एक चुनाव जीतने के लिए कितना गिर सकते हैं? कांग्रेस ने नया रिकॉर्ड बनाया है

राहुल गाँधी बरखा शुक्ला सिंह कांग्रेस गुजरात

कांग्रेस को गुजरात में एक निराशाजनक स्थिति का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि गुजरात में भाजपा के विकास के एजेंडे के विरोध में, कांग्रेस के पास कोई जवाबी एजेंडा नहीं है और कांग्रेस सीधी तरह से भाजपा से मुकाबला करने में असमर्थ है।

इसलिए कांग्रेस ने गुजरात में चुनाव जीतने के लिए सांप्रदायिक विवाद पैदा करने की एक भयावह रणनीति तैयार की है। पार्टी ने गुजरात में चुनावी लाभ प्राप्त करने के लिए पाटीदार आंदोलन का फायदा उठाते हुए, एक खतरनाक रणनीति बनाई है और यह रणनीति न केवल गुजरात में बल्कि पूरे देश में लंबे समय तक विभाजनकारी प्रभाव डाल सकती है।

कांग्रेस ने आरक्षण के लिए पाटीदार आंदोलन की शुरुआत के बाद से ही इस मुद्दे पर टकराव की राजनीति उत्पन्न करने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, दोनों रूपों से पाटीदार समुदाय को उकसाना प्रारम्भ कर दिया था। आरक्षण के लिए पाटीदार समुदाय द्वारा की गई मांगों को पूरा करने में आ रही संवैधानिक कठिनाइयों के बावजूद, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने उनकी मांगों को पूरा करने के लिए ऐसे वादे किए, जो संविधान को दरकिनार किए बिना पूरे नहीं किए जा सकते हैं।

कांग्रेस द्वारा गुजरात में विकास के किसी भी मुद्दे पर ध्यान देने की बजाय पाटीदार आरक्षण मुद्दे को असंगत रूप से अधिक महत्व दिया गया। गुजरात राज्य के कई मतदाता सोचते हैं कि अगर पाटीदार समुदाय, जो कि गुजरात की जनसंख्या का केवल १६ प्रतिशत हिस्सा है, को खुश करने के लिए पार्टी ८४ प्रतिशत गुजरातियों के हितों की उपेक्षा कर रही है। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए ऐसा लगता है कि गुजरात की सत्ता में कांग्रेस के आगमन की संभावनाएं काफी कम हैं लेकिन यदि कांग्रेस द्वारा पाटीदारों को किए गए आरक्षण के वादे के अनुसार लाभ प्रदान करने का प्रयास किया जाता है तो इससे गुजरात के अन्य समुदायों में अत्यधिक असंतोष व्याप्त हो जाएगा। जिससे राज्य में सामाजिक भेदभाव और रोष की खाईं और अधिक गहरी हो जाएगी।

कांग्रेस ने अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित समुदाय के कुछ वर्गों के साथ भी इसी तरह की पहल की है। इन समुदायों के कुछ युवा सदस्यों को एक प्रतिनिधि के रूप में उपयोग करके पार्टी ने इन समुदायों से संबंधित मुद्दों को राजनीतिक रंग में रंगने का प्रयास किया है। कांग्रेस ने इन युवा नेताओं की उम्मीद और भरोसे को कायम रखा है कि ये सदस्य अपने समुदाय के विकास और कल्याण की तुलना में राजनीतिक लाभ लेने में अधिक रुचि रखते हैं। गैर-पक्षपाती आंदोलनों के बावजूद भी कांग्रेस और इन युवा नेताओं के मध्य होने वाली गुपचुप बैठकें यह सुझाव दे रही हैं कि अभी भी कुछ और होना बाकी है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो वह इन समुदायों के हित और कल्याण के लिए क्या करेगी। हालांकि, चुनाव अभियान के दौरान पार्टी के द्वारा किए गए अधूरे वादे गुजरात के लिए सामाजिक और आर्थिक रूप से हानिकारक साबित हो सकते हैं।

लेकिन इसकी बहुत अधिक संभावना है कि विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस द्वारा राजनीति में अपनी पार्टी की पुन: वापसी के लिए कई असाधारण प्रयास किए सकते हैं  और इन प्रयासों के फलस्वरुप कांग्रेस पार्टी की ओर से कई बड़े-बड़े वादे भी किए जा रहे हैं, जो मात्र एक दिखावा है। लेकिन कांग्रेसीयों द्वारा बड़े-बड़े वादे करना कोई नई या बड़ी बात नहीं है। कांग्रेस ने अपनी पार्टी को राजनीति में बनाए रखने के लिए और देश भर में अल्पकालिक चुनावी लाभ प्राप्त करने के लिए समय-समय पर विभिन्न विभाजनकारी मुद्दों का सहारा लिया है। तुष्टिकरण की राजनीति के एक बड़े उदाहरण के तौर पर कांग्रेस पार्टी ने गरीब मुसलमानों को सशक्त बनाने की बजाय, २०१२ के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान मुसलमानों को राजनीतिक रूप से आरक्षण प्रदान करने का विचार प्रस्तुत किया। इसी प्रकार २००८ में कांग्रेस ने चुनावी लाभ प्राप्त करने के लिए राजस्थान में हो रहे गुर्जर आंदोलन के दौरान सामाजिक समुदायों का भरपूर शोषण किया और २०१६ में पार्टी की एक गलत रणनीति के तहत, हरियाणा में हो रहे जाट आंदोलन को कई गंभीर कानूनी समस्याओं का भी सामना करना पड़ा। महाराष्ट्र के वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने खुले तौर पर महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलनों का आयोजन और समर्थन किया है। कर्नाटक चुनाव के दौरान, पार्टी ने लिंगायत समुदाय की मांगों को और अधिक भड़काने का कार्य किया है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि पार्टी द्वारा अक्सर इन मुद्दों का इस्तेमाल अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता रहा है। ऐसा लगता है कि चुनाव के दौरान ही कांग्रेस ऐसी विभाजनकारी रणनीतियां तैयार करती है।

गुजरात में कांग्रेसी जाति आधारित वोट बैंक बनाने के अपने इन गलत प्रयासों के कारण अब कई गंभीर सवालों के घेरे में आ गई है और अगर कांग्रेस गुजरात चुनाव में जीत हासिल कर भी लेती है, तो क्या पार्टी एक जिम्मेदार सरकार की तरह शासन करने में सफलता प्राप्त कर सकेगी।

गुजरात में रहने वाले पाटीदारों और कुछ अन्य समुदाय के लोगों ने कांग्रेस के पक्ष में वोट करने का फैसला किया है और ऐसी संभावना जताई जा रही है कि चुनाव के बाद उन लोगों को निराशा का सामना करना पड़ेगा। यदि पार्टी के इतिहास को देखा जाए तो कांग्रेस ने चुनावों के बाद कभी भी अपने द्वारा किए वादों को पूरा करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में हुए चुनावों से यह पता चलता है कि मतदाताओं के लिए विकास का एजेंडा सबसे महत्वपूर्ण कारक बन गया है। डेवलपमेंट को छोड़कर कांग्रेस पार्टी द्वारा चलाये जा रहे विभाजनकारी एजेंडा के झांसे में आने वाले लोगों का प्रतिशत काफी कम है, जिसकी वज़ह से कांग्रेस के सत्ता में आने की संभावनाएं भी बहुत कम हैं।

लेखक:

संजय त्रिवेदी (पत्रकार व स्तंभकार, गुजरात समाचार, मिड डे और सन्देश)

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