आइये अब ज़रा गुजरात में आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन पर एक नज़र डालते हैं

आम आदमी पार्टी गुजरात

वो नवम्बर महीने का एक खुशनुमा दिन था जब आम आदमी पार्टी ने घोषणा की, कि पार्टी “गुजरात का संकल्प, आम आदमी पार्टी ही खरा विकल्प” के पवित्र मकसद के साथ गुजरात में विधानसभा चुनाव लड़ेगी। आम आदमी पार्टी गुजरात के रणक्षेत्र में कूद पड़ी, क्योंकि दिल्ली के आधे-राज्य में अरविन्द केजरीवाल आधे-मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर कर के थक गए थे, पार्टी को दिल्ली के बाहर अपना आधार स्थापित करना ज़रूरी था। भाजपा ने इस ईमानदार आदमी की पार्टी को तुरंत कांग्रेस की B टीम कह के बुलाया। वहीं, अजय माकन ने आम आदमी पार्टी को भाजपा की B टीम कहा, क्योंकि उन्होंने सोचा कि आम आदमी पार्टी सत्ता विरोधी वोटों में सेंध मार देगी। जबकि दोनों राष्ट्रीय पार्टियों ने आम आदमी पार्टी को एक दूसरे की B टीम मानते हुए तिरस्कृत किया, तब भारत की पहली सोशल मीडिया पार्टी (जो कि आम आदमी पार्टी है) ने ये बिलकुल साफ़ कर दिया कि वे किसकी तरफ हैं। पार्टी सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल ने एक बैठक में साफ़ साफ़ शब्दों में ये कहा कि “यदि कहीं पर आम आदमी पार्टी जीत रही है तो अपना वोट आम आदमी पार्टी को दें। लेकिन यदि कोई अन्य पार्टी जीत रही है तो अपना वोट उस पार्टी को ही दें, लेकिन भाजपा को हराएं।”

शुरुआत में आम आदमी पार्टी ने सभी १८२ सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। फिर उन्हें ये जल्द ही स्पष्ट हो गया कि गुजरात में चुनाव लड़ना काफी मुश्किल है। लेकिन आम आदमी पार्टी बदलती जमीनी वास्तविकताओं पर तत्परता से प्रतिक्रिया देती है। अतः ये निर्णय लिया गया कि पार्टी सिर्फ चुनिन्दा सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी। २९ निर्वाचन क्षेत्रों, जहाँ पार्टी को लगा कि भाजपा की लोकप्रियता कम हुई है, को आम आदमी पार्टी के भव्य गुजरात पदार्पण के लिए अंतिम रूप दे दिया गया। लेकिन जमीनी रिपोर्ट्स लगातार जटिल होती जा रही थीं। जल्द ही ये स्पष्ट हो गया कि वो २९ निर्वाचन क्षेत्र भी भारत के अब तक के सबसे सफल राजनीतिक स्टार्टअप के लिए बहुत ज्यादा होंगे। पंजाब, गोवा और एमसीडी चुनावों में मिली बुरी हार ने केजरीवाल की छवि को गंभीर रूप से छतिग्रस्त कर दिया था और ये महान आदमी और बेइज्जती करवाने की स्थिति में नहीं था। इसलिए ये निर्णय लिया गया कि वरिष्ठ पार्टी नेता संजय सिंह, आशुतोष और कुमार विश्वास गुजरात में प्रचार नहीं करेंगे। गुजरात पहला राज्य बना, जहाँ दिल्ली के मुख्यमंत्री विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी के उम्मीदवार के लिए प्रचार नहीं कर रहे थे। ये हर किसी स्वीकार करना चाहिए कि यह एक बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय था।

लेकिन जैसे ही भाजपा और कांग्रेस के गुजरात प्रचार को भीड़ का समर्थन मिला, वहां आम आदमी पार्टी के लिए कुछ और अधिक प्रतिकूल जमीनी रिपोर्टें निकल कर सामने आयीं। इसलिए उन्होंने 10 सीटों पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया जहां पार्टी जीत की उम्मीद कर रही थी। एक और बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय!

आइये जरा नज़र डालते हैं कि आम आदमी पार्टी ने इन सीटों पर कैसा प्रदर्शन किया:

१.)    पालनपुर : नभानी रमेश कुमार खेमराज भाई (४५२ वोट)

२.)    राजकोट (पूर्व): अजीत घूसाभाई लोखिल (१९२७ वोट)

३.)    गोंडल : खूंट निमिषाबेन धीरजलाल (२१७९ वोट)

४.)    लाठी : एम डी (भानुभाई) मंजरिया (७९७ वोट)

५.)    कामरेज : राम धादुक (१४५४ वोट)

६.)    करंज : मेहता जिग्नेश धीरजलाल (३२५ वोट)

७.)    पारदी : डॉ राजीव शम्भूनाथ पाण्डेय (५३९ वोट)

८.)    ध्रंगधरा : दधानिया कमलेश मूलजीभाई (५०५ वोट)

पार्टी ने अन्य दो निर्वाचन क्षेत्रों में आखिरी क्षण पर वाकआउट कर लिया।

इसे बहुत ही घटिया स्कोर कार्ड कहा जायेगा। लेकिन अरविन्द केजरीवाल के अदम्य साहस और अतुलित आत्मविश्वास को प्रणाम करना चाहिए। वो एक ऐसे योद्धा हैं जिन्हें लड़ाई लड़ना पसंद है। परिणाम से शायद ही वे कभी चिंतित होते हैं। हम उन्हें अगले साल मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम चुनावों के लिए शुभकामनाएं देते हैं।

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