पिछले वर्ष मिसाइल टेक्नोलॉजी कण्ट्रोल रिजीम में सफल प्रवेश के बाद, मोदी सरकार को अब एक और गौरव प्राप्त हुआ है, मोदी सरकार ने सफलतापूर्वक भारत को वासेनार अरेंजमेंट नामक एक आर्म्स एक्सपोर्ट कण्ट्रोल रिजीम में शामिल करवाया है, जो परंपरागत हथियारों और दोहरी उपयोग प्रौद्योगिकियों के व्यापार की देखभाल करता है।
७ दिसंबर को भारत वासेनार अरेंजमेंट का ४२वां सदस्य बन गया, जिसकी सदस्यता से चीन अभी भी वंचित है।
इस प्रतिष्ठित समूह में भारत का समावेश इस तथ्य से मजबूत हुआ है कि भारत इसमें शामिल होने के लिए आवश्यक सभी मापदंडों पर खरा उतरा है जैसे कि हथियारों का निर्माता और निर्यातक होते हुए भी भारत ने अप्रसार नीतियों का अक्षरशः अनुपालन किया। यह उन मुद्दों को भी मजबूत करता है जिनके आधार पर भारत अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भेदभावपूर्ण परमाणु अप्रसार संधि का विरोध करता आ रहा है।
इस प्रतिष्ठित समूह में भारत का प्रवेश रूस, फ्रांस, जर्मनी और संयुक्त राष्ट्र अमेरिका द्वारा समर्थित था।
‘वासेनार अरेंजमेंट’ में भारत का प्रवेश भारतीय प्रतिष्ठान की अप्रसार नीतियों की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति को दर्शाता है। साथ ही यह परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह और ऑस्ट्रेलिया समूह जैसे अन्य समूहों में प्रवेश के भारतीय दावों को और मजबूत करता है।
वासेनार अरेंजमेंट जैसे विशिष्ट क्लब में भारत के प्रवेश के लिए भारत की निर्यात नीतियां एक प्रमुख कारण रहीं। रासायनिक हथियार सम्मेलन और जैविक एवं विष विज्ञानिक हथियार सम्मेलन का अनुसमर्थन इस समूह में प्रवेश के दावों को मजबूत करने में भारत की मदद करता है। जहाँ तक परमाणु अप्रसार संधि का हिस्सा होने का सवाल है, एनपीटी के सिद्धांतों का अनुपालन ही इस संधि की शर्त थी न कि कोई इसमें कोई अनिवार्य विशोधन। चूँकि अप्रसार के मामले में भारत का रिकॉर्ड पहले से साफ था इसीलिए इस तथ्य से भारत पर कोई फर्क नहीं पड़ता अतः भारत ने इस संधि को मंजूरी दी या हस्ताक्षर किये।
भारत को प्राप्त होने वाला सबसे बड़ा लाभ यह हो सकता है कि क्षेत्र की शांति के लिए संभावित हानिकारक हथियारों की पहचान करने का ये एक अच्छा मौका है। अब हमारा देश अपने पड़ोस में इसी तरह के हथियारों की बिक्री और हस्तांतरण की जाँच भी कर सकता है, जिन पड़ोसियों ने हमेशा ही दक्षिण एशिया को राजनीतिक अशांति का बड़ा केंद्र बनाया है। इस तरह से भारत इस क्षेत्र में अपने पडोसी के द्वारा किये जाने वाले हानिकारक गोला-बारूद के स्थानांतरण और बिक्री को रोक सकता है। पाकिस्तान ऐसे कई हथियार प्राप्त कर चुका है जिनका भारत के खिलाफ इस्तेमाल हो रहा है। इसके अलावा भारत अंतर्राष्ट्रीय बाजार से पाकिस्तान को प्राप्त हो रही ‘गुप्त’ प्रौद्योगिकी के प्रसार की जाँच भी कर सकता है। पाकिस्तान अपनी ‘नौसेना और वायु सेना’ के लिए ‘गुप्त’ प्रौद्योगिकी सक्षम युद्धपोत और लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए हमेशा से ही उत्सुक रहा है।
एक अन्य व्यावसायिक लाभ जो भारत को मिलेगा, वह यह है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गोला-बारूद और हथियारों के आपूर्तिकर्ता के रूप में अपने स्थान को पक्का करेगा। ऐसी निर्यात नियंत्रण व्यवस्था की सदस्यता हमेशा अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र से ग्राहकों को आकर्षित करने में मदद करती है, क्योंकि यह सदस्यता ऐसे हथियारों और गोला-बारूद के आपूर्तिकर्ता को विश्वसनीयता प्रदान करती है। इससे डीआरडीओ और ४१ आर्डिनेंस फैक्ट्रियों को ग्राहक मिलेंगे और इस प्रकार इन कारखानों को वित्तीय मामले में आत्मनिर्भर होने में मदद मिलेगी। यह ‘ब्रांड’ की स्थापना में मदद करता है, जिसकी भारत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हथियारों के निर्माण के लिए उत्सुकता से मांग कर रहा है। यह प्रधान मंत्री के मेक इन इंडिया की पहल का भी पूरक होगा। जब बाजार में ग्राहकों की संख्या बढ़ती है, तो अपने आप रक्षा उत्पादों का उत्पादन भी बढ़ जाता है।
इस समूह की सदस्यता विश्व स्तर पर हथियारों के निर्यातक के रूप में भारत के कद के उदय को चिह्नित करेगी और भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का हिस्सा बन जाएगा।
भारत सरकार परमाणु आपूर्तिकर्ता के समूह में शामिल होने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, जहाँ चीन कुछ समय से भारत को इसमें शामिल होने से रोक रहा है। दूसरी ओर, चीन कुछ समय से एमटीसीआर और वासेनार समझौता करने के लिए इच्छुक है। चूंकि सभी तीन नियंत्रण व्यवस्थाओं में प्रवेश सर्वसाधारण की सहमति पर आधारित है, इसलिए भारत एनएसजी में सफलता हासिल करने के लिए चीन के साथ दोनों समझौतों में अपनी उपस्थिति का लाभ उठा सकता है।
यह सरकार के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि यह राजनायिक सफलता के साथ कई मोर्चों पर उपलब्धि हासिल कर सकता है। आलोचक इस उपलब्धि की प्रतिष्ठा को कम करने की कोशिश करेंगे, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रभाव बढ़ना तय है।