मैं एलर्जिक हुँ। दिल्ली में रहता हूँ। मैने लगभग ७ से ८ साल तक लगातार, एक लापरवाही भरा जीवन व्यतीत किया है, जो कॉर्पोरेट पैकेज के साथ ही मिल जाता है। मैंने अपने लापरवाही भरे जीवन में कई चीजों की उपेक्षाओं की हैं, जिसमें जंक फूड के प्रति मेरा जुनून, कम से कम व्यायाम करना और अनियंत्रित नींद आदि शामिल हैं और मुझे इसका नतीजा भी भुगतान पड़ा। जिसके परिणामस्वरूप मेरे फेफड़े कमजोर हो गए। जिसके कारण मुझे लगभग पूरे वर्ष, खांसी की वजह से होने वाली कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था, ऐसे में मेरे लिए सर्दियों का मौसम, काफी कष्टदायक रहता था। ऐसी स्थिति में, मुझे मेरे एक दोस्त ने योग से जुड़ने की सलाह दी और मैं, इच्छा न होते हुए भी, योग-कक्षा में नामांकन करा लिया। अगर मैं ईमानदारी से कहूँ, तो कम से कम पहले कुछ हफ्तों के लिए, योग को लेकर मेरा अनुभव काफी बुरा रहा। योग कक्षाओं में जिम की तरह कोई ट्रेडमिल और डंबल प्रेस करने के लिए कोई बैंच नहीं थी। मेरे चारों ओर बैठे लोग शांत दिखाई दे रहे थे, उनमें जिम जाने वाले लोगों में पाई जाने वाली प्राकृतिक आक्रामकता की पर्याप्त कमी थी। योग कक्षाओं में किसी प्रकार का कोई संगीत उपलब्ध नहीं था। वहाँ मात्र एक प्रशिक्षक था और दस-से-बारह प्रशिक्षु (योग सीखने वाले लोग), जो चटाईयों (मैट) पर बैठे थे। प्रशिक्षक का काफी सारा ध्यान शिष्यों को साँस से सम्बन्धित एक योग प्रक्रियाओं को सिखाने पर होता था। प्रत्येक सत्र के खत्म होने के पश्चात, प्रशिक्षक एक अच्छी दिनचर्या की आवश्यकताओं के बारे में बात करते और बताते कि कैसे शरीर से बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए, मानव शरीर की सर्कैडियन घड़ी को सूर्य के साथ समन्वित किया जाना चाहिए। मैं इन सभी चीजों से अत्यधिक प्रभावित हुआ।
मैं पिछले 2 वर्षों से नियमित रुप से योग कर रहा हूं और योग करने से मुझे अनेक फायदे हुए हैं। मेरे फेफड़ों में पहले की तुलना में काफी सुधार हूआ है (जैसा कि पीएफटी टेस्टों द्वारा साबित होता है), मैंने योग के माध्यम से अपने जीवन को नियन्त्रित करना सीख लिया है और इससे मेरे जीवन में, पहले से कहीं अधिक सुधार हुआ है। अब आप में से कुछ लोग यह सोच रहे होंगे कि क्या इस लम्बे प्राकथन की क्या आवश्यकता थी? दरअसल में मैं यह सिद्ध करना छह रहा था कि योग सिर्फ शरीर को स्वस्थ बनाने और अपने परिवेश के साथ समन्वय बनाएं रखने के बारे में है। योग, एक प्रशिक्षु को, हाथ की मांसपेशियों का निर्माण करने के लिए ५० किलोग्राम का भार उठाने के लिए निर्देशित नहीं करता है, लेकिन योग, उन मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए दबाने और खींचने जैसे विभिन्न संयोजन क्रियाओं पर ध्यान देता है। इसी तरह, योग सही आसन, सही तरीके से साँस लेने की तकनीकों आदि पर भी अत्यधिक ध्यान देता है।
हालांकि यह एक तथ्य है कि योग की प्रकृति, स्वाभाविक रुप से हिंदू है, कई विद्यालय शिव वंदना के साथ अपने सत्र की शुरूआत करते हैं, परन्तु इन अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए किसी पर किसी भी प्रकार से बंधन नहीं है। योगा से सम्बन्धित कई सांस नियंत्रण अभ्यास में हमें ‘ओम’ शब्द का उच्चारण करना पड़ता है – ‘ओम’ शब्द हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक बीज-शब्दों में से एक है, लेकिन एक प्रशिक्षु के लिए ओम का जप करना अनिवार्य नहीं है। तो मूल रूप से यह कहा जा सकता है कि योग किसी भी धार्मिक प्रतीकवाद के बिना भी किया जा सकता है, इसलिए हम योग को शुद्ध रूप से शरीर को मजबूत बनाने और आंतरिक चेतना को जागृत करने के एक उत्तम तरीके के रूप में देख सकते हैं। लेकिन हमारे देश के कुछ लोगों के लिए योग को पूर्ण रुप से समझना, बहुत मुश्किल प्रतीत होता है। वे लोग, योग को एक हिंदू अनुष्ठान मानते हैं और यह कहते हैं कि योग मात्र हिंदूओं को ही करना चाहिए। लोगों की ऐसी विचारधारा से, अन्य धर्मों और विशेष रुप से मुसलमानों और योग के प्रशिक्षुओं (योग सिखाने वाले) को बहुत बड़ा झटका लगा और उन्होंने इस बात का बहिष्कार भी किया।
ऐसी ही एक महिला राफिया नाज़ है। राफिया नाज़, रांची की रहने वाली एक मुस्लिम योग शिक्षक हैं। राफिया चार साल की उम्र से योग कर रही हैं।
राफिया नाज़ के अनुसार, एक मुस्लिम के रूप में योग का अभ्यास करना, उसके परिवार या पड़ोस के लिए कभी भी कोई परेशानी का कारण नहीं रहा, जिनके साथ वह अपना जीवन व्यतीत करती थी। राफिया ने कहा कि उसे उसके बुजुर्गों ने बताया था कि योग, किसी एक विशेष धर्म या जाति या विश्वास से संबंधित नहीं है और योग, उन सभी लोगों के लिए है जो अपने शरीर का उचित तरीके से ध्यान रखना चाहते हैं। युवा राफिया नाज़ के लिए, उनके बुजुर्गों द्वारा दी गई, यह एक ऐसी प्रेरणा थी, जिसकी वजह से राफिया नाज़ ने आगे बढ़कर योग शिक्षक के रूप में अपने काम की शुरुआत की।
राफिया नाज़, योग के महागुरु बाबा रामदेव के साथ मंच साझा करने के बाद, एक स्थानीय सेलेब्रिटी बन गई। राफिया नाज़ ने योग के क्षेत्र में कई मुक़ाम हासिल किये और पुरस्कार जीते। लेकिन प्रसिद्धि के साथ-साथ उन्हें लोगों की नफरत का भी सामना करना पड़ा। राफिया अपने समुदाय के लोगों के लिए एक सरल निशाना बन गई। राफिया को योग के अपने केंद्र को बन्द करने के लिए लगातार धमकियां मिल रही थी, लेकिन राफिया नाज़ ने उन धमकियों के नजरंदाज कर दिया और योग के प्रति निष्ठा का पालन करती रही। फिर राफिया को और परेशान किया गया, धमकियां मिली, फिर विगत बुधवार को, उनके समुदाय के लोगों के एक समूह ने उनके घर पर पत्थर फेंके। पुलिस को बुलाया गया था, जैसे तैसे भीड़ छटी लेकिन गुरुवार सुबह फिर से वही हिंसा शुरू हो गयी राफिया को अब आशंका है कि इन राक्षसों द्वारा उन्हें जान का ख़तरा है, वैसे राक्षस जिन्हें अपने धर्म के बाहर का सब कुछ गलत, पाप और ढोंग लगता है।
ज़ी न्यूज़ की इस रिपोर्ट के मुताबिक, राफिया नाज़ के खिलाफ एक फतवा भी जारी किया गया है। इस घटना के बाद योग-गुरु रामदेव, गायक सोनू निगम, शिया मौलाना सैफ अब्बास और अन्य दिग्गजों ने इसकी सख्त निंदा की।
हम विपक्षी दलों द्वारा रचे गए असहिष्णुता के आडम्बर को नहीं भूले हैं जिसे कई पत्रकारों और शिक्षा, साहित्य और सिनेमा के कई तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा कार्यान्वित किया गया था। अचानक से इन लोगो ने घोषणा की, कि हिंदू बहुमत वाला भारत अचानक असहिष्णु बन गया है। तब से कई अवसर आये जहां भारत में असहिष्णुता का वही पुराना राग गाया गया। अखलाक की हत्या, असहिष्णुता। पहलू की हत्या, असहिष्णुता। एक ट्रेन में एक मुस्लिम युवा मारा गए (सीट पर विवाद), असहिष्णुता। गाय संरक्षक अगर गो-तस्करों का सामना करें, असहिष्णुता। फिर वही लोग केंद्र सरकार को बदनाम करने के लिए एक और नीच अभियान के साथ मैदान में उतर आए। इसे #NotInMyName कहा गया। उन्होंने आगे आकर भारत के एक लिंच (पीट पीट कर की गयी हत्या) मैप का निर्माण किया, जहां मोब (भीड़) लिंचिंग में मारे गए लोगों को नक्शे पर लाल बिंदुओं से पेश किया गया। उनके तथाकथित लिंच नक्शे में उमर फैय्याज जैसे देशभक्तों के लिए कोई स्थान नहीं था, जो कि कश्मीर में हत्यारों द्वारा मारे गए थे, या फिर सीपीआईएम के गुंडों द्वारा केरल में मारे जाने वाले वो तमाम आरएसएस कार्यकर्ता।
आम तौर पर सबसे पहले प्रतिक्रिया करने वाले ये ५ स्टार आन्दोलनकारी और NotInMyName के कार्यकर्ता अभी भी राफिया नाज घटना के बारे में अपनी राय व्यक्त नहीं कर पाए हैं।
देश के सामान्य हिंदू जो अपने दैनिक कार्य में व्यस्त हैं, उसके पास सहिष्णु-असहिष्णु खेलने का समय नहीं है। साधारण हिंदू के पास फ़तवे लिखने का या लोगों पर पत्थर फेंकने का समय नहीं है। उनके पास निश्चित रूप से करने के लिए बेहतर चीजें हैं छद्म-उदारवादी बुद्धिजीवियों के अच्छे खासे प्रचार के बावजूद, यह तेजी से स्पष्ट हो रहा है कि आखिर सच में असहिष्णु कौन है। झूठ का विज्ञापन करने की ज़रूरत है, सच्चाई अपना प्रचार स्वयं कर लेती है।