क्या ये सच में मोदी सरकार का पहला घोटाला है? क्या राहुल ने मोदीजी के कवच को भेद दिया?

राफेल विमान

युद्ध के लिए तैयार रहना, शांति बनाए रखने का सबसे कारगर साधनों में से एक है। – जॉर्ज वॉशिंगटन

डबल फ्रंट युद्ध परिदृश्य में मिशन को संचालित करने के लिए भारतीय वायु सेना को ४२ स्क्वाड्रनों की आवश्यकता है। फिलहाल वर्तमान समय में भारतीय वायु सेना के पास ३२ स्क्वाड्रन हैं जो इस दशक की सबसे कम संख्या हैं। २०१९-२०२० तक १४ स्क्वाड्रनों की सेवानिवृत्ति (जो मुख्य रूप से विंटेज मिग २१ एस और मिग २७ है) के साथ संख्याओं के और नीचे जाने की उम्मीद है।

स्रोत

रक्षा प्रबन्ध एक कठिन और समय लेने वाली प्रक्रिया है। यह इस तथ्य के साथ समझा जा सकता है कि वर्तमान (१४-१५ वर्ष) में जो कदम उठाए जा रहे हैं उनका परिणाम २०३२ से पहले नहीं मिलेगा।

तो, भारतीय वायु सेना के पास सिर्फ ३२ स्क्वाड्रोंन क्यों है?

इसके पीछे तीन कारण हैं:

हां, ए.के. एंटनी, जो अपने दुविधा भरे रवैया के कारण, रक्षा वर्ग में “सेंट एंटनी” और “स्लो डेथ एंटनी” के रूप में भी जाने जाते थे।  भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने २४ अक्तूबर २००६ को रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था और 7 वर्ष और 5 महीने तक यह दुर्भाग्यपूर्ण समय चलता रहा, तब तक जब तक अरुण जेटली ने कार्यालय नहीं संभाल लिया। तब से यह विभाग आग उगल रहा है।

वर्तमान शासन द्वारा उठाए गए कुछ कदम इस प्रकार हैं:

१. संयुक्त उपक्रम के साथ पहले लड़ाकू SU३० एमकेआई की सेवा में बढ़ोतरी

२. मिग २९ और मिराज २००० का नवीनीकरण

३. ३६ रफाल क्रम में है और अतिरिक्त लड़ाकू विमानों के लिए सौदा प्रक्रिया में है

४. १२३ एलसीए के सौदे प्रक्रिया में(४० एमके १ और ८३ एमके १ ए संस्करण)

५.  सामरिक भागीदारी मॉडल – जेएएस ३९ ग्रिपन ई या एफ १६ ब्लॉक ७२ ।

६. एएमसीए संकल्पना (:१ आकार के ३ डी मॉडल) का परीक्षण हैदराबाद में

७. एफजीएफए सौदे का पुनः प्रयास

स्रोत

डसॉल्ट राफेल विमान

फिलहाल वर्तमान समय में दुनिया के सबसे घातक लड़ाकू जेट विमानों में एफ २२ रैप्टर, एफ35 लाइटनिंग II, यूरो लड़ाकू तूफान, डसॉल्ट राफेल और एसयू ३५ शामिल है। एमएमआरसीए सौदे की असफलता के बाद भारत ने ३६ रफाल को खरीदने के लिए फ्रांस के साथ सौदा शुरू किया है।

डसॉल्ट राफेल विमान फिर से खबरों में हैं लेकिन इस बार यह राहुल गांधी संस्करण 2.0 के कारण है, जिन्होंने कहा, “आप मुझसे बहुत सारे सवाल पूछते हैं और मैं उन सभी का जवाब देता हूं … आप राफेल समझौते पर प्रधानमंत्री मोदी से सवाल क्यों नहीं करते हैं?”

कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने फ्रांस से ३६ राफेल विमान के लिए ५८००० करोड़ रुपये (७.८ अरब यूरो) के सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं, जो करदाताओं के पैसे के “भयंकर नुकसान” का कारण है। विपक्षी पार्टी ने आरोप लगाया है कि पिछली यूपीए सरकार ने २०१२ में फ्रांस के साथ बातचीत में जो कीमत तय की थी, अब उन्हीं विमानों की कीमतें तय कीमत से तीन गुना अधिक है।

फ़्रांस के कांग्रेस के आरोपों को नाकारा

फ्रांस ने कांग्रेस पार्टी द्वारा लगाए गए आरोपों को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया और रिलायंस डिफेंस ने कांग्रेस पर मुकदमा तक करने की धमकी दे डाली है।

राफेल सौदे को समझने के लिए पहले एमएमआरसीए निविदा को समझते हैं और इसके बाद इसकी तुलना एक और बड़ी खरीद (एस यू ३० एमकेआई) के साथ करके –का पूरे सौदे का विश्लेषण करते हैं।

मध्यम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) प्रतियोगिता, जिसे एमआरसीए निविदा के रूप में भी जाना जाता है, यह १२६ मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट विमानों को भारतीय वायु सेना (आईएएफ) को देने की एक प्रतियोगिता थी। रक्षा मंत्रालय ने इन विमानों की खरीद के लिए ५५००० करोड़ रुपये (८.६ अरब अमेरिकी डॉलर) आवंटित किए थे, जिससे यह भारत का सबसे बड़ा रक्षा सौदा बन गया। एमआरसीए निविदा अपने भावी, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट और सुखोई एसयू – ३० एमकेआई के बीच हवाई श्रेष्ठता के अंतर को कम करने का विचार करके शुरू किया गया था।

एलसीए और भारी एसयू ३० के बीच अंतर को खत्म करने का विचार ३० साल पहले किया गया था लेकिन २०१६ तक यह आगे नहीं बढ़ी। ३१ जनवरी २०१२ को यह घोषणा की गई थी कि काम लाइफ-साइकिल कॉस्ट के कारण डसॉल्ट राफाल ने प्रतियोगिता जीती। सौदा २०१४ में २८-३० अरब अमरीकी डॉलर की कीमत पर तय किया गया था।

डसॉल्ट राफेल विमान सौदा क्यों खत्म हो गया था?

डसोल्ट और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच कुल श्रमशक्ति की लागत का बड़ा अंतर था। एचएएल ने कथित तौर पर कहा था कि भारत में जनशक्ति की लागत लगभग तीन गुना होगी और इसलिए भारत में यहां राफेल जेट विमानों के निर्माण के लिए अधिक पैसा खर्च होगा।

राफेल की लागत, आईएएफ के प्राथमिक वर्कहार्स, सुखोई ३० एमकेआई के मुकाबले बढ़ाकर दुगनी दिखाई गयी थी।

डसोल्ट ने १०८ एचएएल निर्मित राफेल के लिए जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया, चूंकि विमान के जटिल निर्माण और प्रौद्योगिकी स्थानान्तरण को समायोजित करने के लिए उनको एचएएल की क्षमता पर संदेह था।

राफेल डील की प्रतिरूप एसयू ३० एमकेआई डील

उम्मीद की जाती है कि वायुसेना २०१९ तक २७२+ एसयू ३० एमकेआई विमानों को उनकी ७५ प्रतिशत की उपलब्धता के साथ प्राप्त कर लेगी। वर्तमान में यह उपलब्धता ५० प्रतिशत है और पिछले साल की वार्ता के समझौते के अनुसाए ७५ प्रतिशत हो जाएगी। अतिरिक्त २५ प्रतिशत उपलब्धता को मोटे तौर पर २५ प्रतिशत अधिक इकाइयों के रूप में रूप में देखा जा सकता है।

उसी बिन्दु के आधार पर अब इन ३६ राफेल के सौदे को समझने का प्रयास करते हैं

कांग्रेस ने यह दावा किया कि जिस कीमत पर राफेल लड़ाकू विमानों को खरीदा गया, वह कीमत २०१२ में, यूपीए सरकार के साथ तय की गयी कीमतों से तीन गुना अधिक थी, लेकिन कांग्रेस को, इस सवाल का जवाब सबसे पहले देना चाहिए कि क्यों कांग्रेस को, इस सौदे को पूरा करने के लिए १२ साल तक इंतजार करना पड़ा? उपकरणों की कीमत हर साल निरन्तर बढ़ती जा रही है और ऐसे में १२ साल का समय एक लंबा समय माना जा सकता है।

इस सवाल का जवाब मूल्य निर्धारण में निहित है जब तक मोदी सरकार इस समझौते के संबंध में कोई भी निर्णय कर पाती तब तक काफी देर हो चुकी थी और भारत को मिग २९ और मिराज २००० के अपग्रेड के साथ-साथ, कम से कम दो स्क्वाड्रनों की भी आवश्यकता थी। एचएएल पहले से ही अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर रहा है, भारत में तेजस की उत्पादन दर में निरन्तर वृद्धि देखी जा सकती है, लेकिन निर्यात के किसी मांग के बिना आर्थिक रूप से यह एक व्यवहार्य मॉडल नहीं माना जा सकता।

इसलिए एक “सामरिक भागीदारी मॉडल” तैयार किया गया और जिसमें ४९% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी गई। इन जॉइंट वेंचर को  “सामरिक भागीदारी मॉडल” के अनुसार स्थापित किया गया

टाटा – लॉकहिड मार्टिन

रिलायंस – डेसॉल्ट

अडानी – एसएएबी

जीएसआरई, महिंद्रा, एल एंड टी इत्यादि।

डसॉल्ट राफेल विमान कीमत का विश्लेषण –

एमएमआरसीए के दौरान ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि विमानों के सौदे की कीमत लगभग ७ अरब (२००७) होगी, लेकिन २०१३-१४ में इस सौदे में लगभग २८-३० बिलियन अमरीकी डॉलर खर्च हो गये। इसलिए इस सौदे की कीमत पहले से कीमत से चार गुना अधिक बढ गई, क्योंकि श्री ए के एंटोनी समाज में अपनी एक शांतिपूर्ण छवि बनाए रखने के लिए इस रफाल सौदा को ठन्डे बस्ते में डाल दिया। इससे पहले कि हम मौजूदा सौदे का विश्लेषण करें, हम अन्य दो सौदों पर भी विचार करना चाहिए:

१. २०१६ में, फ्रांस और कतर ने २४ डसॉल्ट राफेल लड़ाकू विमानों के लिए सौदा पूरा किया था। लड़ाकू विमानों के सौदे में, जिसमें एमबीडीए मिसाइल, ३६ पायलटों और १०० मैकेनिकों का प्रशिक्षण शामिल हैं, पहले ६.३ अरब यूरो (६.९ अरब अमरीकी डॉलर) निर्धारित किया गया था; हालांकि दो हफ्ते पहले यह घोषित किया गया कि सौदा अब ६.७ अरब यूरो (७.५ बिलियन अमेरिकी डालर) के मूल्य का है

२. फरवरी २०१६ में मिस्र ने २४ राफेल लड़ाकू विमानों की बिक्री के लिए ५.२ अरब यूरो के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जिसमें उल्का मिसाइलों का पैकेज शामिल नहीं था।

और कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

मौजूदा सौदे से यह उम्मीद की जा रही है कि भारत को पहला लड़ाकू विमान २०१९ तक मिलेगा और बाकी विमानों की 2022 तक मिलने की संभावना है, जिनकी प्रमुखताएं निम्नलिखित हैं:

१.) विमान की बुनियादी लागत लगभग ९१ मिलियन युरो या लगभग ६८० करोड़ रुपये है और पूरे सौदे के लिए प्रति विमान १६०० करोड़ रुपये से अधिक है। रक्षा स्रोतों के अनुसार समझौते के कई घटक हैं, जो मूल सौदे से बेहतर हैं और इस सौदे का सबसे अच्छा हिस्सा हथियार पैकेज है।

२.) हथियारों के पैकेज में उल्का रडार निर्देशित बीजेड विज़ुअल रेंज (बीवीआर) मिसाइल शामिल है, जो कि १५० किलोमीटर से अधिक की सीमा श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और लंबी दूरी तक की जमीनी और हवा की मिसाइलों पर हमला करता है। रक्षा अधिकारी कह रहे हैं कि इस क्षेत्र में उपलब्ध किसी भी युद्धक हथियार की तुलना में उल्का रडार की बेहतर पहुँच है। इससे हवा में हमारा दबदबा बरकरार रहेगा।“

३.) इस समझौते में पांच साल तक विमान का फ्लाई-अवे स्थिति में रख रखाव, हथियार, सिमुलेटर, पुर्जें का मेंटेनेंस, विमान का लॉजिस्टिक सपोर्ट भी शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक “पांच साल तक हमें रखरखाव पर खर्च नहीं करना पड़ेगा। हमारे पास इसे दो साल तक वारंटी बढाने का विकल्प भी होगा।

४.) फ्रांस लॉजिस्टिक और जमीनी समर्थन प्रदान करेगा। सूत्रों ने कहा, “यदि वे समयसीमा का पालन नहीं करते हैं तो उन पर दंड लगाया जाएगा।”

५.) विमान को आईएएफ की आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित किया जाएगा जिसमें हेलमेट माउन्ट डिस्प्ले, रडार चेतावनी रिसीवर, इन्फ्रारेड सर्च और ऐसी कई सुविधाए शामिल है।

६.) इस सौदे में राफेल परिचालन के लिए दो हवाई क्षेत्रों को संशोधित करने के प्रावधान भी है।

७.) और सबसे महत्वपूर्ण : ऑफसेट क्लॉज

इसे भी समझिये

क.) यहां एक ५० प्रतिशत ऑफसेट क्लॉज है, जिसके तहत फ्रांसीसी उद्योग देश में अनुबंध के आधे हिस्से में निवेश करेगा, जिससे एयरोस्पेस क्षेत्र में घरेलू स्तर पर कुछ विशेषज्ञता विकसित होने की उम्मीद है। जीटीआरई और सफ्रन, कावेरी गैस टरबाइन इंजन के पुनरुद्धार पर काम करना शुरू कर चुका है।

ख.) अधिकारियों ने यह भी कहा कि ५० प्रतिशत ऑफसेट मूल्य का ७४ प्रतिशत भारत से निर्यात किया जाना चाहिए। इसके अगले ७ वर्षों में ३ बिलियन यूरो होने की संभावना है। यहां पर एक छह प्रतिशत प्रौद्योगिकी साझाकरणभी है, जिसके बारे में डीआरडीओ के साथ चर्चा की जा रही है।

ग.) रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के संवाददाता सम्मेलन के मुताबिक ऑफसेट खंड पर अभी तक हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं।

यह एक व्यापक और योग्य सौदा है। मैं इस लेख को कांग्रेस पार्टी से यह अनुरोध करते हुए समाप्त करूंगा। चाहे बोफोर्स हो, अगस्टा वेस्टलैंड या कोई अन्य रक्षा घोटाला हो, अंत में पीड़ित “भारतीय रक्षा बल” ही होते है। राजनीति में एक दूसरे पर आरोप लगाना राजनीति का हिस्सा है लेकिन कृपया इससे सेना को बाहर रखें।

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