2019 आम चुनाव आने वाला है। यह चुनाव विशेष रूप से भाजपा और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों की चुनावी क्षमता का खुलासा करने की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। वर्ष 2014 के चुनाव में मोदी लहर ने सम्पूर्ण भारत देश में अपना जादू चलाया और भाजपा ने केन्द्र में पूर्ण बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाई। हालांकि लोकतंत्र में नेताओं की लोकप्रियता का कम होना एक सामान्य प्रवृत्ति है। लोगों को जितनी अपेक्षाएं नेताओं से होती हैं, नेताओं के लिए अपनी लोकप्रियता को बनाये रखना उतना ही मुश्किल हो जाता है। मैं भाजपा की स्वीकृति और प्रधानमंत्री मोदी के 3.5 साल के कार्यकाल के प्रभाव को मतदाताओं के मध्य आकलन कर रहा हूं। 2014 के आम चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों से लेकर मणिपुर जैसे छोटे राज्यों तक कुल 18 विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। मैं पुडुचेरी (1 लोकसभा सीट) सीट को इस विश्लेषण में शामिल नहीं करूँगा क्योंकि 2014 के आम चुनाव में भाजपा ने इस सीट से चुनाव ही नहीं लड़ा था।
इस अवधि के दौरान इन सभी 17 लक्षित राज्यों के लिए मतदाताओं की मनोस्थिति का विश्लेषण करने के लिए मैं भाजपा के लोक सभा और विधान सभा मत प्रतिशत का उपयोग कर रहा हूँ। हमें इस तथ्य समझना चाहिए कि लोकसभा चुनाव तो नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द था, लेकिन राज्य विधानसभा चुनावों में, चुनाव प्रचार अभियान का मुख्य चेहरा होने के बावजूद लोगो को ये भली भाँती पता होता है कि मोदी जी स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बन सकते। इसके अलावा, कुछ राज्यों में गठबंधन के पुनर्गठन के मामले भी सामने आए हैं। 2014 आम चुनाव में शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था, लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना और भाजपा का आपस में समझौता नहीं हो पाया और जिसके फलस्वरुप दोनों दलों ने महाराष्ट्र चुनाव अलग-अलग लड़ा। इसके विपरीत, 2014 के आम चुनाव में असम गण परिषद (एजीपी) ने भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव नहीं लड़ा था लेकिन उन्हें उस चुनाव में असफलता हाथ लगी थी जिसके चलते 2016 में असम विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के साथ समझौता कर लिया था। आम चुनावों के बाद इन राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा के वोट शेयर पर इन विषम समझौतों का विपरीत प्रभाव है।
ऐसे चार अपवाद हैं जहां भाजपा के लिए उस राज्य में होने वाले लगातार दो चुनावों (लोकसभा और विधानसभा) के मध्य वोट शेयर में परिवर्तन 10% से अधिक है।
गोवा में, भाजपा का वोट शेयर लोकसभा चुनाव से गोवा विधानसभा चुनाव 2017 तक 22 प्रतिशत अंक (पीपी) नीचे आ गया है। जो पार्टी 2014 के चुनाव में अप्रासंगिक थी उसी पार्टी अर्थात महाराष्ट्रवादी गोमंतक (एमएजी) पार्टी को 2017 के चुनाव में 11.3 प्रतिशत वोट मिले। आम आदमी पार्टी (आप) और गोवा फॉरवर्ड पार्टी जैसे अन्य छोटे दलों ने भी कुछ वोट प्राप्त किए, जिससे राज्य में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों का वोट प्रतिशत नीचे लुढ़क गया। दिल्ली में 2015 के चुनाव में भाजपा के वोट शेयर में 14 प्रतिशत की गिरावट आई। आम आदमी पार्टी ने 54 प्रतिशत वोट प्राप्त कर 70 सीटों में से 67 सीटों पर जीत हासिल की। इन राज्यों में भाजपा को चुनाव की तैयारियाँ उच्च स्तर पर करनी होंगी। केजरीवाल की लोकप्रियता कम होने के साथ और पर्रीकर की गोवा में वापसी के बाद दिल्ली और गोवा 2019 के चुनावों में भाजपा के लिए अच्छे परिणाम लाएंगे, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
हाल ही में हुए गुजरात के चुनाव में, भाजपा का वोट शेयर 11 प्रतिशत अंक नीचे लुढ़क गया है। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में पार्टी को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। वर्ष 1998, 2002, 2007 और 2012 में भाजपा का वोट शेयर क्रमशः 44.8 प्रतिशत, 49.8 प्रतिशत, 49.1 प्रतिशत और 47.8 प्रतिशत था। इन्हीं संबंधित वर्षों में कांग्रेस का वोट शेयर क्रमशः 34.8 प्रतिशत, 39.3 प्रतिशत, 38.0 प्रतिशत और 38.9 प्रतिशत था। 2017 में, भाजपा और कांग्रेस को क्रमशः 49.1 प्रतिशत और 41.4 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए। भाजपा का वोट शेयर अपनी ऐतिहासिक श्रेणी में बना रहा, लेकिन कांग्रेस को कुछ अधिक वोट शेयर का लाभ प्राप्त हुआ, जिससे कांग्रेस को 20 और अधिक सीटें जीतने में मदद मिली। भाजपा ने अहमदाबाद और सूरत जैसे शहरी केंद्रों में बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन सौराष्ट्र में कुछ ज्यादा अच्छा नहीं कर पाए। भाजपा को अपेक्षाकृत कम सीटें प्राप्त हुईं लेकिन 22 साल के सत्ता विरोध को मात दे पाना अविश्वसनीय था। इस चुनाव को अपने लिए रेफेरेंडम जैसा बनाकर आखिरकार मोदी जी ने विजय प्राप्त की। कांग्रेस ने अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी जैसे युवा नेताओं के साथ मजबूत जातीय समीकरण बनाए। उन्होंने हार्दिक पटेल की मदद से भाजपा के खिलाफ पाटीदार भावनाओं का फायदा उठाने की कोशिश की लेकिन मोदी के कद और शाह की रणनीतिक ताकत के सामने खड़े नहीं हो सके। स्पष्ट रुप से, वोटों को लेकर भावनाओं को परिवर्तित करने के लिए उन्हें एक मजबूत संगठन की जरूरत है। यदि किसानों को कोई परेशानी और असंतोष हो तो भाजपा को इसके बारे में भी पता होना चाहिए। दूसर चरम मणिपुर है, जहां 2014 की तुलना करने पर 2017 में भाजपा को 24 प्रतिशत अंकों का लाभ प्राप्त हुआ।
आठ राज्यों में, लगातार दो चुनावों (लोकसभा और विधानसभा) के मध्य भाजपा का वोट शेयर में परिवर्तन 5 प्रतिशत अंक से कम था। इन राज्यों में केरल, महाराष्ट्र (गठबंधन पुनर्गठन प्रभाव), पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और बिहार जैसे राज्य शामिल हैं। विधानसभा चुनाव की अत्यंत आंतरिक विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए, कि इस चुनाव का वोट शेयर राज्य सरकार (मुख्यमंत्री) को चुनने के लिए है न कि ये केंद्र सरकार (प्रधानमंत्री) को चुनने के लिए, ये राज्य भाजपा के लिए उत्साहजनक रुझान दिखाते हैं। अगले समूह में पांच राज्य हैं जहां वोट शेयर का मार्जिन 5-10 प्रतिशत की सीमा में है। ये मार्जिन असम (गठबंधन पुनर्गठन प्रभाव), झारखंड, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में है। इन राज्यों के वोट शेयर से यह प्रदर्शित होता है कि यहां अधिक ध्यान देने की आवश्कता है।
कुल मिलाकर सभी चीजें भाजपा के लिए उज्ज्वल दिख रहीं हैं। हालांकि भाजपा, वर्तमान में एक मजबूत और शक्तिशाली दल है और विपक्ष के पास इसके खिलाफ निपटने के लिए बहुत कम मौके हैं। लेकिन पार्टी की कुछ समस्याएं हैं जो उन्हें सुलझानी चाहिए। जैसे इसे कृषि संकट से निपटना चाहिए और मध्यम वर्ग को प्रोत्साहित करना चाहिए। आयकर कटौती एक अच्छा विकल्प हो सकता है।