सरकार के द्वारा कंडोम विज्ञापन पर लगाये गए प्रतिबन्ध की समीक्षा

कंडोम के विज्ञापन

सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा कंडोम के विज्ञापनों पर सुबह ६ बजे से रात १० बजे तक प्रतिबन्ध लगाने के फैसले पर चारों तरफ बहुत विवाद हुआ है। मंत्रालय को एक शिकायत मिली थी जिसमे कहा गया था कि ये उकसाने वाले विज्ञापन हैं, विशेष रूप से बच्चों के देखे जाने लायक बिलकुल भी नहीं हैं। प्रतिक्रिया स्वरुप मंत्रालय ने इन विज्ञापनों को प्राइम टाइम में न दिखाने का आदेश जारी किया।

सरकार के मोरल पोलिसिंग (नैतिकता का पाठ) की परिभाषा को और नीचे ले जाने वाले इस कदम से ट्विटर पर लोगों को मौका मिल गया।

एक ऐसा देश जो शायद आने वाले कुछ वर्षों में जनसँख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ने वाला है, ने जनसंचार के सबसे व्यापक तरीकों में से एक और सबसे सुगम और सुरक्षित गर्भनिरोधक विज्ञापनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। मेरे कहने का मतलब, अब हम क्या करें- इस कदम से हालत और भी ख़राब हो गयी है, सही है न?

जी नहीं. इस कदम से पहले हालात ज्यादा ख़राब थे और ये इस कदम के बाद भी वैसे ही हैं। और संभवतः कुछ समय के लिए ये जैसा का तैसा ही रहने वाला है।

क्या कंडोम के विज्ञापन अपेक्षानुसार प्रभावी थे कि उनको प्राइम टाइम से हटा देने पर हम पर कुछ प्रतिकूल प्रभाव पड़े?

कंडोम के जितने भी विज्ञापन आप देखते हैं, जिनमे महिला या पुरुष किरदार मोहक भंगिमाओं के साथ यौन विचारोत्तेजक हाव भाव बनाते हुए दिखाई देते हैं। इसमें कुछ भी गलत नहीं है, आखिर ये कंडोम का विज्ञापन है। ये विज्ञापन आपको बताते हैं कि कैसे लड़की को और अधिक की लालसा रहती है, ये आपको कंडोम के विभिन्न फ्लेवर और अलग अलग आकारों के बारे में भी बताते हैं। इनकी प्रष्ठभूमि रोमांटिक और अंत कामोत्तेजक होता है।

फिर समस्या कहाँ पैदा हुई?

• जब कम उम्र के बच्चे ऐसे विज्ञापन देखते हैं तो क्या आप माँ बाप होने के नाते इसे उचित ठहराएंगे? बहुत सारे लोग इसे सही नही कहेंगे।
• भविष्य में गलत आचरण से बचने के लिए सही उम्र में “सेक्स ज्ञान” के तर्क-वितर्कों की शुरूआत करके इसे यौन शिक्षा के साथ जोड़कर भ्रमित न हों। क्यूंकि किसी अर्ध नग्न मॉडल को मोहक मुद्रा में देखना “सेक्स के बारे में बात करने” (हैविंग द टॉक) को कोई भी आधार प्रदान नहीं करता है।
• इनमे से कोई भी विज्ञापन परिवार नियोजन या जनसँख्या पर अंकुश की ना बात करते हैं, न ही प्रोत्साहित करते हैं, यहाँ तक कि उल्लेख भी नही करते। इसे उपभोग्य आनंद के रूप में प्रदर्शित किया जाता है, जो कि गलत नहीं है लेकिन इसे उपयोगी या शैक्षणिक सन्देश बताकर भ्रम न पैदा करें।
• जनसंख्या वृद्धि के कई कारण हो सकते हैं, अज्ञानता उनमें से एक है। लेकिन आप प्रमुख कारण जानते हैं-
o इसका एक कारण यौन शिक्षा में कमी होना नहीं है बल्कि ज्यादा बच्चे होने के परिणामों से अनभिज्ञ होना है।
o एक लड़का पैदा करने की चाहत में तब तक बच्चे पैदा करना जब तक लड़का हो न जाए भी इसका एक कारण है।
o गरीबी- मतलब ज्यादा बच्चे, ज्यादा कमाने वाले लोग।
o परिवार नियोजन के बारे में जानकारी का आभाव- इसके लिए जन्म नियंत्रण उपायों को लोक प्रिय बनाकर जानकारी दी जानी चाहिए।

लेकिन कंडोम विज्ञापनों की गुणवत्ता और सामग्री इस हद तक प्रभाव डालने के लिए कुछ भी नहीं कर रही है।

हाँ, प्रतिबन्ध न्यायसंगत नहीं है लेकिन इस मामले में दिखाए जाने वाले विज्ञापनों की गुणवत्ता भी न्यायसंगत नहीं है। हमें आवश्यकता है कि ज्यादा से ज्यादा भारतीय जन्म नियंत्रण (बर्थ कण्ट्रोल) के बारे में जानें और जनसँख्या विस्फोट के बढ़ते हुए खतरे को एक विराम दें और इसके लिए हमें सार्थक कदम उठाने की आवश्यकता है।

प्रिय सरकार : इन विज्ञापनों पर प्रतिबन्ध लगाने की बजाय इन्हें प्राइम टाइम में चलाने के अनुरूप दिशा निर्देश स्थापित करें।

प्रिय आलोचकों : ‘जनसँख्या नियंत्रण पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला प्रतिबन्ध’ पर ढिंढोरा पीटने के बजाय जो गलत था उसे स्वीकार करें और उसे सुधारें।

Exit mobile version