ऐसा लगता है कि संजय लीला भंसाली का मन केवल फिल्म बाजीराव मस्तानी में पेशवा रानी पर दर्शाए गए अश्लील नृत्य गीत को बनाने से नहीं भरा है, कि अब भंसाली ने पद्मावती नामक एक इतिहास का मान-मर्दन करने वाली फिल्म में राजपूत रानी पद्मावती के उपर एक भौंडा गाना घूमर (घूमर जैसा कुछ है नहीं वैसे) बनाया है। ऐसा प्रतीत होगा कि संजय लीला भंसाली, भारत के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास को बॉलीवुडिया अंदाज़ में तोड़ मरोड़ कर पेश करने की कला में माहिर हैं। उदाहरण के तौर पर, संजय लीला भंसाली को बाजीराव मस्तानी फिल्म में महान पेशवा बाजी राव पर बनाए गए गाने ‘वाट लाउली’ बनाने के लिए कौन माफ कर सकता है। इसके अलावा, इस घटिया फिल्म ने भारत के सबसे महान योद्धाओं में से एक की पूरी जीवन गाथा के महत्व को, केवल मस्तानी के साथ प्रेमपूर्ण प्रेम कहानी बनाने के लिए, हीन सा दिखा दिया, वह योद्दा जिसने मराठा ध्वज और शिवाजी के हिंदवी स्वराज को दिल्ली तक फैलाया। निश्चित रूप से, पेशवा बाजी राव के जीवन में मस्तानी एक महत्वपूर्ण चरित्र थीं, लेकिन बाजीराव-मस्तानी में पेशवा बाजीराव के जीवन को केवल हाइफन लगाकर बाजीराव-मस्तानी में परिवर्तित के लिए वह सदैव अपराधी रहेंगे।
फिर इसके बाद में फिल्म में घृणित भद्दा ‘पिंगा’ नृत्य गीत था जिसमें पेशवा रानी के रूप में प्रियंका चोपड़ा ने भूमिका निभाई और मस्तानी के रूप में बेहद असहज सी दिख रही दीपिका पादुकोण थी। पिंगा, एक ऐसा गीत है जो महाराष्ट्रीयन सांस्कृतिक परंपरा से संबंधित है। यह विशिष्ट त्योहारों में बजाया जाता है और इस पर नृत्य किया जाता है। यहां संजय लीला भंसाली ने एक अजीब मिश्रण से पिंगा का निर्माण किया, जिसमे थोड़ी लावणी, थोड़ा आईटम गीत और बॉलीवुड की धुनें मिलाकर, पेशवा रानी को एक आम नर्तिका के साथ नाचता हुआ दिखा दिया।
जब बाजीराव मस्तानी २०१५ में सिनेमा घरों में आई तब बहुत हंगामा हुआ। जिसमें स्पष्ट रूप से यह इतिहास को तोड़ मरोड़ कर दिखाने की कोशिश की गयी थी। पेशवाओं के वंशजों ने संजय लीला भंसाली पर, महाराष्ट्रीयन लोगों की परम्पराओं और उनकी सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के प्रति किये गए अपमान, उनकी परंपराओं और उनकी सांस्कृतिक प्रथाओं को गलत तरीके से दर्शाने के लिए उनपर तीखी टिप्पणियाँ की थी। इसके बावजूद, सिनेमाघरों में फिल्म हिट हो गई और फिल्म ने करोडो रूपए कमाए। हम में से ज्यादातर भारतीय, जो अपने गौरवशाली अतीत के मामले में अनपढ़ हैं, उन्होंने संजय लीला भंसाली ने कलात्मक स्वतंत्रता के नाम पर फैलाई गई गंदगी को आसानी से निगल लिया। दुर्भाग्य से, हमारी अगली पीढ़ी महान पेशवा बाजीराव को उनके प्रेम के जीवन के माध्यम से ही जानेंगी। युद्धों में उनकी जीत, उनका संघर्ष, छत्रपति साहू जी महाराज के प्रति उनकी भक्ति और उनके सभी महान कार्यों को भुला दिया जाएगा और उनके पास केवल बाजीराव-मस्तानी की ही उपाधि रह जाएगी।
ऐसा ही एक प्रयास अब रानी पद्मावती के साथ किया जा रहा है। पेशवाओं के विपरीत, जो अभी हाल ही में गुजरे हुए इतिहास का हिस्सा रहे हैं, चित्तौड़ के रानी पद्मिनी का इतिहास सदियों पुराना है, एक ऐसा युग जो भारत में इस्लामिक आक्रमणों द्वारा फैली हुई भयावहताओं का साक्षी था।
क्या अलाउद्दीन खिलजी उनके उपर फिदा था या नहीं, यह एक सवाल है जिसका जबाव केवल इतिहास दे सकता है। हालांकि, यह सर्वविदित है कि रानी पद्मावती ने खुद को खिलजी के सामने पेश होने के बजाय अपने परिचारिकाओं के साथ जौहर करने का फैसला किया था।
यह ऐतिहासिक तथ्य की बात है कि खिलजी के सैनिकों द्वारा चित्तौड़ पर हमला किया गया और किले के हिंदू निवासियों को अलाउद्दीन खिलजी के आदेश पर सूखी घास की तरह काट डाला गया। रानी पद्मावती की किंवदंतियों को सदियों से इतिहास के माध्यम से संजोया और पोषित किया गया है। पद्मावती कथा में इतिहास और परंपरा इतनी बारीकी से आपस में जुड़े हैं कि यह जानना असंभव है कि इतिहास कहां समाप्त होता है और परंपरा कहां शुरू होती है।
रानी पद्मावती का महान साहस राजस्थान की सांस्कृतिक परंपरा का एक हिस्सा रहा है। रानी पद्मावती द्वारा किया गया जौहर, सम्मान और क्रान्ति के लिए एक सर्वोच्च बलिदान था जिसने खिलजी के सपनों को चूर चूर कर दिया था।
और यहाँ पर संजय लीला भंसाली ने, अपने बलिदान के लिए सम्मानित रानी पद्मावती जिनको राजस्थान में एक देवी के रूप में पूजा जाता है, उनको इस फिल्म में एक नाचने वाली लड़की के जैसे दिखाया है। फिल्म का गीत घूमर राजपूताना की सांस्कृतिक परंपराओं से उतना ही अलग है जितना कि कत्थक भारत नाट्यम से है।
घूमर गाने में दीपिका पादुकोण द्वारा धारण किए गए वस्त्र और किया गया नृत्य एक बार फिर से सांस्कृतिक परंपराओं के बॉलिवुडीकरण की याद दिलाते हैं। घूमर के विपरीत, जिसमे सरल, शांत, विनीत नृत्य भंगिमायें होती हैं तथा नर्तकी पूर्णतया पारंपरिक परिधान में होती है, भंसाली रचित घूमर कालबेलिया नृत्य (जो कामोत्तेजक होता है) से प्रभावित लगता है, ये कहिये कि उससे भी दो कदम आगे ही है। और यही नहीं, खुले में एक राजपूत रानी के नृत्य का विचार और दुनिया के सामने उसके शरीर का प्रदर्शन कोई सपने भी नहीं सोच सकता, या तो संजय लीला भंसाली इस बात से अंजान हैं या फिर उन्होंने सृजनात्मक स्वतंत्रता का दुरूपयोग किया है।
रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच दर्शाये गए एक प्रेम दृश्य पर काफी विवाद उठा, जिसे संजय लीला भंसाली ने पूरी तरह से नकार दिया है। अगर वास्तव में मामला यह है, तो भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं पर कालिख पोतने और उनका अपमान करने के जुर्म में संजय लीला भंसाली का बहिष्कार करना चाहिए।
हम एक ऐसे समय में रह रहे हैं जहाँ कलात्मक स्वतंत्रता का उपयोग आलोचकों को चुप कराने के लिए किया जाता है। यह एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग बाजीराव मस्तानी के समय में भी किया गया था और इसका इस्तेमाल ठीक उसी तरीके से उनके उपर किया जा रहा है जो पदमावती फिल्म की आलोचना और राजपूताना संस्कृति, परंपराओं और इतिहास पर संजय लीला भंसाली के खराब अनुसंधान पर खुले आम दोष लगा रहे हैं। ‘हिंदुत्व ब्रिगेड’ एक सामान्य उपधारा वाले लोग हैं, जिन्होंने इस मुद्दे को उठाया है, जो पद्मावती फिल्म की स्पष्ट कमियों के लिए आलोचना कर रहे हैं।
संभवतः यह फिल्म भी बाजीराव मस्तानी फिल्म की तरह करोडो रूपए कमा ले लेकिन कुछ दशकों के बाद, हमें आश्चर्य होगा कि हमारे बच्चे भारत के गौरवशाली अतीत पर शर्मिंदा क्यों हैं?