द हेग में भारत के कूटनैतिक प्रहार ने ब्रिटेन की कमर तोड़ दी

ब्रिटेन-भारत

‘करवटें बदलते रहे – सारी रात हम’ – अपनी कब्र में चर्चिल यह हिंदी गाना गाते हुए असुखद करवटें बदल रहे होंगे। अगर वह ब्रिटेन की यह हालत देखने के लिए जीवित होते तो वह खुद ताबूत में घुस कर उसे मजबूती से बंद कर लेते। आखिरकार उनकी भविष्यवाणियों के विपरीत, यहाँ एक भारतीय सरकार है, जो अंतर्राष्ट्रीय वेदी पर ब्रिटेन को ‘झटका’ दे रही है।

स्थापना के बाद से पहली बार, “अंतरराष्ट्रीय न्यायिक अदालत (इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस)” में ग्रेट ब्रिटेन से कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा। चाहे इसे ब्रिटेन के कमजोर प्रभाव या भारत के बढ़ते प्रभाव के रूप में देखें, किसी भी तरह से यह निरंतर गिरते और कमजोर होते हुए साम्राज्य में एक निर्णायक पल को दर्शाता है।

यही कारण है कि द गार्डियन ने, चुनाव को होशियारी से एक अप्रत्यक्ष संदेश में कट्टर प्रतिस्पर्धा का नाम दे दिया साथ ही साथ, ब्रिटेन के विशिष्ट वर्ग के लिए ‘प्रतिष्ठा की हानि’ का भी संकेत दिया और यह भी दर्शाया कि यह अभिजात वर्ग के ब्रिटिश लोगों के लिए यह हार कितना दर्दनाक है। वो अभिमानी के दिन लद गए थे, जब ब्रिटिश बाबू, भारतीय ‘कुली’ को ऊँगली के नीचे रखते थे।

भारतीय उम्मीदवार आईसीजे जस्टिस दलवीर भंडारी को संयुक्त राष्ट्र महासभा में ब्रिटिश उम्मीदवार के ६८ मतों के मुकाबले १२१ मत मिले। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट क्लब यूएनएससी ने सर क्रिस्टोफर ग्रीनवुड का समर्थन किया।

इससे पता चलता है कि कुछ एलीट क्लब वाले विशिष्ट राष्ट्र, मनमाने तरीके से अभी भी अपने दल के एक मेंबर का समर्थन करने के लिए बाध्य थे। ब्रिटेन को ९ वोट मिले जबकि भारत को केवल ५ ही मिले। यद्यपि यह एक स्थापित नियम है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में जीतने वाला उम्मीदवार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा समर्थित होता है, ब्रिटेन ने चुनाव को ‘एक उग्र प्रतियोगिता’ में बदल दिया- लेकिन उन्हें बाद में पता चला कि कि वेस्टमिंस्टर ब्रिज के नीचे से काफी सारा पानी निकल चुका है और भारत असहयोग आंदोलन वाला देश नहीं बल्कि ताक़तवर कूटनीति करने वाला देश बन चुका है, जो बीते समय में अंग्रेजों की ताकत थी। और, ब्रिटेन के आईसीजे के लिए नामांकित, ग्रीनवुड का अतीत ने ब्रिटेन के अहंकार को उजागर करता है- ये वही महानुभाव थे जिन्होंने सद्दाम हुसैन के खिलाफ सेना का इस्तेमाल करने की सलाह दी थी।

पूरी मानवता का प्रतिनिधित्व करने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा के फैसले को पहचानने और उसका सम्मान करने की बजाय, ब्रिटेन संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को एक संयुक्त सम्मेलन को एक खुले मत के लिए मजबूर करना चाहता था। यह उन कई छोटे देशों को मजबूर करने का एक मकसद मात्र था, जहां अँगरेज़ ब्रिटेन का विरोध करने के लिए भविष्य में उन्हें उचित तरीके से दंड दे सकते।

दूसरी तरफ, भारत ने एक नियम का हवाला देते हुए एक संयुक्त सम्मेलन के लिए ब्रिटेन के प्रयासों का उपहास किया था जिसे केवल एक बार प्रयोग किया गया था- और वह भी लगभग एक शताब्दी पहले; ९६ साल होने वाले हैं। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने यूके के प्रयासों पर फटकार लगाई और इसे संयुक्त राष्ट्र का एक शताब्दी पीछे लौटने वाला प्रयास कहा, जबकि संयुक्त राष्ट्र अपने आप को २१ वीं सदी में उन्नयन (अपग्रेड) करने का प्रयास कर रहा था।

तथ्य यह है कि यूके ने अंततः अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली, यह केवल यह साबित करता है कि हारने से अच्छा हार मानना होता है। और वैसे भी ब्रिटेन , भारत का विरोध नहीं कर सकता है, क्योंकि ब्रेक्जिट के बाद भारत ब्रिटेन का एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार होगा।

ब्रिटेन ने शान्ति प्रस्ताव की पेशकश की और खुशी जाहिर की कि उसका मित्र देश भारत उसकी जगह आईसीजे में जगह दे रहा है।

यह दूसरी बार है कि ब्रिटेन को हाल के महीनों में हार की स्थिति का सामना करना पड़ा। इस साल जून में, मॉरीशस में ब्रिटेन को ९४-१५ से पराजित किया गया था जो प्रस्तावित समाधान को चागोस द्वीप समूह के आईसीजे के लिए संदर्भित करता है। उस प्रकरण में यह देखा गया था कि भूतपूर्व यूरोपीय संघ अब ब्रिटेन का समर्थन, चागोस द्वीप जैसे दूरस्थ द्वीप के लिए नहीं करेगा।

नरेंद्र मोदी ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और अधिकारियों की टीम को न्यायमूर्ति भंडारी के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के लिए “पुन: चुनाव” के लिए बधाई दी, वैसे सबसे ज्यादा दुखी पाकिस्तान होगा। अब उन्हें कुलभूषण जाधव के प्रकरण को अंतरराष्ट्रीय न्यायपीठ में समझाना है, जिसमें एक भारतीय वर्तमान में मौजूद है।

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