मोदी लहर या राहुल तरंग? मत-प्रतिशत से सीट का अनुमान लगाने पर हिमाचल व गुजरात की स्थिति साफ़ है

भाजपा कांग्रेस हिमाचल गुजरात

हिमाचल प्रदेश और गुजरात में राज्य विधानसभा चुनावों  का समय जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है, वैसे-वैसे इस सर्दी के मौसम में भी राजनीतिक गतिविधियाँ निरन्तर गर्मा रही है। हिमाचल प्रदेश और गुजरात, दोनों राज्य चुनावी मापदंड के विषय में एक-दुसरे से काफी मिलते-जुलते हैं, यहाँ कोई भी तीसरा मजबूत राजनीतिक मोर्चा नहीं है, यहाँ केवल भाजपा और कांग्रेस के मध्य चुनावी संग्राम है। जैसे-जैसे चुनावी प्रक्रियाएं तीव्र होंगी और आरोप प्रत्यारोप का दौर बढेगा, मेरा विश्लेषण मत प्रतिशत से चुनावी सीटों के रूपांतरण से सम्बन्धित है। यह पद्धति  इन प्रदेशों में सर्वाधिक उचित है क्योंकि इसमें भारत के दो प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच एक सीधी टक्कर होने वाली है।

मैं मोदी लहर (2009 की तुलना में 2014 के आम चुनाव में दलों के लिए मत प्रतिशत में वृद्धि या कमी) और अन्य प्रचलित सामाजिक और आर्थिक कारणों को आधारित करके इन चुनावों के लिए मत-प्रतिशत का एक पूर्वानुमान लगा रहा हूं । अनुमानित मत-प्रतिशत प्राप्त करने के लिए, इस पद्धति  के द्वारा अनुमानित मत-प्रतिशत रूपांतरण को औसत अनुपात के आधार पर से गुणा किया जाता है। मत-प्रतिशत से सम्बन्धित चुनाव परिणामों की जानकारी, भारत के चुनाव आयोग से ली गयी है और गुजरात राज्य की जनसंख्या की जानकारी, भारतीय जनगणना 2011 के आंकड़ों से ली गयी है।

हिमाचल प्रदेश:

अभी तक हिमाचल प्रदेश में 1990 से लेकर 2012 तक छह विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। इस विश्लेषण को 1990 तक सीमित किया गया है, क्योकि इससे पहले भाजपा अस्तित्व में नही थी, 1980 में, भाजपा पार्टी की स्थापना की गई और 1989 के आम चुनाव में भाजपा एक राष्ट्रीय शक्ति के रुप में उभर कर सामने आई  और इसके पश्चात यह सभी राजनैतिक पार्टियों के लिए एक शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी राजनैतिक पार्टी बन गयी। यहाँ सीट से मतदान शेयर अनुपात के दो स्पष्ट स्वरुप हैं । जिसमें पहला यह है कि, जब कभी भी कोई दो पार्टियाँ 40% मत-प्रतिशत की हिस्सेदारी के आसपास हों, तो उन दोनों पार्टियों के लिए रूपांतरण का अनुपात बहुत करीब हो जाता है जैसे कि 2012 और 1998 के चुनावों में देखा गया था, जिसमें नाम मात्र (पहली पार्टी के लिए 0.8 और दूसरी पार्टी के लिए 0.7) का अन्तर था। इसका दूसरा स्वरुप यह है कि जब कभी मत-प्रतिशत की हिस्सेदारी में अंतर थोड़ा अधिक हो जाता है, तो प्रमुख पार्टी और प्रतिद्वंद्वी पार्टी के मध्य रूपांतरण अनुपात बेहद बढ जाता है, जैसे कि 1993 के एक चुनाव में हुआ था, जिसमें  (अग्रणी पक्ष के लिए 1.1 और हारे हुए पक्ष के लिए 0.2) का बड़ा अन्तर देखने को मिला था। (इन दोनों दलों कांग्रेस और भाजपा के बीच पहले स्वरुप के मामले में अंतर केवल 4% मत-प्रतिशत की हिस्सेदारी का था और दूसरे स्वरुप के मामले में अधिक से अधिक अंतर 5% का था, जबकि (1993 के एक चुनाव में आश्चर्यजनक रुप से एक बहुत बड़ा 13%) का अन्तर देखने को मिला।

जमीनी स्थिति के कारण, इस बार स्वरुप भिन्न होने की प्रबल संभावना है । दूसरे पैटर्न के लिए रूपांतरण के अंतर्गत आने वाले वर्षों की औसत गणना की जाती है। पार्टियों (भाजपा या कांग्रेस) के स्वयं के बावजूद प्रमुख और पीछे रहने वाली पार्टियों के रूपांतरण के अनुपात को एक साथ जोड़ा जाता है। इस बार हिमाचल प्रदेश के चुनाव में, भाजपा को एक प्रमुख पार्टी होने की उम्मीद की जा रही है, प्रमुख पार्टी रूपांतरण अनुपात का औसत इसके लिए उत्तरदायी होगा, जो 1 है और इसी प्रकार कांग्रेस के लिए है (पीछे रहने वाली पार्टी का रूपांतरण अनुपात 0.4 है)। हालांकि वामपंथी दलों और बसपा ने इन वर्षों में होने वाले चुनावों में अपना भाग्य आजमाया लेकिन 2007 में होने वाले चुनाव जिसमें बसपा 7 प्रतिशत वोट पाकर 1 सीट जीतने में सफल रही थी, के अलावा किसी अन्य चुनावों में यह दल अपनी ताकत अधिक नहीं दिखा पाए।

2009 में होने वाले चुनावों के मुकाबले 2014 के आम चुनाव में भाजपा ने 4.3 प्रतिशत अंक की बढ़त दर्ज कराई थी। भाजपा की इस बढ़त का श्रेय मैं मोदी लहर को देना चाहूँगा । बीजेपी के पक्ष में बढ़त के कारण 83 साल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ  लगे भ्रष्टाचार के आरोप और  उनके खिलाफ 5 साल के कार्यकाल का विरोध हैं। यह सभी कारक भाजपा के लिए लाभ को बढ़ाते हैं और 4.3 अंकों की वृद्धि भी इसी ओर संकेत करती है I 2009 में हिमाचल प्रदेश में होने वाले चुनाव की तुलना में 2014 के सामान्य चुनाव में कांग्रेस को 4.5 प्रतिशत वोट शेयर का नुकसान हुआ था। 2012 की तुलना में 2017 हिमाचल प्रदेश सामान्य विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट साझे में 8.6 अंको की वृद्धि हुई है और कांग्रेस के वोट साझे में 4.5 अंकों का नुकसान हुआ है।

हिमाचल प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के लिए वोट साझेदारी क्रमशः 47 प्रतिशत और 38.3 प्रतिशत की भविष्यवाणी की जा सकती है, जो क्रमशः 49 और 14 सीटों में परवर्तित हो सकती है

 गुजरातः

इसमें 1990 से 2012 की अवधि का विश्लेषण किया गया है। 1990 के अलावा, सभी 5 विधानसभा चुनावों में भाजपा के वोट की साझेदारी कांग्रेस से 10 अंक ऊपर थी। यह प्रवृत्ति भाजपा के पक्ष में बहुत सुसंगत रही है। जैसा कि पहले बताया गया है, प्रमुख और पीछे रहने वाले दलों के रूपांतरण के अनुपात को एक साथ जोड़ दिया गया है। गुजरात के मामले में, सभी 6 चुनावों के लिए, भाजपा कांग्रेस के सापेक्ष हर चुनाव में एक बिंदु रूपांतरण अनुपात के समग्र बढ़त के साथ अग्रणी पार्टी थी। प्रभावी रूप से, कई वर्षों में यह भाजपा और कांग्रेस के रूपांतरण का औसत अनुपात है। लक्षित वर्ष 2017 में भाजपा और कांग्रेस हेतु सीट रूपांतरण के लिए वोट साझे का अनुपात क्रमशः 2.5 और 1.5 है।  अब 2017 में होने वाले चुनाव में दलों के लिए वोट साझे की भविष्यवाणी करना और ऊपर दिए गए आँकड़ों और अनुपातों का उपयोग करना है, जिससे क्रमिक रूप से सीटें प्राप्त की जा सकती हैं।

दो महत्वपूर्ण कारक हैं जो चुनाव परिणाम को प्रभावित करेंगे। और वह हैं राज्य सरकार के खिलाफ पाटीदारों का विरोध और मोदी लहर (गुजराती स्वाभिमान – गुजरात का एक सामान्य पुत्र भारत का प्रधानमंत्री है)। 2009 में होने वाले चुनाव की तुलना में 2014 के सामान्य चुनाव में भाजपा के लिए वोट साझेदारी में 13.6 अंकों की वृद्धि हुई थी जबकि कांग्रेस को 9.9 अंकों के वोट शेयर का घाटा हुआ था। जैसा कि ऊपर वर्णित किया गया है, भाजपा की वोट साझेदारी में वृद्धि को मोदी लहर के रूप में वर्गीकृत किया गया है। गुजरात के मामले में सिर्फ इतना अंतर है कि मोदी का चेहरा गुजरात में नया नहीं है। 2012 में होने वाले चुनाव में वह भाजपा उम्मीदवार थे, इसलिए 2012 के चुनाव से वोट साझेदारी में 13.6 अंकों के बराबर वृद्धि नहीं होगी। इस प्रभाव को 50 प्रतिशत तक घटा दिया गया है। प्रभावी रूप से, मोदी लहर 2012 के विधानसभा चुनाव के भाजपा वोट हिस्से में 6.8 अंकों की वृद्धि कर देगी।

बिजनेस लाइन की व्याख्या के अनुसार, पाटीदार राज्य की कुल जनसंख्या का 15 प्रतिशत हिस्सा हैं। पाटीदारों का अधिकांश भाग दो दशक से भाजपा का विश्वसनीय मतदाता रहा है। इस समुदाय ने 2015 से आरक्षण के लिए विरोध करना शुरू किया था उसके बाद सरकार के कार्यों ने उन्हें नाराज किया है। बहुत लंबे समय से भाजपा उनको शांत कराने की कोशिश कर रही है, लेकिन उनके बीच का एक हिस्सा भी सत्तारूढ़ दल से बहुत निराश है। उम्मीद की जा रही है कि हार्दिक पटेल की अध्यक्षता वाली यह सीट कांग्रेस के पक्ष में भाजपा के खिलाफ वोट करेगी। मैं इस हिस्से को कुल आबादी का 25 प्रतिशत हिस्सा मानता हूँ। गुजरात में कुल आबादी का 63 प्रतिशत हिस्सा मतदाता है। पाटीदारों के लिए मतदाताओं का एक ही अनुपात माना जाता है। आँकलन से पता चलता है कि यह समुदाय वोट के 2.4 प्रतिशत हिस्से का साझा करता है।

मेरा मानना है कि भले ही इस समुदाय ने परंपरागत रूप से अतीत में भाजपा को वोट किया है लेकिन अब यह कांग्रेस को वोट करेगा। भाजपा के लिए वोट साझे में होने वाली शुद्ध वृद्धि 4.4 अंक है और इसी प्रकार कांग्रेस के लिए वोट की साझेदारी में होने वाली कमी 7.6 अंक है। दो अन्य नेता अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी भी कांग्रेस को समर्थन दे रहे हैं लेकिन उनके पास इसके लिए कोई ठोस कारण नहीं है, इसलिए यह माना जा रहा है कि वे महत्वपर्ण रूप चुनावी स्थिति को बदलने में सक्षम नहीं होंगे।

गुजरात में भाजपा और कांग्रेस के लिए भविष्यवाणी की यह है कि ये क्रमशः 52.3 प्रतिशत और 31.4 प्रतिशत वोट की हिस्सेदारी करेगें, जो क्रमशः 130 और 47 सीटें प्राप्त करेंगे।

 

सारणी 1 -विधानसभा चुनाव 2017 में भाजपा और कांग्रेस के लिए अनुमानित वोट साझेदारी और सीटों की संख्या
भाजपा कांग्रेस
वोट साझेदारी (%) सीटों की संख्या वोट साझेदारी वोट साझेदारी (%)
हिमाचल प्रदेश 47.0 49 38.3 14
गुजरात 52.3 13. 31.4 47
स्त्रोत – भारत निर्वाचन आयोग, जनगणना 2017

 

यह दर्शाता है कि इस समय भाजपा एक बहुत ही शानदार नया वर्ष प्राप्त करने जा रही है। कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव से शुरू होने वाला यह साल भाजपा के लिए बहुत ही शानदार और उत्साहजनक रहा है। 2019 में होने वाले चुनाव के लिए केवल डेढ़ साल बचा है, इसलिए इन आगामी चुनावों में सकारात्मक परिणाम भाजपा की तैयारी में एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करेगा, जबकि लोकसभा चुनाव से पहले इन हारों का सामना करना कांग्रेस के लिए सरल नहीं होगा।

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