेस की सत्ता है। अगर सर्वेक्षणों पर विश्वास किया जाए, तो भाजपा 68 सीटों वाली विधानसभा में करीब 50 सीटें जीत रही है। हिमाचल प्रदेश उन राज्यों में से भी एक है जहाँ तीन दशकों से भाजपा और कांग्रेस ने बारी-बारी से शासन किया है।

प्रेम कुमार धूमल भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और हिमाचल प्रदेश के 12 वें मुख्यमंत्री थे। वह मार्च 1998 से मार्च 2003 तक और फिर 1 जनवरी 2008 से 25 दिसंबर 2012 तक दो बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। वर्तमान में, उन्होंने राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद धारण किया है।

1982 में प्रेम कुमार धूमल भारतीय जनता युवा मोर्चा के उपाध्यक्ष बने। 1984 में उन्हें हमीरपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के उम्मीदवार के रूप में चुना गया, जब हिमाचल प्रदेश विधान सभा के मौजूदा सदस्य जगदेव चंद ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। वह हिमाचल प्रदेश में 1993 से भाजपा के अध्यक्ष रहे और मार्च 1998 में राज्य के मुख्यमंत्री बने।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रेम कुमार धूमल को राज्य में समृद्ध प्रशासनिक अनुभव के साथ विशाल कद के नेता के रूप में सम्मानित किया। उन्होंने ट्वीट किया, “धूमलजी हिमाचल में समृद्ध प्रशासनिक अनुभव के साथ हमारे वरिष्ठ नेताओं में से हैं, वह एक बार फिर एक शानदार मुख्यमंत्री बनेंगे “।

प्रधान मंत्री ने यह भी कहा कि राज्य को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लक्ष्य के साथ उनकी पार्टी का केंद्र-बिंदु “विकास की राजनीति” था।

एक बार फिर से उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, क्योंकि वह 1994 से 2000 तक हिमाचल प्रदेश भाजपा के राज्य प्रभारी थे और बीजेपी के अन्य लोगों की तुलना में वह राज्य की राजनीति को बेहतर समझते हैं। राज्य में अपनी रैलियों में से एक में मोदी ने उल्लेख किया कि हिमाचल प्रदेश को एक ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो कम से कम 10-15 वर्ष तक रह सके।

मुख्यमंत्री पद के लिए कम से कम चार दावेदार थे।

उत्तर-पूर्व के लिए भाजपा के संगठनात्मक सचिव हिमाचल के एक नेता अजय जामवाल जोकि वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक (स्वयंसेवक) हैं, पार्टी के मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे मजबूत दावेदार थे।

अजय जामवाल ने 2014 लोकसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जब उन्हें हिमाचल प्रदेश और पंजाब राज्यों की कमान दी गई थी। दो कारण हैं जो अजय जमवाल के पक्ष में हैं, पहला कि वे आरएसएस पृष्ठभूमि से हैं और दूसरा मोदी-शाह की नये चेहरे की परिभाषा में फिट बैठते हैं। हालांकि अजय जामवाल लोकप्रिय नहीं थे और उन्हें इस पहाड़ी राज्य के स्थापित नेताओं से कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा था।

बीजेपी के राज्य अध्यक्ष सतपाल सट्टी भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल थे लेकिन भाजपा द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में कम रेटिंग के बाद इन्हें पार्टी ने दरकिनार कर दिया था।

कांगड़ा के मजबूत सदस्य शांता कुमार भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों की दौड़ में थे, परन्तु उन्हें बाहर कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने 75 वर्ष की अघोषित उम्र सीमा पार कर चुके हैं।

इन गणनाओं ने भाजपा के पास केवल दो विकल्प छोड़े, जो प्रेम कुमार धूमल और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा हैं। धूमल और नड्डा दोनों ही हिमाचल के निचले क्षेत्रों से हैं, जो हिमाचल के ऊपरी हिस्से की तुलना में ज्यादा से ज्यादा विधानसभा सीटों वाले क्षेत्र है। परन्तु नड्डा बड़े नेता होने के बावजूद प्रसिद्धी में धूमल से उन्नीस हैं।

दूसरी तरफ दो बार मुख्यमंत्री रह चुके प्रेम कुमार धूमल, हिमाचल में व्यापक रूप से प्रसिध्द व्यक्ति हैं। साथ ही उनके पास निर्वाचित विधायकों का भी समर्थन है। इस समय जिनको भी टिकट मिला है उनमें से ज्यादातर लोग उनके भरोसेमन्द हैं।

केन्द्रीय मंत्री जेपी नड्डा को एक सार्वजनिक नेता नहीं माना जाता, पर उन्हें एक संगठनात्मक व्यक्ति होने की प्रसिद्धि प्राप्त है, और यह भूमिका वह आगे आने वाले चुनावों में निभाएंगे। दूसरी तरफ नड्डा मंत्रिमंडल में प्रधान मंत्री मोदी के सबसे अधिक विश्वसनीय मंत्रियों में से एक हैं, जिन्हें प्रधान मंत्री गंवाना नहीं चाहते हैं।

इसी बीच, सत्तारूढ़ कांग्रेस ने घोषणा की थी कि वह राज्य के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के संचालन में चुनाव लड़ेगी, जो दल की अभियान समिति के अध्यक्ष भी हैं। कांग्रेस ने अभियान समिति का प्रमुख नियुक्त करके सिंह को अपने उम्मीदवारों का चयन करने का अधिकार दिया। अब वीरभद्र सिंह ही नहीं बल्कि, उनके पुत्र विक्रमादित्य भी चुनाव लड़ेंगे।

आम तौर पर भाजपा मुख्यमंत्री पद के चेहरे के बिना राज्य चुनाव लड़ती है परन्तु, हिमाचल प्रदेश में चुनाव से सिर्फ 9 दिन पहले ही इसे अपनी इस रणनीति को बदलना पड़ा और विधानसभा में तीन चौथाई बहुमत पाने के लिए धूमल के समृद्ध प्रशासनिक अनुभव का फायदा उठाने की ठानी। 2014 के बाद से कई विधानसभा चुनावों में भाजपा ने एक जैसे कथानक का प्रयोग किया है। उन्होंने महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मणिपुर में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए मुख्यमंत्री पद के उमीदवारों को घोषित नहीं किया। जबकि दिल्ली, गोवा और असम इसके अपवाद थे। दिल्ली में यह आन्तरिक अवरोध को रोकने के लिए था, गोवा और असम में, यह मजबूत नेताओं के व्यक्तित्व पंथ के कारण था। प्रेम कुमार धूमल का नामांकन असम और गोवा की तर्ज पर है।

प्रेम कुमार धूमल प्रमुख रूप से ठाकुर जाति से हैं जो राज्य के 28% मतदाताओं पर नियंत्रण रखते हैं। इस प्रकार शाह ने जाति के संतुलन को अपने पक्ष में मजबूती से रखा है। यह राजनीति में अन्तिम समय में परिवर्तन के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण हो सकता है।

उम्र कारक प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ होने के बावजूद, पार्टी द्वारा हाल में ही किए गए सर्वेक्षणों ने यह भी संकेत दिये हैं कि धूमल राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में सबसे अच्छा विकल्प होंगे। मुख्यमंत्री पद के रूप में उनका मंसूबा पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच उत्साह भरेगा और निश्चित रूप से पार्टी को भारी अंतर के साथ राज्य चुनाव जीतने में मदद मिलेगी।

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